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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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शार्लिट शहर के 'साहित्य संगम' ग्रुप की पहली कविता गोष्ठी का आयोजन संपन्न

शार्लिट शहर के 'साहित्य संगम' ग्रुप की पहली कविता गोष्ठी का आयोजन संपन्न
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रेखा भाटिया

अमेरिका की स्टेट नॉर्थ कैरोलाइना के शार्लिट शहर के 'साहित्य संगम' ग्रुप की पहली कविता गोष्ठी की रिपोर्ट यहां पेश की जा रही है। 
 
इन पंछियों से सीखा मैंने खिलखिलाना, देख रही हूं बदलते खुद को खुद, अपनी तन्हाइयों को गुजरते देखा, भावों को समेट लिख रही हूं ज़िंदगी, मैंने खूब खुद को समझते देखा ! गम नहीं जो कुछ पीछे छूटा, नई रोशनी हम फैलाएंगे, हमने आगे कदम बढ़ा दिए हैं। आखिर चौबीस अप्रैल 2022 को वह शुभ दिन आ गया और 'साहित्य संगम 'का साहित्यिक सफर शुरू हो गया है। 
 
'आ उदासी को हराएं, चल यूं ही, मिलकर दोनों खिलखिलाएं, चल यूं ही। 'क्या खूब कहा पंकज सुबीर ने! पंकज सुबीर की शायरी के साथ ही शुभारंभ हुआ नॉर्थ  कैरोलाइना के शार्लिट शहर की पहली कविता गोष्ठी का, शहर में पहली बार। पहली गोष्ठी में कवि साथियों के इंतज़ार के भारी लम्हों को संगीतमय सुहाना बनाया मधुर आवाज के धनी 'साहित्य संगम 'ग्रुप के सदस्य राजीव सेडी ने, जिसका लाइव वीडियो प्रसारित किया गया। जिसका आनंद शार्लिट शहर के साथ दुनिया में लिया गया। सभी मित्र पधारे। अमृत वधवा और प्रख्यात साहित्यकार, उपन्यासकार, कथाकार, संपादक, कवयित्री सुधा ओम ढींगरा मोरसविली -केरी से गोष्ठी में शामिल होने शार्लिट आए। गोष्ठी का आरंभ हुआ गोष्ठी की संचालक रेखा भाटिया की लिखी सरस्वती वंदना से।
 
'कभी पतझड़ में सूखा पेड़ कोई देखता हूं तो, वो दिन जो गर्दिशों में थे निकाले याद आते हैं 'पंकज सुब्बीर का शे'ऱ और बारी आई ग्रुप की अंतिम बाला यादव की। अंतिम ने आरंभ बहुत जोरदार अंदाज़ में किया। उनकी कविताओं के शीर्षक थे 'नन्हे फ़रिश्ते 'और 'मन की ज्योत', कैसे छोटे बच्चे अपने तरीकों से मासूम नादानियों से हमें जीना याद दिलाते हैं, उन्होंने अपनी कविताओं से सन्देश दिया। अंतिम ने सब की खूब वाहवाही बटोरी। फिर मंच संभाला डॉ. मोनिका ने। डॉ. मोनिका ने गुलज़ार साहब की कई शायरियां और नज़्में पढ़ी, वह गुलज़ार साहब की बहुत बड़ी फेन हैं आज उन्हीं का खजाना लेकर आई साझा करने। सभी ने उनका प्रयास खूब सराहा।
 
'जरा बादल के पीछे छिप गया सूरज कुछ देर के लिए, उठा कर फायदा मौके का जुगनू बन गया सूरज 'पंकज जी की शायरी क्या खूब जमी विनीता पर। बनारस की विनीता भूप ने उनकी दो रचनाएं 'मातृत्व का एहसास' और 'मंथन' साझा कीं। अपने निराले अंदाज़ से उन्होंने सभी के दिल में जगह बना ली, 'एक विचार जो अनचाहा अचानक यूं ही, आ जाता है मन में कभी और विचारों की श्रृंखला में...'
 
'तुम्हारे सर पे ही इल्ज़ाम आएगा अंधेरों का, बुझाए दीप हैं तो अब जलाना भी सीखो 'पंकज सुबीर की शायरी से अब ललकारा गया पेशे से फार्मासिस्ट नंदू काले को जिन्हें कुछ देर हो गई थी। नंदू काले की शायरी और ग़ज़लों ने सभी के मन में दीप जला दिए साहित्य के उत्सव के। वह सौ प्रतिशत खरे उतरे और सभी की जोरदार फ़रमाइश पर उनकी तीसरी रचना 'मलंग' भी साझा की। सुधा जी ने उनसे कहा, 'आपको सुनकर उपेंद्र नाथ अश्क़ की याद आ गई। स्वयं सुधा ओम ढींगरा उपेंद्र नाथ के परिवार से हैं।
 
'मैं एक तितली होती तो, तेरा क्या जाता खुदा, तेरे बनाए कुदरत के बागों में वहीँ कहीं मिल जाती तुझसे 'यह कहने वाली रीमा भाटिया जिन्हें साहित्य से बेहद लगाव है, ग्रुप की सदस्य गीता घिलोरिया की रचना 'मैं एक एहसास हूं 'हमारे बीच लेकर आई। गीता की रचना को पूरी शिद्दत से भावुक अंदाज़ में उन्होंने पेश किया।
 
'उतरती शाम जब घुलने लगी थी जा के दरिया में, तो हमने ओक में अपनी भरा और पी लिया सूरज 'शाम ढलने तक सुबह से मोरसविली -केरी से आए अमृत वधवा जी को आमंत्रित किया गया। अमृत वधवा की भावुक कविताओं से सहज पवित्र प्रेम और प्रकृति के प्रति गहरा लगाव छलकता है। इस बार प्रेम और विरह पर उन्होंने उनकी कविता खूबसूरती से पेश की 'अब लौट आओ', सभी ने उनकी भूरी-भूरी प्रशंसा की।
 
