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12 जुलाई देवशयनी एकादशी विशेष : जानिए कैसे करें यह व्रत कि श्रीहरि का मिले आशीष

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धार्मिक ग्रंथों के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी (हरिशयनी) एकादशी कहा जाता है। इस दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीर-सागर में शयन करते हैं। कहीं-कहीं इस तिथि को 'पद्मनाभा' भी कहते हैं। इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है। इस वर्ष 12 जुलाई को देवशयनी एकादशी मनाई जाएगी। देवशयनी एकादशी के आरंभ होते ही सभी प्रकार के शुभ कार्यों में विराम लग जाता है।
 
पुराणों का ऐसा भी मत है कि भगवान विष्णु इस दिन से चार मासपर्यंत (चातुर्मास) पाताल में राजा बली के द्वार पर निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। इसी प्रयोजन से इस दिन को 'देवशयनी' तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को 'प्रबोधिनी' एकादशी कहते हैं। आइए जानें कैसे करें देवशयनी एकादशी व्रत...
 
देवशयनी एकादशी व्रत-पूजन की विधि-
 
* देवशयनी एकादशी व्रत की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाती है। दशमी तिथि की रात्रि के भोजन में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। अगले दिन प्रात: काल उठकर दैनिक कार्यों से निवृत होकर व्रत का संकल्प करना चाहिए।

 
* देवशयनी एकादशी को प्रातःकाल उठें।
 
* इसके बाद घर की साफ-सफाई तथा नित्य कर्म से निवृत्त हो जाएं।
 
* स्नान कर पवित्र जल का घर में छिड़काव करें।
 
* घर के पूजन स्थल अथवा किसी भी पवित्र स्थल पर प्रभु श्री हरि विष्णु की सोने, चांदी, तांबे अथवा पीतल की मूर्ति की स्थापना करें।
 
* तत्पश्चात उसका षोड्शोपचार सहित पूजन करें। पंचामृत से स्नान करवाकर, तत्पश्चात भगवान की धूप, दीप, पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए।

 
* इसके बाद भगवान विष्णु को पीतांबर आदि से विभूषित करें।
 
* भगवान को समस्त पूजन सामग्री, फल, फूल, मेवे तथा मिठाई अर्पित करने के बाद विष्णु मंत्र द्वारा स्तुति की जानी चाहिए। 
 
* तत्पश्चात व्रत कथा सुननी चाहिए।
 
* इसके बाद आरती कर प्रसाद वितरण करें।
 
* अंत में सफेद चादर से ढंके गद्दे-तकिए वाले पलंग पर श्री विष्णु को शयन कराना चाहिए।

 
* व्यक्ति को इन चार महीनों के लिए अपनी रुचि के पदार्थों का त्याग करना चाहिए तथा धर्म-आचरण करते हुए समय व्यतीत करना चाहिए।
 
* इसके अतिरिक्त शास्त्रों में व्रत के जो सामान्य नियम बताए गए हैं, उनका कठोरता से पालन करना चाहिए।
 
देवशयनी एकादशी व्रत का फल :
 
* ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष माहात्म्य का वर्णन किया गया है। इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

 
* व्रती के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
 
* यदि व्रती चातुर्मास का पालन विधिपूर्वक करें तो उसे महाफल प्राप्त होता है।

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