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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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राजकोट, रूपाला और राजपूत, क्यों सुर्खियों में हैं नरेंद्र मोदी के मंत्री पुरुषोतम?

राजकोट से भाजपा प्रत्याशी पुरुषोत्तम रूपाला से क्यों नाराज हुए राजपूत

Rupala
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वृजेन्द्रसिंह झाला

Rajkot loksabha election : पिछली बार गुजरात की सभी 26 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने वाली सत्तारूढ़ भाजपा के लिए इस बार हालात पूरी तरह अनुकूल नजर नहीं आ रहे हैं। पार्टी को विरोध के चलते सावरकांठा और जामनगर में उम्मीदवार बदलना पड़े, वहीं केन्द्रीय मंत्री और राजकोट से भाजपा प्रत्याशी पुरुषोत्तम रूपाला ने राजपूत समाज को नाराज कर दिया है।
 
गुजरात का क्षत्रिय समाज खुलकर रूपाला के ‍‍विरोध में उतर आया है और राजकोट से उम्मीदवार बदलने की मांग कर रहा है। हालांकि इसकी उम्मीद अब नहीं के बराबर है कि पार्टी राजकोट से किसी और प्रत्याशी को मैदान में उतारे। 
 
भाजपा ने वर्तमान सांसद मोहन कुंडारिया का टिकट काटकर राजकोट लोकसभा सीट से केन्द्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने ललितभाई कगथरा को उम्मीदवार बनाया है। वे पिछला चुनाव हार चुके हैं। हाल ही में रूपाला द्वारा क्षत्रिय (राजपूत) समाज को लेकर की गई टिप्पणी से गुजरात का क्षत्रिय समाज रूपाला का विरोध कर रहा है।
 
समाज का कहना है कि रूपाला का टिकट काटकर किसी और को राजकोट संसदीय सीट से उम्मीदवार बनाया जाना चाहिए। हालांकि क्षत्रिय समाज की नाराजगी का असर पार्टी पर होता दिख नहीं रहा है। यदि यह मामला नहीं सुलझता है तो भाजपा को पूरे राजपूत समाज का विरोध झेलना पड़ सकता है। गुजरात में राजपूत समाज की आबादी 17 फीसदी है, जबकि राजकोट जिले में ही लगभग तीन लाख राजपूत मतदाता हैं।
 
क्या कहा था रूपाला ने : दरअसल, रूपाला ने 22 मार्च को राजकोट में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि तत्कालीन महाराजाओं ने विदेशी शासकों और अंग्रेजों के आगे घुटने टेक दिए थे। इन महाराजाओं ने उनके साथ रोटी-बेटी का संबंध रखा। रूपाला ने हालांकि टिप्पणी के लिए समाज से माफी मांग ली, लेकिन समाज ने इसे अस्वीकार कर दिया। अब समाज रूपाला को हटाने पर अड़ा हुआ है।
 
क्षत्रिय समुदाय समन्वय समिति के सदस्य वीरभद्र सिंह ने कहा, हम उनकी माफी को अस्वीकार करते हैं क्योंकि उन्होंने इसे अपने दिल से नहीं कहा। वह चुनाव के बाद भी ऐसी टिप्पणी कर सकते हैं। अगर रूपाला को नहीं हटाया गया, तो हम सुनिश्चित करेंगे कि उन्हें चुनाव में हार का मुंह देखना पड़े। क्षत्रिय नेता वीरभद्र सिंह ने कहा कि हम भाजपा के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन रूपाला को नहीं हटाया गया तो पार्टी को परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए।
 
क्या कहते हैं जानकार : राजकोट के वरिष्ठ पत्रकार जनक सिंह झाला कहते हैं कि भले ही क्षत्रिय समाज विरोध कर रहे है, लेकिन पुरुषोत्तम रूपाला का टिकट नहीं बदला जाएगा। क्योंकि दिल्ली से लौटने के बाद वे काफी कॉन्फिडेंट नजर आ रहे हैं। हालांकि दिल्ली जाने से पहले पहले उनकी बॉडी लैंग्वेज कमजोर नजर नहीं आ रही थी।
 
इस मामले के उठने के बाद राजपूत और पाटीदार समाज आमने-सामने दिखाई दे रहे हैं, जो कि दुखद है। रूपाला के बयान का असर समाज पर साफ देखा जा रहा है। इससे दोनों ही समाजों में एक दूसरे के प्रति विद्वेष बढ़ने की आशंका है, जो किसी भी तरह से देश और समाज के लिए अच्छा नहीं है।
 
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राजकोट के जातीय समीकरण : राजकोट संसदीय क्षेत्र में जातिगत समीकरण पुरुषोत्तम रूपाला के पक्ष में हैं। यहां उनके अपने समुदाय पाटीदार समाज (कड़वा और लेउवा) के वोटरों की संख्या 25 फीसदी के लगभग है, जबकि क्षत्रियों की संख्‍या 8 फीसदी के लगभग है। इनके अलावा कोलाई 15 प्रतिशत, खेप 10 फीसदी, मुस्लिम 10 प्रतिशत, दलित 8 प्रतिशत, लोहाना 6 प्रतिशत और ब्राह्मणों की संख्‍या 7 प्रतिशत के लगभग है।
 
पिछले चुनाव में भाजपा के मोहन कुंडारिया ने 3 लाख 68 हजार से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की थी, ऐसे में रूपाला की राह भी मुश्किल नजर नहीं आती। लेकिन राजपूत समाज का विरोध बढ़ता है तो भाजपा उम्मीदवारों की जीत का अंतर जरूर कम हो सकता है, जबकि इस बार पार्टी ने अपने उम्मीदवारों को बड़ी जीत का लक्ष्य दिया है।
 
राजकोट संसदीय क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या  20 लाख 96 हजार 366 है। इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 10 लाख 85 हजार 577 है, जबकि महिला वोटरों की संख्‍या 10 लाख 10 हजार 754 है।
 
क्या कहता है राजकोट का चुनावी इतिहास : महात्मा गांधी की क्रीड़ा स्थली रहे राजकोट के 1952 से अब तक के चुनावों पर नजर डालें तो भाजपा का ही पलड़ा भारी रहा है। 1952 से 1962 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा, लेकिन 1967 में कांग्रेस की जीत के सिलसिले को स्वतंत्र पार्टी की मीनू मसानी ने तोड़ा। 1971 में फिर कांग्रेस जीती, लेकिन आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में जनता पार्टी के केशुभाई पटेल चुनाव जीतने में सफल रहे। 1980 और 1984 में यहां से फिर कांग्रेस जीती। 2009 का लोकसभा चुनाव छोड़ दें तो 1989 से 2019 के चुनाव में भाजपा का ही झंडा बुलंद रहा। वल्लभभाई कथीरिया इस सीट से सर्वाधिक 4 बार (1996-2004) सांसद रहे।

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