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नोटबंदी के बाद और क्या कर सकते हैं मोदी...

नोटबंदी के बाद और क्या कर सकते हैं मोदी...
, बुधवार, 11 जनवरी 2017 (11:51 IST)
मोदी सरकार की कार्यशैली को हम नोटबंदी के तौर पर समझ सकते हैं। मोदी ऐसे फैसले लेने के आदी हैं जो कि लोगों को चौंका दें, आश्चर्य में डाल दें। नए साल में भी हमें कुछ और चौंकाने वाले फैसलों के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि मोदीजी का काम करने का स्टाइल भी यही है। वह अचानक और मनमर्जी से फैसले करते हैं, जबकि दूसरे नेता पहले योजना बनाते हैं, बाद में उसकी घोषणा करते हैं। लेकिन मोदी पहले ऐलान करते हैं और फिर प्लानिंग करते हैं और जरूरी नहीं है कि वे अपने फैसलों से कुछेक लोगों के अलावा ज्यादा लोगों को बताते हों।
 
अब मोदीजी क्या नहीं करेंगे? हम यह नहीं जानते कि मोदी क्या करेंगे लेकिन इतना तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह क्या नहीं करेंगे। इसकी वजह उनका आरएसएस बैकग्राउंड है, जिसकी कोर फिलॉसफी को 1920 और 1930 के दशक में मांजा गया था और जो सत्ता की केंद्रीय भूमिका को मान्यता देती है। सत्ता पर काबिज होने के बाद यह कार्यशैली किसी भी मामले में कांग्रेस या वामपंथियों से अलग नहीं है। लिहाजा मोदीजी देश की अर्थव्‍यवस्‍था को पूरी तरह बाजार की ताकतों के भरोसे नहीं छोड़ेंगे। इसलिए रेलवे या अन्य किसी बड़े विभाग में निजीकरण को फिलहाल भूल जाइए। कीमतों पर नियंत्रण भी खत्म नहीं होगा और न ही वह नौकरशाही पर नियंत्रण लगाना चाहेंगे। 
 
खास तौर पर निचले स्‍तर पर क्योंकि उन्हें इनकी प्रशासनिक और राजनीतिक वजहों से जरूरत है और वह उन्हें जिम्‍मेदार और कम भ्रष्ट बनाने की कोशिश करके नाराज करने का जोखिम नहीं लेंगे। मोदी इस सच को भी नहीं मानेंगे कि भले ही देश में राजनीतिक तौर पर केंद्र की ताकत ज्यादा है, लेकिन आर्थिक तौर पर वह कमजोर है, क्योंकि इस मामले में राज्यों के पास ज्यादा अधिकार हैं।
 
देश के हर प्रधानमंत्री को इसका अहसास हो चुका है कि राज्यों के सहयोग के बिना केंद्र बहुत कुछ हासिल नहीं कर सकता। इसका सबसे कड़वा सच यह है कि भले ही पहल केंद्र की हो, फायदा राज्यों को होता है। अखिलेश यादव हाल में इसे साबित कर चुके हैं। मोदी जब गुजरात के मुख्‍यमंत्री थे तब उन्होंने भी यूपीए सरकार के खुले बटुए का जमकर फायदा उठाया था। मोदी जिन चीजों को पॉलिसी या नीति का हिस्सा समझते हैं, वह उस बारे में अपनी सोच नहीं बदलेंगे। इसलिए वह मामूली समझ रखने वाले भी किसी शख्स से सलाह नहीं करेंगे। वह ऐसे लोगों को पसंद नहीं करते जो उनसे ज्यादा जानकार होने का दावा करता हो। ऐसे लोगों को अपमान व हिकारत के साथ बुद्धिजीवी कहते हैं। 
 
क्या मोदी अपनी शैली बदलेंगे... पढ़ें अगले पेज पर....

जहां तक भाजपा के अंदर की बात है, तो वहां भी मोदी अपना शैली नहीं बदलेंगे। वह पार्टी नेताओं की विदेश, डिफेंस, सामाजिक और आर्थिक नीतियों से जुड़े बड़े फैसलों पर राय नहीं लेंगे। नोटबंदी पर उन्हें जेटली जैसे वित्त मंत्री की जरूरत थी और राजन जैसे रिजर्व बैंक गवर्नर की जो कि हर मामले में अपना स्वतंत्र विचार रखता हो। जब बात उनके निजी राजनीतिक हित की आती है, तब वह फूंक-फूंककर कदम रखते हैं, लेकिन दूसरों की उन्हें बिल्कुल भी परवाह नहीं है।
 
ईसाइयों और मुसलमानों के बारे में भी मोदी अपना नजरिया नहीं बदलने जा रहे हैं। वह उन्हें हिंदुओं के लिए खतरा मानते हैं, लेकिन इस बाद को मानना और किसी भी तरह से दर्शाना उनकी कार्यशैली नहीं है। आप इस बात को लेकर खुश हो सकते हैं कि उनके चुनाव प्रचार में इन बातों की झलक नहीं दिखाना चाहेंगे।
 
इस मामले में सबसे बड़ी बात यह है कि वह अपनी नीतियों को लेकर पश्चिमी देशों की स्वीकृति  चाहते हैं। 2005 में अमेरिका ने मोदी को ब्लैकलिस्ट कर दिया था और वह उन्हें वीजा नहीं दे रहा था, वहीं 2015 में भारत यात्रा पर आए बराक ओबामा ने अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव नहीं करने की नसीहत दी थी इनका मोदी पर गहरा असर हुआ है लेकिन तभी तक जब तक यह राजनीतिक तौर पर नुकसानदेह न हो।
 
गुजरात हिंदू बहुल राज्य है लेकिन पूरा देश ऐसा नहीं है, लेकिन मोदीजी यह नहीं मानते हैं कि  गुजरात के मुख्यमंत्री वाले अंदाज में देश पर राज नहीं किया जा सकता। उसकी एक वजह तो यह है कि आरएसएस जिसे राष्ट्रवाद मानता है, वह किसी विविधता की इजाजत नहीं देता। मोदी ने भारत की सांस्कृतिक विविधता के मामले में सिर्फ एक छूट दी है- वह देशवासियों को भारतीय कहते हैं न कि हिंदू।
 
इकतीस दिसंबर के बाद मोदी ने जो भाषण दिया, उससे एक बात स्पष्ट हो गई है कि वह नोटबंदी के राजनीतिक और आर्थिक नतीजों से घबराए हुए हैं। मोदी खुद को टाइमिंग का उस्ताद और मास्टर स्ट्रोक लगाने वाला मानते हैं, लेकिन विमुद्रीकरण (डिमॉनेटाइजेशन) पर उनका हिसाब गलत साबित हुआ। इसीलिए उनके आज्ञाकारी वित्तमंत्री को बार-बार कहना पड़ा कि किसी चीज की परफेक्ट टाइमिंग नहीं होती।
 
मोदी नोटबंदी के पॉलिटिकल डैमेज को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहे हैं और उन्होंने लोगों के सामने हड्डी के टुकड़े डालने शुरू कर दिए हैं। मोदी को यह उम्मीद है कि जिस कुत्ते के मुंह में हड्डी हो, वह नहीं भौंकेगा। 2017 में ऐसी और हड्डियां उछाली जा सकती हैं। उत्तर प्रदेश चुनाव से पता चलेगा कि मोदी गलत हैं या सही। हालांकि अभी तो लग रहा है कि वह गलत हैं।

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