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नृसिंह जयंती, जानिए श्री हरि विष्णु के इस अवतार की 8 रोचक बातें

नृसिंह जयंती, जानिए श्री हरि विष्णु के इस अवतार की 8 रोचक बातें

अनिरुद्ध जोशी

, मंगलवार, 5 मई 2020 (12:50 IST)
भगवान श्रीविष्णु के 24 अवतारों में संभवत: 14वें नंबर के अवतार हैं और 10 अवतारों के क्रम में चौथा अवतार हैं। नरसिंह भगवान का प्रकटोत्सव वैशाख चतुर्दशी को मनाया जाता है। आओ जानते हैं भगवान नरसिंह के संबंध में 8 खास बातें।
 
 
1. इस अवतार में भगवान विष्णु का शरीर आधे मनुष्य और आधे सिंह के समान था। 
 
2. नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध कर अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी।
 
3. दैत्यों का राजा हिरण्यकशिपु स्वयं को भगवान से भी अधिक बलवान मानता था। उसे ब्रह्मा से मनुष्य, देवता, पक्षी, पशु, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न अस्त्र से, न शस्त्र से मरने का वरदान प्राप्त था। 
 
4. हिरण्यकशिपु के राज में जो भी भगवान विष्णु की पूजा करता था उसको दंड दिया जाता था। उसके पुत्र का नाम प्रह्लाद था। प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था। यह बात जब हिरण्यकशिपु का पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुआ और प्रह्लाद को समझाने का प्रयास किया, लेकिन फिर भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकशिपु ने उसे मृत्युदंड दे दिया।
 
5. हर बार भगवान विष्णु के चमत्कार से प्रहलाद वह बच जाते थे। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका, जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, वह प्रह्लाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई। तब भी भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। 
 
6. अंत में हिरण्यकशिपु ने खुद की प्रहलाद को मारने की सोची। व प्रहलाद को पकड़ कर राजभवन में लाया और उसने कहा तु कहता है कि तेरे विष्णु भी जगह है तो क्या इस खंभे में भी है? प्रहलाद कहता है कि हां। तब हिरण्यकशिपु खंबे में एक लाद मारता है। तब भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए। उन्हें देखकर सभी भयभित हो गए 
 
7. नृसिंह भगवान में हिरण्यकशिपु को उठाया और वे उसे महल की देहली पर ले गए। उस वक्त न दिन था न रात। श्रीहरिन उन्हें न धरती पर मारा न आकाश में, न अस्त्र से, न शस्त्र से बल्की देहली पर बैठकर अपनी जंघा पर रखकर उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु की छाती चीर दी।
 
8. भगवान शिव को नृसिंह भगवान के क्रोध को शांत करने के लिए शरभावतार लेना पड़ा था। भगवान शिव का छटा अवतार है शरभावतार। शरभावतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग तथा शेष शरभ पक्षी (पुराणों में वर्णित आठ पैरों वाला जंतु जो शेर से भी शक्तिशाली था) का था।
 
लिंगपुराण में शिव के शरभावतार की कथा है। हिरण्यकशिपु के वध के पश्चात भी जब भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ तो देवता शिवजी के पास पहुंचे। तब भगवान शिव ने अपने गण विरभद्र से कहा कि आप जाकर पहले उनकी स्तुति करें और फिर उनसे क्रोध शांत करने का विनय करें। विरभद्र ने शिव की आज्ञा का पालन किया और उन्होंने ऐसा ही किया लेकिन इससे नृसिंह भगवान का क्रोध और भड़क गया तो विरभद्र आकाश में जाकर छुप गया। 
 
तब स्वयं भगवान शिव ने शरभावतार लिया और वे इसी रूप में भगवान नृसिंह के पास पहुंचे गए तथा उनकी स्तुति करने लगे, लेकिन नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि फिर भी शांत नहीं हुई। यह देखकर शरभ रूपी भगवान शिव अपनी पूंछ में नृसिंह को लपेटकर ले उड़े। तब कहीं जाकर भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत हुई। तब नृसिंह भगवान ने शरभावतार से क्षमा याचना कर अति विनम्र भाव से उनकी स्तुति की।
 
उल्लेखनीय यह कि शिवमहापुराण की कथा के अनुसार इनके शरीर का आधा भाग सिंह का, तथा आधा भाग पक्षी का था। संस्कृत साहित्य के अनुसार वे दो पंख, चोंच, सहस्र भुजा, शीश पर जटा, मस्तक पर चंद्र से युक्त थे। वे शेर और हाथी से भी अधिक शक्तिशाली हैं। बाद के साहित्य में शरभ एक 8 पैर वाले हिरण के रूप में वर्णित है।

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