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Motivational Stories : जो हार गया लेकिन खुद से जीत गया वो ही संकटकाल में बचेगा

ओशो
जिंदगी में कई बार हार का सामना करना पड़ता है। कुछ लोग हार से टूट जाते हैं, कुछ लोग फिर से जुट जाते हैं और कुछ लोग हार को जीत की ओर रखा एक कदम मानते हैं। परंतु यह कहानी ऐसे व्यक्ति की है जिसके सामाने जीवन मरण का प्रश्न था तो उसे तो जीतना ही था। मतलब यह कि जब तक आपके सामने आपका लक्ष्य नहीं होगा और जीवन मरण का प्रश्न नहीं होगा तब तक आप जीत नहीं सकते। दूसरा यह कि आपके सामने जब तक संकट खड़ा नहीं होगा तब तक आप जागृत भी नहीं हो सकते हैं। इस संदर्भ में ओशो ने एक बहुत ही अद्भुत कहानी सुनाई थी।
 
 
एक संन्यासी ने सम्राट जनक को कहा कि मैं भरोसा नहीं कर सकता कि आप इस सब गोरखधंधे में- राज्य, महल, संपत्ति, शत्रु, मित्र, दरबार, राजनीति, कूटनीति, वेश्याएं, नाच-गान, शराब, इस सबके बीच, और आप परम ज्ञानी रह सकते हैं। मैं भरोसा नहीं कर सकता। क्योंकि हम तो झोपड़ों में भी रह कर न हो सके। और हम तो नग्न रह कर भी जंगलों में खड़े रहे और संसार से छुटकारा न मिला। तो आपको कैसे मिल जाएगा? भरे संसार में हैं, संसार के मध्य में खड़े हैं।
 
जनक ने बिना उत्तर दिए दो सैनिकों को आज्ञा दी : पकड़ लो इस संन्यासी को! संन्यासी बहुत घबड़ाया। उसने कहा, हद हो गई! हम तो सोचते थे कि आप महा करुणावान और ज्ञानी हैं। तो आप भी साधारण सम्राट ही निकले। पर जनक ने उनकी कुछ बात सुनी नहीं और कहा कि आज रात नगर की सबसे सुंदर वेश्या नृत्य करने आने वाली है महल में, तो बाहर मंडप बनेगा, उसका नृत्य चलेगा। इससे सुंदर कोई स्त्री मैंने नहीं देखी। नृत्य चलेगा, दरबारी बैठेंगे, संगीत होगा, रात भर जलसा रहेगा। तुम्हें एक काम करना है। ये दो सैनिक तुम्हारे दोनों तरफ नंगी तलवार लिए चलेंगे और तुम्हारे हाथ में एक पात्र होगा, तेल से भरा, लबालब भरा, कि एक बूंद और न भरी जा सके- उसे सम्हाल कर तुम्हें सात चक्कर लगाने हैं। और, अगर एक बूंद भी तेल की गिरी, ये तलवारें तुम्हारी गर्दन पर उसी वक्त उतर जाएंगी।
 
संन्यासी फंस गया, अब क्या करे! पर चलो ये आदमी कम से कम मौका दे रहा है एक सात दफे चक्कर लगाने का, वैसे भी मरवा सकता था। तो एक अवसर तो है कि शायद कोशिश कर लें।
 
सुंदर स्त्री का नाच शुरू हुआ। उसने पहले अपने आभूषण फेंक दिए, फिर वह अपने वस्त्र फेंकने लगी, फिर वह बिलकुल नग्न हो गई। बड़ा मधुर संगीत था। बड़ा प्रगाढ़ आकर्षण था। लोग मंत्रमुग्ध बैठे थे। ऐसा सन्नाटा था, जैसा मंदिरों में होना चाहिए; लेकिन केवल वेश्याघरों में होता है। दो तलवारें नंगी और वह संन्यासी बीच में फंसा हुआ बेचारा। अब तुम सोच ले सकते हो, गृहस्थ होता तो भी चल लेता। संन्यासी! 
 
संन्यासी के मन में स्त्री का जितना आकर्षण होता है, गृहस्थ के मन में कभी नहीं होता। जैसे भूखे के मन में भोजन का आकर्षण होता है; भरे पेट के मन में क्या आकर्षण होता है? अगर वेश्या के घर में ही पड़े रहने वाले किसी आदमी को यह काम दिया होता, उसने मजे से कर दिया होता; इसमें कोई अड़चन न आती। लेकिन संन्यासी ने सपने में देखी थीं नग्न स्त्रियां; जब ध्यान करने बैठता था तब दिखाई पड़ती थीं। आज जीवन में पहला मौका मिला था जब देख लेता एक झलक। और कोई अड़चन न थी, बिलकुल किनारे पर ही सब घटना घट रही थी। 
 
आवाज सुनाई पड़ने लगी कि उसने अपने आभूषण फेंक दिए हैं। सैनिक बात करने लगे, जो दोनों तरफ चल रहे थे कि अरे, उसने कपड़े भी फेंक दिए! अरे, वह बिलकुल नग्न भी हो गई! और वह अपना दीया सम्हाले हैं और बूंद तेल न गिर जाए। उसने सात चक्कर पूरे कर लिए, एक बूंद तेल न गिरी।
 
सम्राट ने उसे बुलाया और कहा, समझे? जिसके पास कुछ सम्हालने को हो, सारी दुनिया चारों तरफ नाचती रहे, कोई अंतर नहीं पड़ता। तुझे अपना जीवन बचाना था, तो वेश्या नग्न हो गई तो भी तेरी आंख उस तरफ न गई। ये सैनिक बड़ी रसभरी चर्चा कर रहे थे। ये मेरे इशारे थे कि तुम रसभरी चर्चा करना, लुभाना और दोनों तरफ से बोल रहे थे, और इन दोनों के बीच तू फंसा था; फिर भी तूने ध्यान न छोड़ा, तूने ध्यान अपने पात्र पर रखा। भरा पात्र था, कुशल से कुशल व्यक्ति भी मुश्किल में पड़ जाता। बड़े सात लंबे चक्कर थे। एक बूंद तेल गिर जाती, गर्दन तेरी उतर जाती। जीवन तुझे बचाना था।
 
जनक ने कहा, इसी तरह कुछ मेरे पास है जिसे मुझे बचाना है। और जब तुम्हारे पास कुछ बचाने को होता है तो वही तुम्हें बचाता है।...(कोरोना काल के इस संकट में यदि आपके पास कुछ बचाने के लिए नहीं हैं तो समझो की आपके उपर तलवार लटकी है) 
 
ताओ उपनिषद - ओशो

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