शीतला सप्तमी पर ऋतु का अंतिम बासी भोजन किया जाता है और सीख ली जाती है कि अब गर्मी में बासी भोजन से परहेज करना है। इस वर्ष शीतला सप्तमी 27 मार्च को है जबकि शीतला अष्टमी 28 मार्च को है।
जीवन में शांति और समृद्धि के लिए भी वर और वधु मां शीतला का पूजन करते हैं। हमारे जीवन में संताप और ताप से हम बचे रहें और शांति और शीतलता बनी रहे इस कामना से हम मां शीतला का पूजन करते हैं।
होली के त्योहार के सातवें दिन शीतला सप्तमी मनाई जाती है। कहीं-कहीं इसे शीतला अष्टमी के दिन भी मनाया जाता है। बासी भोजन का भोग लगाने के कारण अनेक जगहों पर इसे बसौड़ा त्योहार कहकर भी पुकारा गया है। शीतला सप्तमी के दिन स्त्रियां परिवार की खुशहाली और शांति की कामना से श्वेत पाषाण रुपी माता शीतला की पूजा करती हैं।
इन पाषाणों की संख्या 7, 8 या 9 होती है। संपूर्ण उत्तर भारत में शीतला सप्तमी का त्योहार मनता है। इस दिन भगवती शीतला का पूजन किया जाता है। उनके पूजन का विधान बहुत ही अनोखा है।
किसी त्योहार पर बासी भोजन की परंपरा थोड़ा चकित करने वाली जरूर है लेकिन इसके पीछे तर्क और युक्ति है। दरअसल शीतला सप्तमी पर वसंत ऋतु बीत रही होती है और ग्रीष्म का आगमन होता है तो इस त्योहार पर अंतिम बार बासी भोजन किया जाता है ।
चूंकि गर्मी में भोजन जल्दी ही दूषित हो जाता है इसलिए भूलवश भी बासी भोजन नहीं करना है यह शीतला सप्तमी का पर्व हमें सिखाता है। हमारे सारे ही पर्वों में कुछ न कुछ सीख छिपी थी लेकिन समय के साथ उनके अर्थ थोड़े बदल गए और हमने उनके महत्वों को ठीक तरह से नहीं समझा। अगर हम अपनी परंपराओं में छिपे अर्थों को देखेंगे तो पाएंगे कि हर पर्व का कुछ महत्व है।
शीतला सप्तमी के दिन प्रात:काल में स्त्रियां पूजन के लिए जाती हैं। शीतला माता को बाजरा, जौ, चने और अन्य अन्ना उबालकर उसकी राबड़ी का भोग लगाती हैं। इस अन्न को देवी को चढ़ाए जाने का भी प्रतीकात्मक महत्व यह है कि अब चूंकि ऋतु बदल गई है तो अपने खानपान में ऐसी ही चीजों को शामिल करना है जो शीतलता दे। शीतला माता को दुग्ध और दही से भी स्नान कराया जाता है और उसके पीछे मान्यता यही है कि देवी की कृपा से पारिवारिक रिश्तों के बीच कभी खटास न आने पाए और संबंध हमेशा सरस बने रहें।
स्कंद पुराण में मां शीतला को हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किए हुए चित्रित किया गया है। शीतला माता के हाथ में होने वाली इन सभी चीजों का प्रतीकात्मक महत्व है। हाथ में मार्जनी (झाडू) होने का अर्थ है कि सभी लोगों को सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए।
कलश से तात्पर्य है कि स्वच्छता रखने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है। स्कन्द पुराण में मां शीतला की अर्चना के लिए शीतलाष्टक का वर्णन है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी। शास्त्रों में भगवती शीतला की वंदना के लिए यह मंत्र बताया गया है-
'वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्। मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम।।'