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विजया-पार्वती व्रत : पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, महत्व, मंत्र और प्रामाणिक कथा

विजया-पार्वती व्रत : पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, महत्व, मंत्र और प्रामाणिक कथा
Vijaya parvati Vrat 2021

 

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन एक विशेष व्रत किया जाता है। जिसे जया-पार्वती व्रत अथवा विजया-पार्वती व्रत के नाम से जाना जाता है। यह व्रत पांच दिनों तक यानी शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से शुरू होकर श्रावण मास के कृष्ण पक्ष तृतीया तक चलता है। वर्ष 2021 में यह व्रत 22 जुलाई से शुरू 26 जुलाई तक जारी रहेगा। 
 
यह व्रत को पूरे मन से करने पर भगवान शिव और पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह मालवा क्षेत्र का लोकप्रिय पर्व है और बहुत कुछ गणगौर, हरतालिका, मंगला गौरी और सौभाग्य सुंदरी व्रत की तरह है। इस व्रत से माता पार्वती को प्रसन्न किया जाता है। अखंड सौभाग्य और समृद्धि के लिए वह व्रत रखा जाता है। पुराणों के अनुसार यह व्रत स्त्रियों द्वारा किया जाता है।

यह व्रत करने से स्त्रियों को अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त होता है। इस व्रत का रहस्य भगवान विष्णु ने मां लक्ष्मी को बताया था। कहीं इसे एक दिन और कहीं इसे 5 दिन तक मनाया जाता है। इस व्रत को कुंआरी लड़कियां अच्छा पति तथा सुहागिनें पति की दीर्घायु के लिए रखती है। इस व्रत को शुरू करने के बाद कम से कम 5, 7, 9, 11 या 20 साल तक करना होता है। 
 
इस व्रत में बालू रेत का हाथी बना कर उन पर 5 प्रकार के फल, फूल और प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। इस व्रत में नमक खाने की मनाही होती है। इसके अलावा गेहूं का आटा और सभी तरह की सब्जियां भी नहीं खाना चाहिए ऐसी मान्यता है। व्रत के दौरान फल, दूध, दही, जूस एवं दूध से निर्मित मिठाइयां खा सकते हैं। इस व्रत में सिर्फ एक समय बिना नमक का ज्वार से बना भोजन किया जाता है। आइए जानें विजया-पार्वती व्रत के दिन कैसे करें व्रत पूजन-

 
कैसे करें विजया-पार्वती व्रत का पूजन-
 
* आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें।
 
* तत्पश्चात व्रत का संकल्प करके माता पार्वती का स्मरण करें।
 
* घर के मंदिर में शिव-पार्वती की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
 
* फिर शिव-पार्वती को कुंमकुंम, शतपत्र, कस्तूरी, अष्टगंध और फूल चढ़ाकर पूजा करें।
 
 
* नारियल, अनार व अन्य सामग्री अर्पित करें।
 
* अब विधि-विधान से षोडशोपचार पूजन करें।
 
* माता पार्वती का स्मरण कर स्तुति करें।
 
* फिर मां पार्वती का ध्यान धरकर सुख-सौभाग्य और गृहशांति के लिए सच्चे मन से प्रार्थना कर अपने द्वारा हुई गलतियों की क्षमा मांगें।
 
* पार्वती मंत्र : ॐ शिवाय नम: का अधिक से अधिक जाप करें।
 
* कथा का श्रवण करें, कथा के बाद आरती कर पूजन संपन्न करें।
 
* ब्राह्मण को भोजन करवाएं और इच्छानुसार दक्षिणा देकर, चरण छूकर आशीर्वाद लें।
 
* अगर बालू रेत का हाथी बनाया है तो रात्रि जागरण के पश्चात उसे नदी या जलाशय में विसर्जित करें।
 
विजया-पार्वती व्रत पूजन के शुभ मुहूर्त- 
 
* अभिजीत मुहूर्त- अपराह्न 11:57 से 12:52 तक।
* विजय मुहूर्त दोपहर 02:43 से 03:38 तक।
* गोधूलि - सायंकाल 07:05 से 07:29 तक रहेगा। 
 
कथा- 
 
विजया पार्वती व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार किसी समय कौंडिल्य नगर में वामन नाम का एक योग्य ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सत्या था। उनके घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी, लेकिन संतान नहीं होने से वे बहुत दुखी रहते थे।
 
एक दिन नारद जी उनके घर पधारें। उन्होंने नारद की खूब सेवा की और अपनी समस्या का समाधान पूछा। तब नारद जी ने उन्हें बताया कि तुम्हारे नगर के बाहर जो वन है, उसके दक्षिणी भाग में बिल्व वृक्ष के नीचे भगवान शिव माता पार्वती के साथ लिंगस्वरूप में विराजित हैं। उनकी पूजा करने से तुम्हारी मनोकामना अवश्य ही पूरी होगी।

 
तब ब्राह्मण दंपत्ति ने उस शिवलिंग की ढूंढकर उसकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। इस प्रकार पूजा करने का क्रम चलता रहा और 5 वर्ष बीत गए। एक दिन जब वह ब्राह्मण पूजन के लिए फूल तोड़ रहा था तभी उसे सांप ने काट लिया और वह वहीं जंगल में गिर गया। ब्राह्मण जब काफी देर तक घर नहीं लौटा तो उसकी पत्नी उसे ढूंढने आई। पति को इस हालत में देख वह रोने लगी और वन देवता व माता पार्वती को स्मरण किया।
 
 
ब्राह्मणी की पुकार सुनकर वन देवता और मां पार्वती चली आईं और ब्राह्मण के मुख में अमृत डाल दिया, जिससे ब्राह्मण उठ बैठा। तब ब्राह्मण दंपत्ति ने माता पार्वती का पूजन किया। माता पार्वती ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें वर मांगने के लिए कहा। तब दोनों ने संतान प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की, तब माता पार्वती ने उन्हें विजया पार्वती व्रत करने की बात कहीं।

 
आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन उस ब्राह्मण दंपत्ति ने विधिपूर्वक माता पार्वती का यह व्रत किया, तब उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। इस दिन व्रत करने वालों को संतान की प्राप्ति होती है तथा उनका सौभाग्य अखंड बना रहता है।

 

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