अमृत वधवा के बाद मंच पर राजीव सेडी आए और उन्होंने मुंह ज़बानी याद काका हाथरसी की हास्य रचना को बहुत ही बेहतरीन अंदाज़ में पेश किया, सभी हंस-हंस कर दोहरे होते रहे। कलाकार राजीव कला के प्रति अपनी गंभीरता को मस्ती के लिबास में ओढ़े लेते हैं, यही उनकी खूबी है।
 
फिर मंच पर आई इशिता शर्मा, जिन्होंने ज़िंदगी की कठिन लड़ाई लड़कर शेरनी की तरह डटकर समाज के सामने ज़िंदगी की जंग जीती। उनकी पहली खूबसूरत रचना नारी शक्ति पर थी, 'कैसे एक मां अपने बच्चों संग अब ईश्वर की गोद में बैठा महसूस करती है'। उस भावुक रचना के बाद इशिता ने अपनी मां की रचना पढ़ी, सभी ने दोनों रचनाओं को खूब सराहा।
    
मजाकिया स्वभाव की लेकिन गंभीर, गहरा लिखने वाली अंजलि कौल ने मंच पर आकर चार रचनाएं पेश की, 'समय' अभिमन्यु के चक्रव्यूह से, 'मां' कैसे चुकाऊं तेरी ममता का हिसाब, कभी नहीं चूका पाऊंगी, 'सखी' और कश्मीर समस्या पर 'बिखरा सच' जिसने सभी के दिल को भीतर से हिला कर रख दिया। उनकी रचनाओं ने सभी के दिलों को छुआ।
 
अमृत वधवा ने श्रोताओं की भारी मांग पर फिर से मंज पर आकर उनकी रचना 'हमेशा देर कर देता हूं 'खूब सराही गई। गोष्ठी अपने चरम पर पहुंच चुकी थी। फिर मंत्र पर आई सुधा ओम ढींगरा 'साहित्य संगम' साहित्यिक ग्रुप की ओर से अंजली कौल और प्रीति भागिया ने उनका अभिनन्दन किया। सुधा ढींगरा जी ने अपने विचार व्यक्त किए और सभी सदस्यों का मार्गदर्शन किया। शार्लिट के सदस्य पहली बार उनसे मिल रहे थे और कई सदस्य अभी साहित्य के क्षेत्र में नए हैं। सुधा ढींगरा अमेरिका में पिछले कई दशकों से घर-घर, शहर-शहर साहित्य और हिंदी भाषा का अलख जगा रही हैं। उनका शार्लिट आने का भी यही उद्देश्य था। सुधा जी नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करती हैं, मार्गदर्शन देती हैं, आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं और समभाव से नए रास्तों के प्रति जानकारी देती हैं, अवसर देती हैं। प्रेरणादायी सुधा जी के विचारों ने सभी सदस्यों को गहरा प्रभावित किया और उत्साह से भर दिया।
 
सुधा ढींगरा ने अपनी बेहतरीन रचना और मुक्तक प्रस्तुत किए। सभी को उनकी पत्रिकाओं से जुड़ने का आमंत्रण दिया। सहज, सरल सुधा जी बहुत ममतामयी और विलक्षण प्रतिभाओं की धनी हैं। अंत में कार्यक्रम की संचालक रेखा भाटिया मंच पर आई। अक्सर गहरी और गंभीर रचनाएं पेश करने वाली रेखा भाटिया ने इस बार एक रोमांटिक रचना प्रस्तुत की, 'तुम मिलो हर सुबह मुझसे, चाय का प्याला हाथ में लिए, मेरी सुबहों को ऊर्जा देने', उनकी शरारत को झेल रहे मुस्कराते आनंद भाटिया, प्रीति भागिया के साथ मिलकर सबके लिए चाय और खानपान का इंतज़ाम करते रहे।
 
शार्लिट की पहली कविता गोष्ठी जो रेखा भाटिया और आनंद भाटिया के निवास पर संपन्न  हुई, अंत में सभी ने चाय और लज़ीज़ पकवानों का लुत्फ़ उठाया। दो साल की कोरोना की पाबंदियों के बाद एक दूसरे से जुड़ सभी सदस्य बहुत प्रसन्न हो रहे थे। सभी ने मिलकर सुधा ओम ढींगरा और अमृत वधवा को गोष्ठी में शामिल होने के लिए बहुत धन्यवाद दिया। गोष्ठी में अन्य सदस्य तेजल गडानी, राजीव कुलकर्णी भी भी सम्मिलित रहे। तबियत ख़राब होने की वजह से केरी से गीता कौशिक, सुरेंद्र मोहन कौशिक, बिंदु सींग और शार्लिट से रितू वर्मा शामिल नहीं हो सके। डॉ. हरमोहन सिंह, अंजू जैन ड्यूटी की वजह से शामिल नहीं हो सके। इन सब की कमी को महसूस किया गया। गोष्ठी का आयोजन बहुत सुखद, सफल और सार्थक रहा। 
 
'साहित्य संगम' ग्रुप ने भविष्य में होने वाली गोष्ठियों पर चर्चा की और शार्लिट शहर के इतिहास में पहली बार आयोजित होने जा रहे अंतरराष्ट्रीय हिन्दी समिति के 'हास्य कवि सम्मलेन 'कार्यक्रम (जिसमें भारत से कई प्रख्यात कवि अमेरिका आ रहे हैं) कार्यक्रम की, जिसे 'साहित्य संगम' शहर में ला रहा है पर योजना बनाई।

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