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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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आतंकियों की स्टील की गोलियों से क्यों चिंतित है भारतीय सेना

आतंकियों की स्टील की गोलियों से क्यों चिंतित है भारतीय सेना

सुरेश एस डुग्गर

Army worried about steel bullets of terrorists: जम्मू कश्मीर में आतंकियों द्वारा अब घातक हमलों में स्टील की गोलियों का इस्तेमाल भारतीय सेना की चिंता का सबब बन गया है। यह चिंता इसलिए भी है क्योंकि सेना अभी तक अपने सभी सैनिकों को लेवल 4 की बुलेट प्रूफ जैकेटें मुहैया नहीं करा पाई है। ये गोलियां बख्तरबंद वाहनों को भी भेद रही हैं। 
 
दरअसल, राजौरी तथा पुंछ में सेना पर हुए प्रत्येक घातक हमले में आतंकियों ने इन गोलियों का इस्तेमाल किया है। अधिकारियों के मुताबिक इसी कारण अधिकतर सैनिकों की जानें गई हैं। स्टील गोलियों से आतंकी जवानों की बुलेट प्रूफ जैकेटें, बुलेट प्रूफ हेलमेट व पटकों को भेदने में कामयाब रहे। यहां तक की बख्तरबंद वाहन भी इन गोलियों की मार को सहन नहीं कर पाए थे।
 
सबसे पहले 2016 में हुआ उपयोग : वैसे यह कोई पहला अवसर नहीं था कि हमलों में आतंकियों ने स्टील बुलेट का इस्तेमाल किया हो। कश्मीर में आतंकी कई बार इसका इस्तेमाल कर चुके हैं। इस बुलेट को बेहद घातक माना जाता है। सबसे पहले स्टील बुलेट का इस्तेमाल जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने अगस्त 2016 में पुलवामा में सुरक्षाबलों के एक शिविर पर हमले में किया था।
 
इसके बाद 31 दिसंबर 2017 की रात को लेथपोरा, पुलवामा में सीआरपीएफ के कैंप पर आत्मघाती हमले में शामिल आतंकियों ने भी स्टील बुलेट का इस्तेमाल किया था। जून 2019 में अनंतनाग में भी आतंकियों ने सुरक्षाबलों पर हमले में स्टील बुलेट का ही इस्तेमाल किया था। इसी साल मार्च में शोपियां में मारे गए जैश आतंकी सज्जाद के पास से भी स्टील बुलेट मिली थीं। 
 
सामान्य तौर पर एके-47 में या फिर किसी अन्य राइफल में इस्तेमाल होने वाली गोली का अगला हिस्सा तांबे का बना होता है, जो बुलेट प्रूफ स्टील या कांच के कवच को नहीं भेद सकता। स्टील बुलेट एक खास तरह के मजबूत स्टील से तैयार होती है। यह 6 से 7 इंच मोटी स्टील की चादर या बुलेट प्रूफ जैकेट को भी आसानी से भेद सकती है।
 
पाकिस्तान से पहुंचती है बुलेट : कश्मीर में आतंकियों के पास यह स्टील बुलेट पाकिस्तान से पहुंचती है और पाकिस्तान को चीन ने इसकी टेक्नोलॉजी दी है। स्टील बुलेट को स्विस आर्मी के कर्नल एडवर्ड रुबिन ने 1982 में बनाया था, जबकि इनका इस्तेमाल 1886 में फ्रांस में विद्रोहियों के खिलाफ हुआ था।
 
यही नहीं बताया तो यह भी जा रहा है कि जम्मू कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों ने स्टील कोर बुलेट और कनाडाई नाइट साइट्स का उपयोग करना शुरू कर दिया है, जिन्हें अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो गठबंधन ने अफगानिस्तान से पीछे हटने के लिए मजबूर होने के बाद छोड़ दिया था। कथित तौर पर अमेरिकी सेनाएं अफगानिस्तान में अरबों डॉलर के हथियार और उपकरण छोड़ गई थीं।
 
अगर अधिकारियों पर विश्वास करें तो आतंक के खिलाफ युद्ध शुरू करने के 20 साल बाद अफगानिस्तान छोड़ने वाली अमेरिकी सेना ने एम-16 असाल्ट राइफलों और एम-4 कार्बाइन के साथ स्टील बुलेटों को बड़ी संख्या में पीछे छोड़ दिया है। उसके पीछे हटने के बाद, अफगानिस्तान तालिबान के नियंत्रण में आ गया।
 
भारतीय सुरक्षा बलों को आशंका थी कि बचे हुए हथियार पाकिस्तान के रास्ते भारत पहुंच चुके हैं। इनसे निपटने के लिए सेना ने बड़ी संख्या में सैनिकों के लिए लेवल-4 बुलेट प्रूफ जैकेटों का ऑर्डर दिया पर वह अभी तक सभी को मुहैया नहीं हो सकी हैं, जिनसे वे इन स्टील कोर गोलियों से सुरक्षा प्रदान कर सकें।
 

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