Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

प्रयागराज कुंभ 2019 : प्रयागराज का अर्थ, कैसे और क्यों रखा इसका नाम इलाहाबाद, जानिए इतिहास

प्रयागराज कुंभ 2019 :  प्रयागराज का अर्थ, कैसे और क्यों रखा इसका नाम इलाहाबाद, जानिए इतिहास

अनिरुद्ध जोशी

शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि ''रेवा तीरे तप: कुर्यात मरणं जाह्नवी तटे।'' अर्थात, तपस्या करना हो तो नर्मदा के तट पर और शरीर त्यागना हो तो गंगा तट पर जाएं। गंगा के तट पर प्रयागराज, हरिद्वार, काशी आदि तीर्थ बसे हुए हैं। उसमें प्रयागराज का बहुत महत्व है।
 
 
प्रयाग का अर्थ : 'प्र' का अर्थ होता है बहुत बड़ा तथा 'याग' का अर्थ होता है यज्ञ। 'प्रकृष्टो यज्ञो अभूद्यत्र तदेव प्रयागः'- इस प्रकार इसका नाम 'प्रयाग' पड़ा। दूसरा वह स्थान जहां बहुत से यज्ञ हुए हों।
 
 
ब्रह्मा ने किया था यज्ञ : पृथ्वी को बचाने के लिए भगवान ब्रह्मा ने यहां पर एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था। इस यज्ञ में वह स्वयं पुरोहित, भगवान विष्णु यजमान एवं भगवान शिव उस यज्ञ के देवता बने थे। तब अंत में तीनों देवताओं ने अपनी शक्ति पुंज के द्वारा पृथ्वी के पाप बोझ को हल्का करने के लिए एक 'वृक्ष' उत्पन्न किया। यह एक बरगद का वृक्ष था जिसे आज अक्षयवट के नाम से जाना जाता है। यह आज भी विद्यमान है।
 
 
अमर है अक्षयवट : औरंगजेब ने इस वृक्ष को नष्ट करने के बहुत प्रयास किए। इसे खुदवाया, जलवाया, इसकी जड़ों में तेजाब तक डलवाया। किन्तु वर प्राप्त यह अक्षयवट आज भी विराजमान है। आज भी औरंगजेब के द्वारा जलाने के चिन्ह देखे जा सकते हैं। चीनी यात्री ह्वेन सांग ने इसकी विचित्रता से प्रभावित होकर अपने संस्मरण में इसका उल्लेख किया है।
 
 
प्रयाग राज कैसे बना इलाहाबाद : इस देवभूमि का प्राचीन नाम प्रयाग ही था, लेकिन जब मुस्लिम शासक अकबर यहां आया और उसने इस जगह के हिंदू महत्व को समझा, तो उसने इसका नाम 1583 में बदलकर 'अल्लाह का शहर' रख दिया। मुगल बादशाह अकबर के राज इतिहासकार और अकबरनामा के रचयिता अबुल फज्ल बिन मुबारक ने लिखा है कि 1583 में अकबर ने प्रयाग में एक बड़ा शहर बसाया और संगम की अहमियत को समझते हुए इसे 'अल्लाह का शहर', इल्लाहावास नाम दे दिया।
 
 
जब भारत पर अंग्रेज राज करने लगे तो रोमन लिपी में इसे 'अलाहाबाद' लिखा जाने लगा, जो बाद में बिगड़कर इलाहाबाद हो गया। परन्तु इस सम्बन्ध में एक मान्यता और भी है कि 'इला' नामक एक धार्मिक सम्राट, जिसकी राजधानी प्रतिष्ठानपुर थी, के वास के कारण इस जगह का नाम 'इलावास' पड़ा, जो अब झूसी है। कालान्तर में अंग्रेज़ों ने इसका उच्चारण इलाहाबाद कर दिया।
 
 
हालांकि यह भी कहा जाता है कि अकबर ने हिंदू एवं मुस्लिम दोनों धर्मो को मिलाकर एक नया धर्म चलाया था जिसका नाम उसने 'दीनेइलाही' रखा। कहते हैं कि इस प्रकार 'इलाही' जहां पर 'आबाद' हुआ वह इलाहाबाद कहलाया। तभी से प्रयाग को इलाहाबाद के नाम से जाना जाता रहा है। वर्तमान में राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इसका नाम बदलक वही प्राचीन नाम कर दिया है- प्रयागराज।
 
 
प्रयागराज का इतिहास : हिंदू मान्यताओं के मुताबिक ब्रह्मा ने इसकी रचना से पहले यज्ञ करने के लिए धरती पर प्रयाग को चुना और इसे सभी तीर्थों में सबसे ऊपर, यानी तीर्थराज बताया। कुछ मान्यताओं के मुताबिक ब्रह्मा ने संसार की रचना के बाद पहला बलिदान यहीं दिया था, इस कारण इसका नाम प्रयाग पड़ा। संस्कृत में प्रयाग का एक मतलब 'बलिदान की जगह' भी है। पुराणों अनुसार प्राचीन समय में प्रयाग कोई नगर नहीं था बल्कि तपोभूमि और तीर्थ था। मान्यता अनुसार यह तीर्थ क्षेत्र लगभग 15 हजार ईसा पूर्व से विद्यामान है। यहां तीन हजार वर्षों से कुंभ का आयोजन होता आया है।
 
