महाराष्ट्र में नौ दिन से जारी हाईवोल्टेज सियासी ड्रामा अब अपने क्लाइमेक्स पर आ गया है। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने उद्धव सरकार को गुरुवार (30 जून) को सदन में अपना बहुमत साबित करने को कहा है। ऐसे में बयानों के जरिए जारी सियासी लड़ाई अब सदन के फ्लोर टेस्ट पर आकर टिक गई है। ऐेसे में अब देखना दिलचस्प होगा कि उद्धव सरकार फ्लोर टेस्ट का सामना करेगी या मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे फ्लोर टेस्ट का सामना करने से पहले अपना इस्तीफ दे देंगे।
फ्लोर टेस्ट का राज्यपाल का आदेश-संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने 30 जून को विधानसभा का सत्र बुलाकर फ्लोर टेस्ट के लिए उद्धव सरकार को कहा है। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने 7 निर्दलीय विधायकों के ईमेल से लिखे पत्र का हवाला देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री बहुमत खो चुके है इसलिए फ्लोर टेस्ट जरूरी है। इसके साथ राज्यपाल ने मीडिया की खबरों और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी मुलाकत कर सरकार के पास बहुमत नहीं होने की जानकारी दी है।
फ्लोर टेस्ट का मामला सुप्रीम कोर्ट में- वहीं राज्यपाल के फ्लोर टेस्ट आदेश के खिलाफ शिवसेना ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी है। शिवसेना के चीफ व्हिप सुनील प्रभु की ओर से दायर याचिका में सुप्रीम कोर्ट से फ्लोर टेस्ट पर रोक की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि 16 विधायकों (बागी) के खिलाफ अयोग्य ठहराये जाने की कार्रवाई पूरी नहीं हुई है और इस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा रखी है। ऐसे यह कार्रवाई पूरी होने से पहले फ्लोर टेस्ट नहीं हो सकता है।
फ्लोर टेस्ट में स्पीकर की भूमिका-राज्यपाल के विधानसभा सत्र बुलाने के बाद जब सदन में फ्लोर टेस्ट होता है विधानसभा के स्पीकर या डिप्टी स्पीकर की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। फ्लोर टेस्ट के दौरान सदन के अंदर की पूरी कार्यवाही के लिए अंतिम रूप से स्पीकर ही उत्तरदायी होता है। महाराष्ट्र में राज्यपाल ने जो फ्लोर टेस्ट को लेकर पत्र लिखा है कि उसमें सदन की कार्यवाही की रिकॉर्डिंग के साथ बिना सत्र के स्थगति होने तक शाम पांच बजे तक सदन की पूरी कार्यवाही पूरी करने के निर्देश दिए है।
फ्लोर टेस्ट के सियासी समीकरण-ऐसे में जब महाराष्ट्र फ्लोर टेस्ट की ओर बढ़ चुका है तब सदन में बहुमत का आंकडा क्या होगा इस पर सबकी नजर टिक गई है। महाराष्ट्र विधानसभा की कुल सदस्य संख्या 288 है जिसमें मौजूदा सदस्यों की संख्या 287 है। सत्तारूढ़ पार्टी शिवसेना के कुल 55 विधायक है। वहीं महाविकास अघाड़ी सरकार में शामिल एनसीपी के 53 और कांग्रेस के 44 विधायक है।
इसके अलावा सपा के 2, पीजपी के 2, बीवीए के 3, एआईएमआईएम के 2, सीपीआई का एक, एमएनस के 1 और 9 निर्दलीय विधायक है। वहीं मुख्य विपक्षी दल भाजपा के पास अपने विधायकों की संख्या 106 है। इसके साथ आरएसपी के 1, जेएसएस के 1 और 5 निर्दलीय विधायक पहले से भाजपा के साथ है। ऐसे में जब शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे 38 विधायकों के समर्थन होने का दावा करने के साथ अपने साथ 10 अन्य विधायकों का दावा भी कर रहे है। तब फ्लोर टेस्ट में इन विधायकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।
क्या है होता फ्लोर टेस्ट?-विधानसभा के अंदर होने वाले फ्लोर टेस्ट यह पता चलता है कि वर्तमान सरकार के पास बहुमत है या नहीं। जब राज्यपाल फ्लोर टेस्ट के लिए विधानसभा की बैठक आहूत करता है तो मुख्यमंत्री को बहुमत साबित करना होता है। फ्लोर टेस्ट में असफल होने की स्थिति में मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ता है।
फ्लोर टेस्ट से पहले इस्तीफा संभव?-अगर फ्लोट टेस्ट के सियासी समीकरण को देखा जाए तो महाविकास अघाड़ी सरकार सदन में अपना बहुमत खो चुकी है। शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे के साथ 40 से अधिक विधायकों के जाने के बाद उद्धव सरकार अल्पमत में दिखाई दे रही है। ऐसे में जब राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दे दिया है तब मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे फ्लोर टेस्ट का सामना करने से पहले ही इस्तीफा दे सकते है। अगर शिवसेना को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिलती है तो मुख्यमंत्री गुरुवार को होने वाले फ्लोर टेस्ट का सामना करने से पहले अपना इस्तीफा दे सकते है।