वॉशिंगटन। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के डेफर्ड एक्शन फॉर चाइल्डहुड अराइवल (डीएसीए) को रद्द करने के फैसले के बाद उन हजारों भारतीयों को देश से निकाले जाने का भय सता रहा है जिन्हें तब यहां अवैध रूप से लाया गया था, जब वे बच्चे थे। एक दक्षिण एशिया एड्वोकेसी ग्रुप ने यह कहा।
साउथ एशियन अमेरिकंस लीडिंग टूगेदर (एसएएएलटी) के एक अनुमान के अनुसार ऐसे भारतीयों की तादाद 20,000 से भी अधिक हो सकती है।
अमेरिका के अटॉर्नी जनरल जेफ सेशंस ने मंगलवार को ओबामा कार्यकाल के एक आम माफी कार्यक्रम डेफर्ड एक्शन फॉर चिल्ड्रन अराइवल (डीएसीए) को रद्द करने की घोषणा की थी। इस कार्यक्रम के तहत ऐसे लोगों को कामकाज करने का परमिट दिया जाता है जिन्हें गैरकानूनी ढंग से तब देश लाया गया था, जब वे बच्चे थे। यह घोषणा पूर्वानुमानित थी जिस पर देशभर में प्रदर्शनकारियों ने विरोध जताया।
एसएएएलटी की कार्यकारी निदेशक सुमन रघुनाथन ने कहा कि 5,500 भारतीय एवं पाकिस्तानियों समेत 27,000 से अधिक एशियाई अमेरिकी नागरिकों को डीएसीए मिल चुका है और ऐसा अनुमान है कि भारत से 17,000 और पाकिस्तान से 6,000 नागरिक डीएसीए के लिए योग्यता रखते हैं।
इस तरह भारत डीएसीए योग्यता रखने वाले शीर्ष 10 देशों में आता है। उन्होंने कहा कि डीएसीए को रद्द करने के साथ इन नागरिकों को देश से वापस भेजा जा सकता है लेकिन इसका फैसला प्रशासन करेगा। एक वक्तव्य में साउथ एशियन बार एसोसिएशन (एसएबीए) के अध्यक्ष ऋषि बग्गा ने कहा कि बेहतर भविष्य का सपना देखने वालों को उनके माता-पिता बेहतर जीवन की उम्मीद में यहां लेकर आए थे। (भाषा)