 
कहते हैं कि यहां एक बस्ती थी जो भारद्वाज आश्रम के आसपास कहीं थी। पहले भारद्वाज आश्रम से झूंसी तक गंगा का क्षेत्र था। उस समय संगम कहीं चौक से पूर्व और दक्षिण अहियापुर में रहा था। फिर धीरे-धीरे इन नदियों के स्थान में परिवर्तन आया। अतरसुइया (अत्रि और अनसुइया) प्रयागराज का सबसे पुराना मोहल्ला है जो अकबर के समय से पहले से ही विद्यामान था। खुल्दाबाद जहांगीर के समय में आबाद हुआ, दारागंज दाराशिकोह के नाम पर कायम हुआ। कटरा औरगंजेब के समय में जयपुर के महाराजा सवाईसिंह ने बसाया था।
 
 
बांध के नीचे गंगा, यमुना और सरस्वती का पवित्र संगम क्षेत्र जहां प्रतिवर्ष माघ में और छठवें तथा बारहवें वर्ष अर्द्धकुंभ और कुंभ के अवसर पर समग्र देश के विभिन्न अंचलों से करोड़ों लोग यहां स्नान के लिए आते हैं।

ज्ञात इतिहास के अनुसार यह भू-भाग पर महाभारत काल के इन्द्रप्रस्थ की तरह विद्यमान रहा है जो 3000 ईसा पूर्व था। 600 ईसा पूर्व में वर्तमान प्रयागराज जिला के भागों को आवृत्त करता हुआ एक राज्य था। इसे 'कौशाम्बी' की राजधानी के साथ "वत्स" कहा जाता था। जिसके अवशेष आज भी प्रयागराज के पश्चिम में स्थित है। महात्मा गौतम बुद्ध ने इस पवित्र नगरी की तीन बार यात्राएं की थी। इससे सिद्ध होता है कि तब यह क्षेत्र एक नगर के रूप में विकसित था।
 
 
इस क्षेत्र के मौर्य साम्राज्य के अधीन आने के पश्चात् कौशाम्बी को अशोक के प्रांतों में से एक का मुख्यालय बनाया गया था। उसके अनुदेशों के अधीन दो अखण्ड स्तम्भों का निर्माण कौशाम्बी में किया गया था। जिनमें से एक बाद में प्रयागराज स्थानांतरित कर दिया गया था। मौर्य साम्राज्य की पुरातन वस्तुएं एवं अवशेषों की खुदायी, जिले के एक अन्य महत्वपूर्ण स्थान भीटा से की गयी है।
 
 
मौर्य के पश्चात् शुंगों ने वत्स या प्रयागराज क्षेत्र पर राज्य किया। यह प्रयागराज जिले में पाई गई शुंगकालीन कलात्मक वस्तुओं से सिद्ध होता है। शुंगों के पश्चात् कुषाण सत्ता में आए- कनिष्क की एक मुहर और एक अद्वितीय मूर्ति लेखन कौशाम्बी में पाई गई। कौशाम्बी, भीटा एवं झूंसी में गुप्त काल की वस्तुएं मिलता इसकी प्राचीनता का सिद्ध करता है। अशोक स्तम्भ के निकाय पर समुद्रगुप्त की प्रशस्ति की पंक्तियां खुदी हुई हैं जब कि झूंसी में वहां उसके पश्चात् नामित समुद्र कूप विद्यमान है। गुप्तों के पराभव पर प्रयागराज का भविष्य विस्मृत हो गया। हृवेनसांग ने 7वीं शताब्दी में प्रयागराज की यात्रा की थी और प्रयाग को मूर्तिपूजकों का एक महान शहर के रूप में वर्णित किया था।
 
 
1540 में शेरशाह हिन्दुस्तान का शासक बना। 1557 में झूंसी एवं प्रयाग के अधीन ग्राम मरकनवल में जौनपुर के विद्रोही गवर्नर और अकबर के मध्य एक युद्ध लड़ा गया था। विजय के उपरांत अकबर एक दिन में ही प्रयाग आया और वाराणसी जाने के पूर्व दो दिनों तक यहां विश्राम किया। अकबर वर्ष 1575 में पुनः प्रयाग आया और एक शाही शहर की आधारशिला रखी। जिसे उसने इलाहाबास कहा। अकबर के शासन के अधीन नवीन शहर तीर्थयात्रा का अपेक्षित स्थान हो गया था।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

मकर संक्रांति रेसिपी : बस 3 टिप्स और होममेड तिल-चॉकलेटी लड्डू तैयार...