14 अगस्त 1947 में आधी रात को जब भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिली तो आजाद भारत में सबसे जो गीत गाया गया वो था वंदे मातरम। आजादी के संघर्ष में यही गीत देशभक्ति का गीत बन गया।
आइए जानते हैं इस गीत की कहानी आखिर क्या है...
दरअसल, आज ही के दिन 1950 में बंकिम चंद्र चटर्जी ने वंदे मातरम गीत लिखा था। इसके राष्ट्रीय गीत बनने से लेकर अब तक एक लंबा सफर रहा है और इसके साथ ही विवाद भी।
महर्षि अरविंदो ने इस गीत का अंग्रेजी (1909) में और आरिफ मोहम्मद खान ने उर्दू में अनुवाद किया था।
संसद में जैसे ही भारत की पहली सरकार ने कदम रखा तो डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कार्यवाही शुरू की। उन्होंने सुचेता कृपलानी से कहा, वंदे मातरम से शुरुआत करो
वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत बनाने को लेकर कांग्रेस ने 1937 में रवींद्र नाथ टैगोर के मार्गदर्शन में कमेटी का गठन किया गया था। इस कमेटी में नेहरू, सुभाष और आचार्य नरेंद्र देव भी थे। वंदे मातरम 1876 में जब लिखा गया था, तो दो पैरा ही लिखे गए थे। बाद में उसमें तीन पैराग्राफ और जोड़े गए।
1985 में शाह बानो केस की वजह से देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया। मुस्लिम उलेमाओं ने वंदे मातरम के खिलाफ फतवा जारी कर दिया। उस समय राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे। राजीव गांधी सरकार में आरिफ मोहम्मद खान गृह राज्य मंत्री थे। आरिफ इस सांप्रदायिक माहौल को भाईचारे के माहौल में बदलना चाहते थे।
आरिफ मोहम्मद खान ने वंदे मातरम का उर्दू में अनुवाद कर के इसे बहुत सरल और सर्वमान्य बना दिया। वंदे मातरम का उर्दू अनुवाद का मकसद था कि मुसलमान भी इससे आसानी से जुड़ सकें।