Shabari Jayanti 2022: आज शबरी जयंती, जानें पूजा की तिथि, विधि और महत्व
प्रतिवर्ष फाल्गुन कृष्ण सप्तमी तिथि को शबरी जयंती (Shabari Jayanti 2022) मनाई जाती है। मान्यतानुसार चौदह वर्ष के वनवास के दौरान मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम ने शबरी के झूठे बेर खाए थे। इसी कारण हर साल जानकी जयंती के एक दिन पहले सप्तमी तिथि को शबरी जयंती धूमधाम से मनाई जाती है। इस वर्ष 23 फरवरी 2022, बुधवार को शबरी जयंती मनाई जा रही है।
हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की सप्तमी को माता शबरी का प्रभु श्री राम से मिलन हुआ था और शबरी की भक्ति देखकर ही भगवान राम ने उनके झूठे बेर खाकर को उनके प्रेम का मान बढ़ाया था। इस दिन श्री राम के भक्त धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करके शोभायात्रा निकाल कर शबरी को याद करके पूरे मनोभाव से उनका पूजन-अर्चन करते हैं।
शबरी जयंती पूजा विधि-Shabari Jayanti Puja Vidhi
- शबरी जयंती यानी फाल्गुन कृष्ण सप्तमी के दिन सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले प्रभु राम तथा माता शबरी का नाम स्मरण करके उन्हें प्रणाम करें।
- प्रतिदिन के दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करके नए वस्त्र धारण करें। अगर घर में गंगा जल हो तो नहाने के पानी में अवश्य ही मिलाएं, फिर स्नान करें।
- अब मंदिर की साफ-सफाई करके आमचन करके खुद को पवित्र कर लें।
- अब व्रत संकल्प लें।
- प्रभु श्री राम, माता सीता तथा माता शबरी का पूजन करें।
- अब पुष्प, दूर्वा, सिंदूर, अक्षत, धूप, दीप तथा अगरबत्ती आदि से पूजन करें।
- तत्पश्चात मौसमी फल, मिठाई तथा बेर का प्रसाद चढ़ाएं।
- अब आरती करके उपवास रखें।
- शाम के समय पुन: पूजन, आरती करने के पश्चात फलाहार लें।
- शबरी जयंती के दिन रामायण का पाठ, शबरी की कथा का वाचन किया जाता है।
- तत्पश्चात अगले दिन नहा-धोकर स्वच्छ वस्त्र पहन कर पूज करें तथा व्रत को खोलें।
यह व्रत परिवार को खुशहाली देने वाला माना जाता है। अत: पूजन के पश्चात प्रभु श्री राम से परिवारजनों के अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करें।
शबरी जयंती के मुहूर्त-Shabari Jayanti Muhurat
तिथि- 23 फरवरी 2022, बुधवार
फाल्गुन कृष्ण सप्तमी तिथि का प्रारंभ- मंगलवार, 22 फरवरी 2022, सायंकाल 6.34 मिनट से।
सप्तमी तिथि की समाप्ति- बुधवार, 23 फरवरी 2022 को शाम 4.56 मिनट पर।
शबरी की कथा- Shabari ki katha-
आपने रामायण के दौरान शबरी का जिक्र सुना, जाना और पढ़ा ही होगा आइए आज जानते हैं उनके बारे में विस्तार से...
शबरी श्री राम की परम भक्त थीं। जिन्होंने राम को अपने झूठे बेर खिलाए थे। शबरी का असली नाम श्रमणा था। वह भील समुदाय के शबर जाति से संबंध रखती थीं। इसी कारण कालांतर में उनका नाम शबरी पड़ा। उनके पिता भीलों के मुखिया थे। श्रमणा का विवाह एक भील कुमार से तय हुआ था, विवाह से पहले कई सौ पशु बलि के लिए लाए गए। जिन्हें देख श्रमणा बड़ी आहत हुई.... यह कैसी परंपरा? ना जाने कितने बेजुबान और निर्दोष जानवरों की हत्या की जाएगी... इस कारण शबरी विवाह से 1 दिन पूर्व भाग गई और दंडकारण्य वन में पहुंच गई।
दंडकारण्य में मातंग ऋषि तपस्या किया करते थे, श्रमणा उनकी सेवा तो करना चाहती थी पर वह भील जाति की होने के कारण उसे अवसर ना मिलाने का अंदेशा था। फिर भी शाबर सुबह-सुबह ऋषियों के उठने से पहले उनके आश्रम से नदी तक का रास्ता साफ़ कर देती थीं, कांटे चुनकर रास्ते में साफ बालू बिछा देती थी। यह सब वे ऐसे करती थीं कि किसी को इसका पता नहीं चलता था।
एक दिन ऋषि श्रेष्ठ को शबरी दिख गई और उनके सेवा से अति प्रसन्न हो गए और उन्होंने शबरी को अपने आश्रम में शरण दे दी। जब मतंग का अंत समय आया तो उन्होंने शबरी से कहा कि वे अपने आश्रम में ही भगवान राम की प्रतीक्षा करें, वे उनसे मिलने जरूर आएंगे। मतंग ऋषि की मौत के बात शबरी का समय भगवान राम की प्रतीक्षा में बीतने लगा, वह अपना आश्रम एकदम साफ़ रखती थीं। रोज राम के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती थी। बेर में कीड़े न हों और वह खट्टा न हो इसके लिए वह एक-एक बेर चखकर तोड़ती थी। ऐसा करते-करते कई साल बीत गए।
एक दिन शबरी को पता चला कि दो सुंदर युवक उन्हें ढूंढ रहे हैं, वे समझ गईं कि उनके प्रभु राम आ गए हैं... उस समय तक वह वृद्ध हो चली थीं, लेकिन राम के आने की खबर सुनते ही उसमें चुस्ती आ गई और वह भागती हुई अपने राम के पास पहुंची और उन्हें घर लेकर आई और उनके पांव धोकर बैठाया।
अपने तोड़े हुए मीठे बेर राम को दिए राम ने बड़े प्रेम से वे बेर खाए और लक्ष्मण को भी खाने को कहा। लक्ष्मण को जूठे बेर खाने में संकोच हो रहा था, राम का मन रखने के लिए उन्होंने बेर उठा तो लिए लेकिन खाए नहीं। इसका परिणाम यह हुआ कि राम-रावण युद्ध में जब शक्ति बाण का प्रयोग किया गया तो वे मूर्छित हो गए थे, तब इन्हीं बेर की बनी हुई संजीवनी बूटी उनके काम आई थी।
यह है माता शबरी की पुण्य कथा।
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