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Shab E Qadr 2024: क्यों मनाते हैं शब-ए-कद्र, जानें इस रात की 10 रोचक बातें

माहे रमजान में शब-ए-कद्र का महत्व जानें

Shab E Qadr 2024: क्यों मनाते हैं शब-ए-कद्र, जानें इस रात की 10 रोचक बातें

WD Feature Desk

, गुरुवार, 4 अप्रैल 2024 (15:55 IST)
Shab E Qadr : इस्लाम धर्म के अनुसार रमजान के अंतिम 10 रातों में विषम संख्या वाले रात, जैसे- 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं, 29वीं रातों को शब-ए-कद्र कहा जाता है। हालांकि शब-ए-कद्र किस तारीख को पड़ेगी यह चांद के दिखने पर निर्भर करता है। यह 04 अप्रैल को 24वें रोजे पर यानी तीसरी (25वीं) शब-ए-कद्र की रात होगी। तथा इस बार शब-ए-कद्र 06 अप्रैल को 27वीं रात को भी मनाई जाएगी। रमजान में शब-ए-कद्र की रात को बहुत ही खास माना जाता है, इस रात अल्लाह से गुनाहों की मिलती है। 
 
रमजान माह इस्लामी पंचांग का नौवां महीना है और इस्लाम धर्म में माहे रमजान में आने वाली शब-ए-कद्र की रात बेहद अहम मानी जाती है। शब-ए-कद्र पर रात भर इबादत करके लोग अपने रिश्तेदारों की कब्र पर फूल चढ़ाते हैं और सुबह फातिहा पढ़कर उनकी मगफिरत के लिए अल्लाह से दुआएं मांगते हैं।

आपको बता दें कि रमजान के पवित्र महीने की अन्य रातों के मुकाबले शब-ए-कद्र की रातों का महत्व बहुत ही खास से होता है, इसे लैलत अल-कद्र भी कहते हैं। अंग्रेजी में इसे नाइट ऑफ डिक्री, नाइट ऑफ वैल्यू, नाइट ऑफ पावर भी कहा जाता है। इसे इबादत, इनाम और दुआओं की रात भी माना जाता है। 
 
आइए जानते हैं शब-ए-कद्र की रात की 10 रोचक बातें 
 
1. वर्ष 2024 में रमजान माह का तीसरा अशरा ढलान पर है। तीसरे अशरे की 25वीं, 27वीं शब को शब-ए-कद्र के रूप में मनाया जाता है। इसी मुकद्दस रात में कुरआन भी मुकम्मल हुआ। 
 
2. रमजान के तीसरे अशरे की 5 पाक रातों में शब-ए-कद्र को तलाश किया जाता है। ये रात हैं 21वीं, 23वीं, 25वीं 27वीं और 29वीं रात।
 
3. 27वीं इबादत की रात होती है। 27वीं शब को उन अधिकतर मसाजिद में जहां तरवीह की नमाज अदा की गई वहां कुरान हाफिजों का सम्मान किया जाता है। साथ ही सभी मस्जिदों में नमाज अदा कराने वाले इमाम साहेबान का भी मस्जिद कमेटियों की तरफ से इनाम-इकराम देकर इस्तकबाल किया जाता है।
 
4. शबे कद्र को रात भर इबादत के बाद मुसलमान अपने रिश्तेदारों, अजीजो-अकारिब की कब्रों पर सुबह-सुबह फातिहा पढ़कर उनकी मगफिरत (मोक्ष) के लिए दुआएं भी मांगेंगे।
 
5. इस रात में अल्लाह की इबादत करने वाले मोमिन के दर्जे बुलंद होते हैं। गुनाह बक्श दिए जाते हैं। दोजख की आग से निजात मिलती है। वैसे तो पूरे माहे रमजान में बरकतों और रहमतों की बारिश होती है। 
 
6. ये अल्लाह की रहमत का ही सिला है कि रमजान में एक नेकी के बदले 70 नेकियां नामे-आमाल में जुड़ जाती हैं, लेकिन शब-ए-कद्र की विशेष रात में इबादत, तिलावत और दुआएं कुबूल व मकबूल होती हैं।
 
7. अल्लाह ताअला की बारगाह में रो-रोकर अपने गुनाहों की माफी तलब करने वालों के गुनाह माफ हो जाते हैं। इस रात खुदा ताअला नेक व जायज तमन्नाओं को पूरी फरमाता है। रमजान की विशेष नमाज तरावीह पढ़ाने वाले हाफिज साहबान इसी शब में कुरआन मुकम्मल करते हैं, जो तरावीह की नमाज अदा करने वालों को मुखाग्र सुनाया जाता है। इसके साथ घरों में कुरआन की तिलावत करने वाली मुस्लिम महिलाएं भी कुरआन मुकम्मल करती हैं।
 
8. रमजान का पवित्र महीना अपने आखिरी दौर में पहुंच चुका है। संभवतः ईद-उल-फितर 13 या 14 मई को मनाई जाएगी। शबे कद्र की रात को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। हालांकि यह तय नहीं माना जाता कि रमजान में शबे कद्र कब होगी, लेकिन 26वां रोजा और 27वीं शब को शबे कद्र होने की संभावना जताई जाती है।
 
9. बता दें कि साल में सिर्फ एक बार ही शब-ए-कद्र की रात आती है। अत: इस रात को अल्लाह की बरकतों से वंचित रह जाना बदनसीबी पाने जैसा है। अत: सभी को शब-ए-कद्र की रात सिर्फ जागकर न बिताते हुए ज्यादा से ज्यादा अल्लाह की इबादत करने में समय व्यतीत करना चाहिए।
 
10. रमजान के पवित्र महीने में ईद से पहले हर व्यक्ति को 1 किलो 633 ग्राम गेहूं या उसकी कीमत के बराबर राशि गरीबों में वितरित करनी होती है। इसे फितरा कहते हैं। इस बार बाजार भाव के हिसाब से 1 किलो 633 ग्राम गेहूं की कीमत 40 रुपए तय की गई है। फितरा हर पैसे वाले इंसान पर देना वाजिब है। नाबालिग बच्चों की ओर से उनके अभिभावकों को फितरा अदा करना होता है।

अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
 
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