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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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माघ बिहू या भोगाली बिहू क्या है?

माघ बिहू या भोगाली बिहू क्या है?

WD Feature Desk

Bihu festival 2024 
 
 HIGHLIGHTS
• माघ बिहू असम का प्रमुख पर्व है।
• नई फसल का पर्व भोगाली बिहू है।
• बिहू के समय खेती में जोता जाता है पहली बार हल। 
 
Magh Bihu festival: असम का प्रमुख पर्व माघ बिहू इस साल 16 जनवरी 2024, मंगलवार को मनाया जा रहा है। यह फसल कटाई का उत्सव भी है। पोंगल की तरह ही माघ बिहू भी मुख्य रूप से किसानों का त्योहार है। असम में माघ महीने की संक्रांति के पहले दिन से माघ बिहू अर्थात भोगाली बिहू मनाया जाता है। इस दौरान खान-पान धूमधाम से होता है, क्योंकि तिल, चावल, नारियल, गन्ना इत्यादि फसल उस समय भरपूर होती है और उसी से तरह-तरह की खाद्य सामग्री बनाई जाती है। 
 
माघ बिहू असम का लोकप्रिय त्योहार है। यहां मनाए जाने वाले बिहू मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं। आइए जानते हैं इस पर्व के बारे में- 
 
बैसाख बिहू- असमिया कैलेंडर बैसाख महीने से शुरू होता है, जो अंग्रेजी माह के अप्रैल महीने के मध्य में शुरू होता है और यह बिहू 7 दिन तक अलग-अलग रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। 
 
बैसाख महीने का संक्रांति से बोहाग बिहू शुरू होता है। इसमें प्रथम दिन को गाय बिहू कहा जाता है। इस दिन लोग सुबह अपनी-अपनी गायों को नदी में ले जाकर नहलाते हैं। गायों को नहलाने के लिए रात में ही भिगोकर रखी गई कलई दाल और कच्ची हल्दी का इस्तेमाल किया जाता है। उसके बाद वहीं पर उन्हें लौकी, बैंगन आदि खिलाया जाता है। 
 
माना जाता है कि ऐसा करने से गायें सालभर कुशलपूर्वक रहती हैं। शाम के समय जहां गायें रखी जाती हैं, वहां गाय को नई रस्सी से बांधा जाता है और नाना तरह के औषधि वाले पेड़-पौधे जलाकर मच्छर-मक्खी भगाए जाते हैं। इस दिन लोग दिन में चावल नहीं खाते, केवल दही चिवड़ा ही खाते हैं।
 
पहले बैसाख में आदमी का बिहू शुरू होता है। उस दिन भी सभी लोग कच्ची हल्दी से नहाकर नए कपड़े पहनकर पूजा-पाठ करके दही चिवड़ा एवं नाना तरह के पेठे-लडडू इत्यादि खाते हैं। इसी दिन से असमिया लोगों का नया साल आरंभ माना जाता है। इसी दौरान 7 दिन के अंदर 101 तरह की हरी पत्तियों वाला साग खाने की भी रीति है।
 
इस बिहू का दूसरा महत्व है कि उसी समय धरती पर बारिश की पहली बूंदें पड़ती हैं और पृथ्वी नए रूप से सजती है। जीव-जंतु एवं पक्षी भी नई जिंदगी शुरू करते हैं। नई फसल आने की हर तरह की तैयारी होती है।
 
इस बिहू के अवसर पर संक्रांति के दिन से बिहू नाच नाचते हैं। इसमें 20-25 लोगों की मंडली होती है जिसमें युवक-युवतियां साथ-साथ ढोल, पेपा, गगना, ताल, बांसुरी इत्यादि के साथ अपने पारंपरिक परिधान में एकसाथ बिहू करते हैं।
 
बिहू आजकल बहुत दिनों तक जगह-जगह पर मनाया जाता है। बिहू के दौरान ही युवक एवं युवतियां अपने मनपसंद जीवनसाथी को चुनते हैं और अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करते हैं इसलिए असम में बैसाख महीने में ज्यादातर विवाह संपन्न होते हैं। 
 
बिहू के समय में गांव में विभिन्न तरह के खेल-तमाशों का आयोजन किया जाता है। इसके साथ-साथ खेती में पहली बार के लिए हल भी जोता जाता है। बिहू नाच के लिए जो ढोल व्यवहार किया जाता है उसका भी एक महत्व है। कहा जाता है कि ढोल की आवाज से आकाश में बादल आ जाते हैं और बारिश शुरू हो जाती है जिसके कारण खेती अच्छी होती है।
 
भोगाली बिहू- माघ महीने की संक्रांति के पहले दिन से माघ बिहू अर्थात भोगाली बिहू मनाया जाता है। इस बिहू का नाम भोगाली इसलिए रखा गया है कि इस दौरान खान-पान धूमधाम से होता है, क्योंकि तिल, चावल, नारियल, गन्ना इत्यादि फसल उस समय भरपूर होती है और उसी से तरह-तरह की खाद्य सामग्री बनाई जाती है और खिलाई जाती है।

असम सिर्फ एक प्रदेश का नाम नहीं, प्राकृतिक सौंदर्य, प्रेम, विभिन्न संस्कृतियों इत्यादि की झलक का प्रतीक है। असम की ढेर सारी संस्कृतियों में से 'बिहू' एक ऐसी परंपरा है, जो यहां का गौरव है।
 
कंगाली बिहू या काति बिहू- धान असम की प्रधान फसल है इसलिए धान लगाने के बाद जब धान की फसल में अन्न लगना शुरू होता है, उस समय नए तरह के कीड़े धान की फसल को नष्ट कर देते हैं। इससे बचाने के लिए कार्तिक महीने की संक्रांति के दिन में शुरू होता है काति बिहू।

इस बिहू को काति इसलिए कहा गया है कि उस समय फसल हरी-भरी नहीं होती है इसलिए इस बिहू को काति बिहू मतलब कंगाली बिहू कहा जाता है। संक्रांति के दिन में आंगन में तुलसी का पौधा लगाया जाता है और इसमें प्रसाद चढ़ाकर दीया जलाया जाता है और भगवान से प्रार्थना की जाती है कि वे खेती-बाड़ी पर अपनी कृपा बरसाएं रखें और उसे ठीक से रखें।

 

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