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क्या है पैरोल और फरलो में अंतर, किन कैदियों को मिलता है इनका लाभ?

difference between parole and furlough

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, मंगलवार, 13 अगस्त 2024 (12:58 IST)
What is difference between parole and furlough: हरियाणा की सुनारिया जेल में बंद डेरा सच्चा सौदा के मुखिया गुरमीत राम रहीम सिंह 21 दिन के लिए फरलो (Furlough) पर बाहर आ गया है। बाबा को 8वीं बार फरलो मिली है। सजा मिलने के बाद वह अब तक 13 बार जेल से बाहर आ चुका है। राम रहीम को अपनी 2 महिलाओं अनुयायियों के साथ दुष्कर्म के मामले में दोषी ठहराया गया था। बाबा को 2016 में एक पत्रकार की हत्या के मामले में भी दोषी करार दिया गया था।
 
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों को पैरोल (Parole) एवं फरलो (Furlough) पर उन कैदियों को रिहा नहीं करने का आदेश दिया है, जिन्हें राज्य या व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए खतरा माना जाता है। पैरोल एवं फरलो को जेल अधिनियम 1894 (Prisons Act 1894) के तहत सृजित किया गया है। दरअसल, यह सुविधा कैदियों के पुनर्वास के उद्देश्य से दी जाती है। पैरोल के लिए प्राधिकरण संभागीय आयुक्त होता है और फरलो के मामलों में यह जेलों का उप महानिरीक्षक (IG) होता है। आइए जानते हैं आखिर फरलो और पैरोल में अंतर क्या और किस तरह के कैदी को यह रियायत मिलती है.... 
 
क्या है फरलो : फरलो कुछ अंतरों के साथ पैरोल के ही समान है। यह सुविधा ऐसे कैदियों को दी जाती है, जो लंबी अवधि की सजा काट रहे हैं। फरलो की अवधि को उसकी सजा की छूट के रूप में माना जाता है। पैरोल को कैदी का अधिकार नहीं माना जाता, लेकिन इसके विपरीत फरलो को कैदी के अधिकार के रूप में देखा जाता है। इसे जेल के नियमों के अनुसार समय-समय पर बिना किसी कारण के कैदी को दिया जा सकता है। दोषी की सजा फरलो अवधि के साथ चलती है। हालांकि पैरोल और फरलो दोनों को ही कैदी की सुधार प्रक्रिया के रूप में माना जाता है। 
 
क्या है पैरोल : पैरोल ऐसे कैदियों को दी जाती है, जो छोटी अवधि का कारावास भुगत रहे हैं। यह किसी भी कैदी को सजा के निलंबन के साथ कुछ समय के लिए रिहा करने की व्यवस्था है। इसमें कैदी की रिहाई सशर्त होती है जो ‍कैदी के व्यवहार पर भी निर्भर करती है। हालांकि पैरोल अधिकार नहीं है। इसे विशिष्ट कारण के लिए कैदी को दिया जाता है। परिवार में किसी की मृत्यु या विवाह की स्थिति में कैदी को पैरोल पर रिहाई की सुविधा दी जाती है। यदि सक्षम प्राधिकारी को इस बात की आशंका है कि दोषी कैदी को रिहा करना समाज के हित में नहीं है, तो उसे पैरोल देने से मना भी किया जा सकता है।
 
पैरोल का उद्देश्य भी कैदी को समाज में फिर से शामिल करने (पुनर्वास करने) का एक तरीका है। पैरोल अवधि में कैदी की निगरानी की जाती है साथ ही उसे कुछ शर्तों का पालन भी करना होता है। इस दौरान उसे एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में रहना होता है साथ ही पैरोल अधिकारी को रिपोर्ट भी करना होता है। पैरोल कई बार दी जा सकती है, लेकिन फरलो की एक सीमा होती है। पैरोल के मामले में छुट्टी के दिनों को सजा की अवधि में शामिल नहीं किया जाता है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala

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