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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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Ninth Roza 2024 : रोजे का जेवर और दोस्ती का दस्तावेज है, नौवां रोजा

Ninth Roza 2024 : रोजे का जेवर और दोस्ती का दस्तावेज है, नौवां रोजा

WD Feature Desk

The Ninth Day of Roza: जकात (दान) का जिक्र हर मजहब में है। मिसाल के तौर पर जैन धर्म (मजहब) में जिस अपरिग्रह (जरूरत से ज्यादा धन/वस्तुएं अपने पास नहीं रखना) की बात की गई है उसकी बुनियाद में जकात (दान) ही तो है यानी जखीरा (संग्रह) मत करो और जरूरतमंदों को बांट दो/ दान कर दो। इसी तरह सनातन धर्म में भी त्याग करते हुए उपभोग (तेन व्यक्तेन भुंजीथः) की बात कही गई है। 
 
यह त्याग दरअसल जकात की ही तो पैरवी है। बाइबल में भी कहा गया है कि 'फ्रीली यू हेव सिसीव्ड /फ्रीली यू गिव' यानी तुम्हें खूब मिला है। तुम ख़ूब दो (दान करो)।' इस्लाम मजहब में भी जकात की बड़ी अहमियत है। 
 
क़ुरआने-पाक के पहले पारे (प्रथम अध्याय) अलिफ़-लाम-मीम की सूरह अल बकरह की आयत नंबर तिरालीस (आयत-43) में अल्लाह का इरशाद (आदेश) है 'और नमाज कायम रखो और जकात दो और रुकूअ करने वालों के साथ रुकूअ (दोनों हाथ घुटनों पर रखकर, सिर झुकाए हुए अल्लाह की बढ़ाई/महिमा का स्मरण करना) करो।'
 
जकात, दोस्ती का दस्तावेज तो है ही रोजे का जेवर भी है। जकात का जेवर रोजे की जैब-ओ-जीनत (गौरव-गरिमा) बढ़ाता है। जकात में दिखावा नहीं होना चाहिए। जकात का दिखावा, 'दिखावे' की जकात बन जाएगा। दिखावा (आडंबर) शैतानियत का निशान है, इंसानियत की पहचान नहीं।
 
रोजा पाकीजगी का परचम और इंसानियत का हमदम है। इसलिए इंसानियत भी। रूहानियत की ताक़त है रोजा, रोजे की ताकत है जकात। हजरत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़र्माया 'रोजा रखते हुए शख़्स को बुरी बात कहने से बचना चाहिए, यह भी जकात है। प्रस्तुति : अजहर हाशमी


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