Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

तेजादशमी 2021: क्यों और कब मनाया जाता है यह पर्व, पढ़ें कैसे हुई इसकी शुरुआत

तेजादशमी 2021: क्यों और कब मनाया जाता है यह पर्व, पढ़ें कैसे हुई इसकी शुरुआत
Teja Dashmi 2021
 

भारत के अनेक प्रांतों में तेजादशमी का पर्व श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास के प्रतीकस्वरूप मनाया जाता है। इस साल 16 सितंबर, गुरुवार को तेजा दशमी मनाई जाएगी। भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजादशमी पर्व मनाया जाता है। नवमी की पूरी रात रातीजगा करने के बाद दूसरे दिन दशमी को जिन-जिन स्थानों पर वीर तेजाजी के मंदिर हैं, मेला लगता है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु नारियल चढ़ाने एवं बाबा की प्रसादी ग्रहण करने तेजाजी मंदिर में जाते हैं। भाद्रपद शुक्ल दशमी के दिन मध्यप्रदेश और राजस्थान के कई इलाकों में तेजा दशमी पर्व मनाने की परंपरा है। 
 
इन मंदिरों में वर्षभर से पीड़ित, सर्पदंश सहित अन्य जहरीले कीड़ों की तांती (धागा) छोड़ा जाता है। माना जाता है कि सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति, पशु यह धागा सांप के काटने पर बाबा के नाम से पीड़ित स्थान पर बांध लेते हैं। इससे पीड़ित पर सांप के जहर का असर नहीं होता है और वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाता है।
 
कैसे हुई तेजादशमी के पर्व की शुरुआत- दंतकथाओं और मान्यताओं को मानें और साथ ही इतिहास भी देखें तो वीर तेजाजी का जन्म विक्रम संवत 1130 माघ शुक्ल चतुर्दशी (गुरुवार 29 जनवरी 1074) के दिन खरनाल में हुआ था। नागौर जिले के खरनाल के प्रमुख कुंवर ताहड़जी उनके पिता थे और राम कंवर उनकी मां। दंतकथाओं में अब तक बताया जा रहा था कि तेजाजी का जन्म माघ सुदी चतुर्दशी को 1130 में हुआ था जबकि ऐसा नहीं है। तेजाजी का जन्म विक्रम संवत 1243 के माघ सुदी चौदस को हुआ था। वहीं दंतकथाओं में तेजाजी की वीर गति का साल 1160 बताया गया है जबकि सच यह है कि तेजाजी को 1292 में वीर गति अजमेर के पनेर के पास सुरसुरा में प्राप्त हुई थी। हालांकि तिथि भादवा की दशम ही है।
 
कहते हैं कि भगवान शिव की उपासना और नाग देवता की कृपा से ही वीर तेजाजी जन्मे थे। जाट घराने में जन्मे तेजाजी को जाति व्यवस्था का विरोधी भी माना जाता है। दंत कथाओं में तेजाजी के चार से पांच भाई बताए गए थे जबकि वंशावली के अनुसार तेजाजी तेहड़जी के एक ही पुत्र थे तथा तीन पुत्रियां कल्याणी, बुंगरी व राजल थी। तेजाजी के पिता तेहड़जी के कहड़जी, कल्याणजी, देवसी, दोसोजी चार भाई थे। जिनमें देवसी की संतानों से आगे धोलिया गौत्र चला। धोलिया वंश की उत्पति खरनाल से ही हुई थी। इसके बाद वि.सं. 1650 में कुछ लोग गांव छोड़कर दूसरी जगहों पर जाकर बस गए जिससे राज्य भर में धोलिया जाति फैल गई।
 
हुआ यूं कि वीर तेजाजी का विवाह उनके बचपन में ही पनेर गांव की रायमलजी की बेटी पेमल से हो गया। पेमल के मामा इस रिश्ते के खिलाफ थे और उन्होंने ईर्ष्या में तेजा के पिता ताहड़जी पर हमला कर दिया। ताहड़जी को बचाव के लिए तलवार चलानी पड़ी, जिससे पेमल का मामा मारा गया। 
 
यह बात पेमल की मां को बुरी लगी और इस रिश्ते की बात तेजाजी से छिपा ली गई। बहुत बाद में तेजाजी को अपनी पत्नी के बारे में पता चला तो वह अपनी पत्नी को लेने ससुराल गए। वहां ससुराल में उनकी अवज्ञा हो गई। नाराज तेजाजी लौटने लगे तब पेमल की सहेली लाछा गूजरी के यहां वह अपनी पत्नी से मिले, लेकिन उसी रात मीणा लुटेरे लाछा की गाएं चुरा ले गए। वीर तेजाजी गाएं छुड़ाने के लिए निकल पड़े। रास्ते में आग में जलता सांप मिला जिसे तेजाजी ने बचाया, लेकिन सांप अपना जोड़ा बिछड़ने से दुखी था इसलिए उसने डंसने के लिए फुंफकारा। वीर तेजाजी ने वचन दिया कि पहले मैं लाछा की गाएं छुड़ा लाऊं फिर डंसना। मीणा लुटेरों से युद्ध में तेजाजी गंभीर घायल हो गए।
 
लेकिन इसके बाद भी वह सांप के बिल के पास पहुंचे। पूरा शरीर घायल होने के कारण तेजाजी ने अपनी जीभ पर डंसवाया और भाद्रपद शुक्ल (10) दशमी संवत् 1160 (28 अगस्त 1103) को उनका निर्वाण हो गया। यह देख पेमल सती हो गई। इसी के बाद से राजस्थान के लोकरंग में तेजाजी की मान्यता हो गई। गायों की रक्षा के कारण उन्हें ग्राम देवता के रूप में पूजा जाता है। नाग ने भी उन्हें वरदान दिया था। 
 
मत-मतांतर से यह पर्व मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड़ के तलून, साततलाई, सुंद्रेल, जेतपुरा, कोठड़ा, टलवाई खुर्द आदि गांवों में नवमी एवं दशमी को तेजाजी की थानक पर मेला लगता है। बाबा की सवारी (वारा) जिसे आती है, उसके द्वारा रोगी, दुःखी, पीड़ितों का धागा खोला जाता है एवं महिलाओं की गोद भरी जाती है। सायंकाल बाबा की प्रसादी (चूरमा) एवं विशाल भंडारा आयोजित किया जाता है।
 
ऐसे सत्यवादी और शूरवीर तेजाजी महाराज के पर्व पर उनके स्थानों पर लोग मन्नत पूरी होने पर पवित्र निशान चढ़ाते हैं तथा पूजन-अर्चन के साथ कई स्थानों पर मेले के आयोजन भी होते है। लोकदेवता तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान शोभायात्रा के रूप में तेजाजी की सवारी निकलती है और भंडारे के आयोजन होते हैं।  

अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। इनसे संबंधित किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।


Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

फेंगशुई : घर में रखें क्रिस्टल ट्री, होंगे 10 फायदे