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Jharkhand Election: झारखंड में सत्ता का कौन बड़ा दावेदार, किसकी बन सकती है सरकार

वृजेन्द्रसिंह झाला
Jharkhand Assembly Election 2024 News in Hindi: झारखंड विधानसभा चुनाव में इस बार कांटे का मुकाबला दिखाई दे रहा है। भाजपा नीत एनडीए ने जहां सत्ता हासिल करने के लिए पूरी ताकत झौंक दी है, वहीं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाला सत्तारूढ़ इंडिया गठबंधन अपनी कुर्सी बचाने के लिए जी-जान से जुटा हुआ है। इस बार झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के सत्तारूढ़ गठबंधन की राह आसान दिखाई नहीं दे रही है। शुरुआती दौर में जो भाजपा थोड़ी कमजोर नजर आ रही थी, लेकिन अब वह पूरी तरह मुकाबले में है और तुलनात्मक रूप से बढ़त पर भी है। 
 
पिछले चुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधन ने 47 सीटें जीती थीं। झारखंड की 81 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए 42 सीटों की जरूरत होती है। सत्तारूढ़ गठबंधन को को एंटी इन्कम्बेंसी का भी सामना करना पड़ रहा है। खासकर बेरोजगारी के मुद्दे पर युवाओं में सरकार को लेकर नाराजगी है। भाजपा आजसू और जेडीयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। पिछले चुनाव में यदि भाजपा और आजसू के वोट प्रतिशत की बात करें तो वह सत्तारूढ़ गठबंधन के मुकाबले ज्यादा है। इंडिया गठबंधन को पिछले चुनाव में 33.37 फीसदी वोट मिले थे, जबकि भाजपा और आजसू को ही 41.37 फीसदी वोट मिले थे।
 
जेकेएलएम बिगाड़ेगा खेल : झारखंड के पत्रकार चितरंजन कुमार वेबदुनिया से बातचीत में राज्य की राजनीति को लेकर कहते हैं कि झारखंड की सियासत में कोई एक मुद्दा काम नहीं करता। यहां क्षेत्र के हिसाब से अलग-अलग मुद्दे काम करते हैं। वे कहते हैं कि मईया योजना की चौथी किस्त महिलाओं के खाते में पहुंच गई है। इसका इंडिया गठबंधन को फायदा मिल सकता है। 53 लाख महिलाओं को इस योजना का फायदा मिल रहा है। इसके अलावा अन्य समीकरण भी हैं, जो चुनाव को प्रभावित करेंगे। जयराम महतो की पार्टी झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (JLKM) के उम्मीदवार कुछ सीटों पर झामुमो और भाजपा दोनों को ही नुकसान पहुंचा सकते हैं।
 
चितरंजन कहते हैं कि 15 से 18 सीटें ऐसी हैं जो झामुमो की परंपरागत सीटें हैं, यहां उम्मीदवार से ज्यादा पार्टी का चुनाव चिन्ह का महत्व होता है। वहीं, 10 से 12 सीटों पर भाजपा की भी यही स्थिति है। संथाल और कोल्हान इलाके में झामुमो का जोर है। भाजपा के पक्ष में इस बार सबसे बड़ी बात यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन कोल्हान के सरायकेला से भाजपा उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं। उन्हें कोल्हान टाइगर के नाम से जाना जाता है। झामुमो को वहां खड़ा करने वाले चंपई सोरेन ही हैं। 
भाजपा को चंपई सोरेन से उम्मीद : सरायकेला विधानसभा सीट शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बंटी हुई है। कुमार कहते हैं कि शहरी क्षेत्र में भाजपा के प्रभाव का फायदा चंपई सोरेन को मिलेगा, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों उनका खुद का प्रभाव है। ऐसे में उन्हें अच्छी बढ़त मिल सकती है। हालांकि आदिवासी इलाकों में लोग व्यक्ति से ज्यादा चुनाव चिन्ह को पहचानते हैं। यहां भाजपा के मुकाबले झामुमो के तीर-धनुष का ज्यादा जोर है।

पिछले चुनाव में झामुमो ने कोल्हान क्षेत्र की 11 सीटें जीती थीं, जबकि उसकी सहयोगी कांग्रेस ने 2 सीटों पर जीत हासिल की थी। भाजपा यहां खाता भी नहीं खोल पाई थी। चंपई सोरेन के साथ मिलने से इस बार भाजपा को इस क्षेत्र में कुछ सीटें हासिल करने की उम्मीद है। वहीं, सोरेन का जेल जाना भी झामुमो का भविष्य काफी हद तक तय करेगा। यह इस बात पर निर्भर होगा कि मतदाता इसे सहानुभूति के रूप में लेता है या फिर नकारात्मक रूप से। 
 
परिवारवाद पर मुश्किलें भी : परिवारवाद की मुखर विरोधी भाजपा के लिए परिवारवाद मुश्किल का कारण बन सकता है। भाजपा ने चंपई के बेटे बाबूलाल सोरेन को भी घाटशिला सीट से उम्मीदवार बनाया है, लेकिन उनके जीतने की संभावना काफी कम है। पोटका से पूर्व मुख्‍यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मैदान में हैं, उनको भी अपनी सीट पर संघर्ष करना पड़ रहा है। पूर्व मुख्‍यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को जगन्नाथपुर जबकि पूर्व मुख्‍यमंत्री रघुवरदास की बहू पूर्णिमा दास को जमशेदपुर ईस्ट से टिकट दिया गया है। पूर्णिमा के सामने भाजपा के ही बागी शिव शंकर सिंह मैदान में हैं। पूर्णिमा को मजबूत उम्मीदवार तो माना जा रहा है, लेकिन उनकी राह आसान नहीं दिखाई दे रही है। 
 
चितरंजन कहते हैं कि हेमंत सोरेन के लिए सरना कोड बिल तुरुप का इक्का हो सकता है। इसके माध्यम से वे आदिवासी वोटरों को समझा सकते हैं कि उन्होंने सरना कोड बिल विधानसभा में पास करवा दिया है, लेकिन अब गेंद केन्द्र सरकार के पाले में है। सरना कोड में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड का प्रस्ताव है। झारखंड सरकार का कहना है कि ऐसा करके आदिवासियों की संस्कृति और धार्मिक आजादी की रक्षा की जा सकेगी। दोनों ही गठबंधन सरकार बनाने के लिए जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मतदाता के मन में क्या है कोई नहीं जानता।  

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