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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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नवरात्रि 2022 : माता ब्रह्मचारिणी कौन हैं, कैसा है उनका स्वरूप और क्या चढ़ाएं प्रसाद

नवरात्रि 2022 : माता ब्रह्मचारिणी कौन हैं, कैसा है उनका स्वरूप और क्या चढ़ाएं प्रसाद
नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी देवी (Brahmacharini Devi) की पूजा की जाती है। उनके ब्रह्मचारिणी एवं तपश्चारिणी रूप को पूजा जाता है। देवी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि तथा विजय की प्राप्ति होती है। जो साधक मां के इस स्वरूप की पूजा करते हैं उन्हें तप, त्याग, वैराग्य, संयम और सदाचार की प्राप्ति होती है और जीवन में वे जिस बात का संकल्प कर लेते हैं उसे पूरा करके ही रहते हैं।
 
माता का स्वरूप : देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ मे जप की माला है, बाएं हाथ में कमंडल है। देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप है अर्थात तपस्या का मूर्तिमान रूप है। ये देवी भगवती दुर्गा, शिवस्वरूपा, गणेशजननी, नारायनी, विष्णुमाया तथा पूर्ण ब्रह्मस्वरूपिणी के नाम से प्रसिद्ध है। 
 
देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन की कठिन समय मे भी उसका मन कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता है। देवी अपने साधकों की मलिनता, दुर्गणों व दोषों को खत्म करती है। 
 
देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप ज्योर्तिमय है। ये मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से दूसरी शक्ति हैं। तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा इनके अन्य नाम हैं। इनकी पूजा करने से सभी काम पूरे होते हैं, रुकावटें दूर हो जाती हैं और विजय की प्राप्ति होती है। इसके अलावा हर तरह की परेशानियां भी खत्म होती हैं।
 
देवी का प्रसाद- मां भगवती को नवरात्रि के दूसरे दिन चीनी का भोग लगाएं, मां ब्रह्मचारिणी को शकर का भोग प्रिय है। मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य दीर्घायु होता है। भोग लगाने के बाद चीनी ब्राह्मण को दान में देनी चाहिए। 

Brahmcharini ki Katha : कथा के अनुसार पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।
 
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।
 
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।
 
इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है।

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