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शिवसेना के समर्थन में क्यों एकदम नहीं उठा 'हाथ', जानिए 5 बड़े कारण

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मंगलवार, 12 नवंबर 2019 (18:23 IST)
मुंबई। महाराष्ट्र में शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे का सरकार बनाने का सपना उस समय टूट गया जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्यपाल की राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश मान ली। हालांकि शिवसेना का पहला मुख्यमंत्री नहीं बन पाने की असली वजह तो समय पर समर्थन के लिए नहीं उठा कांग्रेस का हाथ है।
 
भले ही कांग्रेस शिवसेना को समर्थन देने से झिझक रही थी पर शिवसेना ने एक बार नहीं बल्कि 3 बार कांग्रेस का साथ दिया था। सबसे पहले 1980 में शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे ने कांग्रेस नेता एआर अंतुले को राज्य का मुख्‍यमंत्री बनाने में मदद की थी। इसके बाद बाला साहेब ठाकरे ने राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए की लाइन से अलग जाकर प्रतिभा पाटिल की मदद की। राष्ट्रपति चुनाव में प्रणब मुखर्जी के समय एक बार फिर शिवसेना कांग्रेस के साथ खड़ी दिखाई दी। आइए जानते हैं आखिर कांग्रेस क्यों शिवसेना को समर्थन पर दुविधा में दिखाई दे रही थी...

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वैचारिक मतभेद : कांग्रेस और शिवसेना के बीच के वैचारिक मतभेद किसी से छिपे हुए नहीं हैं। हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में भी दोनों ही दलों एक-दूसरे पर जमकर वार-पलटवार किए। कांग्रेस को इस बात का डर सता रहा है कि शिवसेना का समर्थन करने से कहीं उसके मतदाता नाराज नहीं हो जाए।
 
धर्मनिरपेक्ष छवि को नुकसान : बाला साहेब ठाकरे और शिवसेना की छवि शुरू से ही कट्टरपंथी रही है जबकि कांग्रेस खुद को धर्मनिरपेक्ष दल मानती है। कांग्रेस को डर है कि शिवसेना के करीब जाने से देशभर के मुस्लिम मतदाता उससे नाराज हो सकते हैं।
 
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सोनिया का डर : कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी का सबसे बड़ा डर तो यह था कि कहीं उसकी छवि महाराष्ट्र में भी 'पिछलग्गू' की तरह न हो जाए। क्योंकि यूपी में उसकी स्थिति सपा के पिछलग्गू जैसी हो गई है। इसी डर के चलते कांग्रेस इस मामले में काफी फूंक-फूंक कर कदम उठा रही है। इसके अलावा महाराष्‍ट्र में गठबंधन का ज्यादा फायदा शिवसेना और NCP जैसे क्षेत्रीय दलों को मिल सकता है।  
 
जहरीले बयान : शिवसेना के कांग्रेस की दोस्ती की राह में एक बड़ा रोड़ा चुनाव प्रचार के दौरान दोनों ही दलों द्वारा एक दूसरे के खिलाफ दिए गए जहरीले बयान भी हैं। चुनाव प्रचार के दौरान आदित्य ठाकरे ने ट्वीट कर कांग्रेस और NCP पर राज्य को लूटने का आरोप लगाया था वहीं कांग्रेस ने भी शिवसेना पर हमला करते हुए कहा था कि अगर यह माइंडसेट है तो शिवसेना और आतंकियों में क्या अंतर है?
 
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भाजपा की आक्रामक नीति :  सोनिया और उनके रणनीतिकारों को यह डर भी सता रहा था कि अगर उसने शिवसेना का साथ दिया तो भाजपा अपनी आक्रामक सोशल मीडिया टीम के सहारे कांग्रेस की बखिया उधेड़ देगी। पार्टी के लिए यहां भी मुकाबला आसान नहीं होगा। 
 
बहरहाल कहा जा रहा है कि राजनीति में कोई दोस्त और कोई दुश्मन नहीं होता। NCP अभी भी दोनों दलों के संपर्क में है और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद भी तीनों दलों में गठबंधन का रास्ता खुला हुआ है।

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