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Tuberculosis: क्‍यों नहीं हो रहा टीबी की दवाओं का असर, क्‍या है वजह?

Tuberculosis

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, बुधवार, 11 सितम्बर 2024 (15:01 IST)
Why are TB medicines not working: भारत में ट्यूबरक्यूलोसिस यानी टीबी कभी एक जानलेवा बीमारी थी। हालांकि अब पहले की तुलना में टीबी के मामलों में कमी आई है।

अगर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों की माने तो पिछले 8 सालों में इस बीमारी के मरीजों में 13 फीसदी तक की गिरावट आई है, लेकिन अभी भी देश में टीबी मरीजों की संख्या में उतनी कमी नहीं आई है, जिससे इस बीमारी को अगले कुछ सालों में खत्म किया जा सके। इस बीच एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। जिसमें कहा गया है कि टीवी के इलाज में इस्‍तेमाल होने वाली कुछ दवाएं मरीजों पर असर नहीं कर रही हैं। यह रिसर्च दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के विशेषज्ञों ने टीबी पर एक रिसर्च की है।

खुद को जिंदा रखता है टीबी का बैक्टीरिया : बता दें कि मेडिकल की भाषा में इस समस्या को मल्टी ड्रग रेज़िस्टेंट टीबी कहते हैं। इसका मतलब यह होता है कि टीबी के बैक्टीरिया पर इस बीमारी की कुछ दवाएं असर नहीं कर रही हैं। ऐसा होने का कारण यह है कि दवाओं के खिलाफ टीबी का बैक्टीरिया खुद को जिंदा रखता है और उस पर दवाओं का असर नहीं होने देता है। इस तरह की टीबी में इलाज चलने के बाद भी मरीज को आराम नहीं मिलता है। ऐसे में डॉक्टरों को दवाओं को बदलना पड़ता है।

क्यों नहीं हो रहा दवाओं का असर : ड्रग रेजिस्टेट टीबी के कई कारण है। टीबी रोग के लिए उपचार का पूरा कोर्स कई मरीज पूरा नहीं करते हैं। उनको लगता है कि अब आराम लग गया है तो दवा छोड़ दें। इस वजह से टीबी के सभी बैक्टीरिया शरीर से खत्म नहीं हो पाते हैं और उनकी क्षमता बढ़ती रहती है। कुछ मामलों में स्वास्थ्य कर्मचारी भी सही दवा नहीं लिखते हैं। बीमारी के हिसाब से दवा नहीं लिखी जाती है। दवा के फ़ॉर्मूलेशन का इस्तेमाल ठीक नहीं हो पाता है। इस वजह से बीमारी पर दवाएं असर नहीं करती हैं। ऐसे में मरीज को ड्रग रेजिस्टेट टीबी हो जाती है। कुछ मामलों में एक्स्ट्रीम रेसिस्टेंट टीबी भी हो जाती है। इसमें टीबी का बैक्टीरिया इतना मज़बूत हो जाता है कि उसे खत्म करने में कोई भी दवा काम नहीं करती।

इलाज के लिए नई दवाएं : केंद्र सरकार ने मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के इलाज के लिए नई दवाओं को मंजूरी दी है। इसमें टीबी के इलाज में यूज होने वाली दवा बेडाक्विलाइन और लाइनजोलिड के साथ प्रोटोमानिड मेडिसन को भी शामिल किया गया है। यह दवाएं 6 महीने में ही टीबी को कंट्रोल कर सकती हैं। इन दवाओं से उन मरीजों के ट्रीटमेंट में भी फायदा मिल सकता है जिन पर टीबी की दूसरी दवाएं असर नहीं कर रही है यानी जिन मरीजों को मल्टी ड्रग रजिस्टेंट टीबी हो गई है।

2025: टीबी खत्म करने का लक्ष्य: WHO की रिपोर्ट बताती हैं कि साल 2021 में दुनियाभर में टीबी के करीब 1.25 करोड़ केस आए थे। इनमें से 27 फीसदी मरीज अकेले भारत से थे। हालांकि देश में बीते कुछ सालों से टीबी के मरीज कम हो रहे हैं, लेकिन फिर भी आंकड़ा उतना नहीं घटा है, जिससे साल 2025 तक इस बीमारी को खत्म किया जा सके।
Edited By: Navin Rangiyal

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