अस्ताचल सूर्य से आशीष लेने का पर्व
सूर्य अर्घ्य से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। सूर्योदय को जल का अर्घ्य देने के कई पर्व हैं लेकिन अस्ताचल सूर्य को पूजने का यही एक पर्व है छठ।
मान्यताओं के अनुसार सूर्य को अर्घ्य देने से इस जन्म के साथ किसी भी जन्म में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं। अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने से छठ मैया नि:संतान को संतान देती और संतान की रक्षा करती हैं।
सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्य की प्राप्ति, सौभाग्य व संतान के लिए रखा जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार राजा प्रियंवद ने भी यह व्रत रखा था। उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। भगवान भास्कर से इस रोग की मुक्ति के लिए उन्होंने छठ व्रत किया था। स्कंद पुराण में प्रतिहार षष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा की गई है। वर्षकृत्यम में भी छठ की चर्चा है।
अथर्ववेद के अनुसार भगवान भास्कर की मानस बहन हैं षष्ठी देवी। प्रकृति के छठे अंश से षष्ठी माता उत्पन्न हुई हैं। उन्हें बालकों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया भी माना जाता है। बालक के जन्म के छठे दिन भी षष्ठी मइया की पूजा की जाती है। ताकि बच्चे के ग्रह-गोचर शांत हो जाएं।
छठ महापर्व खासकर शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि का पर्व है। वैदिक मान्यता है कि नहाय-खाय से सप्तमी के पारण तक उन भक्तों पर षष्ठी माता की कृपा बरसती है जो श्रद्धापूर्वक व्रत करते हैं। नहाय-खाय में लौकी की सब्जी और अरवा चावल के सेवन का खास महत्व है।
चरक संहिता को उद्धृत करते हुए श्रद्धालु बताते हैं कि खरना के प्रसाद में ईख के कच्चे रस, गुड़ के सेवन से त्वचा रोग, आंख की पीड़ा, शरीर के दाग-धब्बे समाप्त हो जाते हैं। तिथियों के बंटवारे के समय सूर्य को सप्तमी तिथि प्रदान की गई। इसलिए उन्हें सप्तमी का स्वामी कहा जाता है। सूर्य अपने प्रिय तिथि पर पूजा से मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।