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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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ऋषि पंचमी पर जानिए पूजा विधि और पूजन का शुभ मुहूर्त

ऋषि पंचमी पर जानिए पूजा विधि और पूजन का शुभ मुहूर्त
Rishi Panchami 2023: भाद्रपद के शुक्ल पक्षी की गणेश चतुर्थी के बाद ऋषि पंचमी का महापर्व मनाया जाता है। कुल परंपरा से यह हर कुल में अलग अलग तरह से मनाया जाता है। इस दिन लोग ऋषियों के साथ ही अपने कुल देवता और नागदेव की पूजा भी करते हैं। आओ जानते हैं पूजा की विधि और पूजन का शुभ मुहूर्त। 19 सितंबर 2023 मंगल वार के दिन चतुर्थी के साथ ही पंचमी भी रहेगी। उदयातिथि से 20 सितंबर को यह पर्व मनाया जाएगा।
 
पंचमी तिथि प्रारंभ : 19 सितंबर 2023 दोपहर 01 बजकर 43 मिनट से प्रारंभ।
पंचमी तिथि समापन : 20 सितंरब 2023 दोपहर 02 बजकर 16 मिनट को समाप्त।
नोट : स्थानीय समय के अनुसार तिथि के समय में 2 ये 5 मिनट की घटबढ़ रहती है।
 
पूजा का शुभ मुहूर्त :-
ऋषि पञ्चमी पूजा मुहूर्त- सुबह 11:07 से दोपहर 01:33 तक। 
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:56 से दोपहर 12:45 तक।
विजय मुहूर्त: दोपहर 02:22 से 03:11 तक।
गोधूलि मुहूर्त: शाम 06:27 से 06:50 तक।
सायाह्न सन्ध्या: शाम 06:27 से 07:37 तक।
रवि योग : प्रात: 06:14 से दोपहर 01:48 तक।
 
क्यों करते हैं पूजा?
ऋषि पंचमी पर कश्यप ऋषि की जयंती रहती है। 
इस दिन सप्त ऋषियों की पूजा की जाती है।
इस दिन महिलाएं परिवार की सुख, शांति और समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं।
 
सप्तऋषि पूजन का मंत्र -
'कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः'॥
 
ऋषि पंचमी पूजा की विधि:
इस दिन प्रात: काल जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर सप्त ऋषियों की पूजा की तैयारी करते हैं।
इसके लिए हल्दी से दीवार या भूमि पर तारे सितारों के साथ सप्त ऋषियों की आकृति बनाकर उनकी पूजा करते हैं।
अपने घर के स्वच्छ स्थान पर हल्दी, कुमकुम, रोली आदि से चौकोर मंडल बनाकर उस पर सप्तऋषियों की स्थापना करें। 
गंध, पुष्प, धूप, दीप नैवेद्यादि से पूजन करके निम्न मंत्र से सप्तऋषियों को अर्घ्य दें।
 
सप्तऋषि पूजन का मंत्र -
'कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः'॥
 
  • तपश्चात बिना बोया पृथ्वी में पैदा हुए शाकादिका आहार करके ब्रह्मचर्य का पालन करके व्रत करें। 
  • इस प्रकार सात वर्ष व्रत करके आठवें वर्ष में सप्तर्षिकी पीतवर्ण सात मूर्ति युग्मक ब्राह्मण-भोजन कराकर उनका विसर्जन करें।
  • इस संबंध में यह भी मान्यता है कि भारत के कहीं-कहीं दूसरे स्थानों पर, किसी प्रांत में महिलाएं पंचताडी तृण एवं भाई के दिए हुए चावल कौवे आदि को देकर फिर स्वयं भोजन करती है।
  • इस व्रत और पूजा से संतान को लाभ मिलता है और घर परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है।

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