Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

ज्येष्ठ पूर्णिमा पर क्यों किया जाता है वट वृक्ष का पूजन, जानें पौराणिक महत्व...

ज्येष्ठ पूर्णिमा पर क्यों किया जाता है वट वृक्ष का पूजन, जानें पौराणिक महत्व...
भारत के पूज्यनीय वृक्षों में वट यानी बरगद का महत्वपूर्ण स्थान है। इसे अमरता का प्रतीक भी माना जाता है। वैदिक धर्म के साथ-साथ जैन तथा बौद्घ धर्मों में भी वट वृक्ष का काफी महत्व माना गया है। स्कंद पुराण के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन करना चाहिए। अत: गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत की स्त्रियां ज्येष्ठ पूर्णिमा को यह व्रत करती हैं।
 
हमारे देश की संस्कृति, सभ्यता और धर्म से वट का गहरा नाता है। वट वृक्ष एक ओर शिव का रूप माना गया है तो दूसरी ओर पद्म पुराण में इसे भगवान विष्णु का अवतार कहा गया है। अतः सौभाग्यवती महिलाएं ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को व्रत रखकर वट वृक्ष की पूजा करती हैं, जिसे वट सावित्री व्रत कहते हैं।


इस ‍दिन महिलाएं वट की पूजा-अर्चना तथा परिक्रमा पुत्र कामना तथा सुख-शांति के लिए भी करती हैं। इस दिन वटवृक्ष को जल से सींचकर उसमें सूत लपेटते हुए उसकी 108 बार परिक्रमा की जाती है। पुराणों में लिखा है कि वटवृक्ष के मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में महादेव का वास होता है।

इस प्रकार इस पवित्र वृक्ष में सृष्टि के सृजन, पालन और संहार करने वाले त्रिदेवों की दिव्य ऊर्जा का अक्षय भंडार उपलब्ध होता है। ऐसी मान्यता है कि वट सावित्री पूर्णिमा के दिन पूजा-अर्चना करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। कुछ क्षेत्रों में ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है जो कि वट सावित्री व्रत के समान ही होता है। 

धार्मिक दृष्टि से तो वट का महत्व है ही, चिकित्सा की दृष्टि से भी बरगद बहुत उपयोगी है। प्राचीन ग्रंथ वृक्षायुर्वेद में बताया गया है कि जो यथोचित रूप से बरगद के वृक्ष लगाता है, वह शिव धाम को प्राप्त होता है तथा आयुर्वेदिक मत से वट वृक्ष के सभी हिस्से कसैले, मधुर, शीतल तथा आंतों का संकुचन करने वाले होते हैं। कफ, पित्त आदि विकार को नष्ट करने के लिए इसका प्रयोग होता है। वमन, ज्वर, मूर्च्छा आदि में इसका प्रयोग लाभदायक है।

 इस दिन किसी योग्य ब्राह्मण अथवा जरूरतमंद व्यक्ति को अपनी श्रद्धानुसार दान-दक्षिणा देने से पुण्‍यफल प्राप्त होता है तथा प्रसाद में चने व गुड़ का वितरण करने का महत्व है।


Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

29 मई को ज्येष्ठ पूर्णिमा, सुहागिनें वट वृक्ष की पूजा करके लेंगी आशीष...