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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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चेटी चंड क्यों मनाते हैं?

चेटी चंड क्यों मनाते हैं?
चेटी चंड यह सिंधी समुदाय का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन दिनों भगवान झूलेलाल वरुण देव का अवतरण करके अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं। जो भी लोग चालीस दिन तक विधि-विधान से पूजा-अर्चना करता है, उनके सभी दुख दूर हो जाते हैं। सिंधी समुदाय का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन झूलेलाल महोत्सव ही माना जाता है।
 
चेटी चंड सिंधी समुदाय का सबसे बड़ा पर्व है। इसी दिन भगवान झूलेलाल का अवतरण हुआ था। कुछ लोग झूलेलाल चालीहा उत्सव भी मनाते हैं यानी 40 दिन तक व्रत-उपवास रखकर आराधना करते हैं। भगवान झूलेलाल के जन्म के उपलक्ष्य में ही चेटी चंड पर्व मनाया जाता है। 
 
चेटी चंड पर्व की शुरुआत सुबह टिकाणे/मंदिरों के दर्शन एवं बुजुर्गों के आशीर्वाद से होती है। मान्यतानुसार भगवान झूलेलाल द्वारा बताए गए स्थान पर ही चैत्र सुदी दूज के दिन एक बच्चे ने जन्म लिया और जिसका नाम उदय रखा गया था। उनके चमत्कारों के कारण ही बाद में उन्हें झूलेलाल के नाम से जाना गया। 
 
चेटी चंड से पहले सिंधी समुदाय जो चालिया पर्व मनाते हैं, उसमें खास तौर पर मंदिरों में जल रही अखंड ज्योति की विशेष पूजा-अर्चना करके हर शुक्रवार के दिन भगवान का अभिषेक और आरती करने की परंपरा है। इन व्रतों के दिनों में महिलाएं प्रतिदिन अपने घर से 4 या 5 मुखी आटे का दीपक लेकर भगवान की पूजा करती हैं तथा जिनकी कोई मनोकामना हो वे महिलाएं अपने घर से चावल, इलायची, मिस्त्री व लौंग लाकर भगवान झूलेलाल का पूजन करती हैं। 
 
खास करके चेटी चंड उत्सव जीवन को सुखी तथा लोक कल्याण भी भावना से यह उत्सव मनाया जाता है। इतना ही नहीं जिनकी मन्नत या मुराद पूणे हो गई हैं वे लोग बाराणे यानी आटे की लोई में मिश्री, सिंदूर व लौंग तथा आटे के दीये बनाकर पूजा करके उसे जल में प्रवाहित करते हैं। इसका मतलब यह समझा जाता है कि यह मुराद पूर्ण होने पर ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त करने के साथ ही जल के जीवों के भोजन की व्यवस्था करना भी है।
 
इस दिन नदी किनारे नवजात शिशुओं का मुंडन करवाया जाता है, हालांकि बदलते समय के अनुसार नदियों को प्रदूषित होने से बचाने के लिए अब यह परंपरा टिकाणों पर होने लगी है। दिन भर पूजा-अर्चना के बाद शाम होते-होते लोग शोभायात्रा में शामिल होने या अपने-अपने अंदाज से चेटीचंड मनाने निकल पड़े थे। यह सिलसिला देर रात तक जारी रहता है। भगवान झूलेलाल की शोभायात्रा में दूर-दराज के निवासी भी आते हैं। प्रत्येक सिंधी परिवार अपने घर पर 5 दीपक जलाकर और विद्युत सज्जा कर चेटीचंड को दीपावली की तरह ही मनाया जाता हैं।
 
चेटी चंड/ भगवान झूलेलाल के इस पर्व में जल की आराधना करने का विशेष महत्व है। इस दिन सिर्फ मन्नत मांगने पर ज्यादा ध्यान केंद्रीत न करते हुए भगवान झूलेलाल द्वारा बतलाए गए मार्ग पर चलने का प्रण लेना ही इस पर्व का उद्देश्य है, क्योंकि भगवान झूलेलाल ने दमनकारी मिर्ख बादशाह का दमन नहीं, केवल मान-मर्दन किया था। यानी उनका कहना था कि सिर्फ बुराई से नफरत करो, बुरे से नहीं।


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