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विकास कार्यों के लिए सांसदों को मिलेगा पैसा, बढ़ेगा इथेनॉल खरीद मूल्य, जानिए मोदी कैबिनेट के बड़े फैसले

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बुधवार, 10 नवंबर 2021 (18:28 IST)
नई दिल्ली। मोदी सरकार कैबिनेट ने सांसद निधि योजना और इथेनॉल को लेकर कई बड़े फैसले लिए। सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में यहां हुई बैठक में इस योजना को बहाल करने का फैसला लिया गया।

चालू वित्त वर्ष के लिए हर सांसद को स्थानीय विकास निधि के तहत 2 करोड़ रुपए जारी किए जाएंगे। सरकार ने सांसद निधि योजना बहाल करते हुए योजना के तहत चालू वित्त वर्ष के शेष भाग के लिए प्रत्येक संसद सदस्य को दो करोड़ रुपए जारी करने का निर्णय लिया है।

उन्होंने कहा कि अगले वित्त वर्ष से इस निधि के तहत प्रत्येक सांसद को 2025-26 तक कुल 5 करोड़ रुपए की राशि ढाई-ढाई करोड़ रुपए की दो किस्तें जारी की जाएगी। ठाकुर ने कहा कि सांसद निधि योजना पर सरकार चालू वित्त वर्ष में 1581 करोड और 2025-26 तक कुल 17417 करोड़ रुपए जारी करेगी।
इथेनॉल का खरीद मूल्य बढ़ाने का फैसला : अनुराग ठाकुर ने बताया कि आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने वर्ष 2020-21 के आगामी चीनी मौसम के लिए गन्ना आधारित शीरे से प्राप्त उच्च इथेनॉल की कीमत तय करने को मंजूरी दी गई है।

प्रस्ताव के अनुसार 'सी' श्रेणी के शीरा से प्राप्त इथेनॉल की कीमत 45.69 रूपये से प्रति लीटर से 46.66 रुपये प्रति लीटर बढ़ाई जानी चाहिए। इसी तरह से 'बी' श्रेणी के शीरा से प्राप्त इथेनॉल की कीमत 57.61 रुपये प्रति लीटर से 59.08 रुपये प्रति लीटर बढ़ाई जाए।
गन्ने के रस, चीनी या चीनी चाशनी से प्राप्त इथेनॉल की कीमत 62.65 से 63.45 रुपए प्रति लीटर होगी। सभी तरह के इथेनॉल पर वस्तु एवं सेवा कर तथा अन्य शुल्क अतिरिक्त होंगे। ठाकुर ने बताया कि सरकार ने निर्णय लिया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के तेल उद्यमों को दूसरी पीढ़ी '2जी' श्रेणी के इथेनॉल का मूल्य निर्धारण करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए क्योंकि इससे देश में उन्नत जैव ईंधन रिफाइनरी स्थापित करने में मदद मिलेगी।

गौरतलब है कि अनाज आधारित इथेनॉल की कीमतें वर्तमान में केवल तेल विपणन कंपनियां तय कर रही हैं। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सरकार के इस फैसले से न केवल इथेनॉल आपूर्तिकर्ताओं को सुविधा होगी, बल्कि गन्ना किसानों के लंबित बकाया चुकाने, कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता कम करने और विदेशी मुद्रा की बचत में मदद मिलेगी।

उन्होंने कहा कि सभी डिस्टिलरी इस योजना का लाभ ले सकेंगी और उनमें से बड़ी मात्रा में इथेनॉल की आपूर्ति होने की उम्मीद है। सरकार इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम लागू कर रही है जिसमें तेल विपणन कंपनियां (ओएमसी) 10 प्रतिशत तक इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल बेचती हैं।

वर्ष 2025-26 तक इसे 20 प्रतिशत करना है। चीनी उत्पादन का लगातार अधिशेष चीनी की कीमतों को कम कर रहा है। नतीजतन, चीनी उद्योग की किसानों को भुगतान करने की क्षमता कम होने के कारण गन्ना किसानों का बकाया बढ़ गया है। गन्ना किसानों का बकाया कम करने के लिए सरकार ने कई फैसले लिए हैं। जिसमें इथेनॉल उत्पादन के लिए 'बी' श्रेणी के शीरा, गन्ने का रस, चीनी और चीनी की चाशनी को बदलने की अनुमति देना शामिल है।
 
पैकेजिंग में जूट अनिवार्य : सरकार ने अगले एक साल के लिए अनाजों की पैकिंग में जूट की बोरियों के इस्तेमाल को अनिवार्य कर दिया है। सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने बुधवार को यहां संवाददाता सम्मेलन में बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में यह निर्णय लिया गया है जिसके तहत 1 जुलाई से अगले वर्ष 30 जून तक के लिए पैकेजिंग में जूट के अनिवार्य उपयोग के मानदंडों को मंजूरी दी गई है।

इस फैसले के तहत 2021-22 में खाद्यान्नों की पैकेजिंग में जूट के इस्तेमाल को सौ फीसदी तथा चीनी की पैकेजिंग में 20 प्रतिशत जरूरी किया गया है। उन्होंने कहा कि सरकार की इस घोषणा से कच्चे जूट और जूट पैकेजिंग सामग्री का इस्तेमाल बढे़गा जिससे घरेलू उत्पादन को बढा़वा मिलेगा और भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में यह प्रभावी कदम साबित होगा।

साल 2020-21 में जूट पैकेजिंग सामग्री के लिए देश में उत्पादित कच्चे जूट का लगभग 66.57 फीसदी का इस्तेमाल हुआ है। खाद्य सामग्री तथा अन्य पैकेजिंग में जूट के इस्तेमाल को अनिवार्य करने के सरकार के फैसले से जहां जूट उद्योग से जुड़े लाखों श्रमिकों को लाभ होगा वहीं जूट उत्पादक किसानों को भी फायदा होगा। 
श्री ठाकुर ने कहा कि जूट बेकार होने पर आसानी से नष्ट हो जाता है और यह प्राकृतिक रूप से पर्यावरण के अनुकूल है। इसी तरह से जूट को एक बार इस्तेमाल करने के बाद दोबरा प्रयोग में लाया जा सकता है जिसके कारण यह पर्यावरण के लिए और भी महत्वपूर्ण बन जाता है।
 
उन्होंने कहा कि जूट उद्योग का इस्तेमाल देश की आर्थिक गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण है और खासकर देश के पूर्वी हिस्सों पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, असम, त्रिपुरा, मेघालय, आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना जैसे राज्यों में जूट उद्योग महत्वपूर्ण स्थिति में पहुंच चुका है और पूर्वोत्तर भारत का यह बहुत बड़ा उद्योग है। सरकार हर साल खाद्यान्न के लिए आठ हजार करोड़ रुपए के जूट के बैग खरीदती है जिसके कारण इस उद्योग से जुड़े किसानों, श्रमिकों तथा अन्य लोगों के लिए रोजगार मिलना सुनिश्चित हो जाता है।
 
कपास आयोग को  17,408 करोड़ रुपए मंजूर : केंद्र सरकार ने कपास किसानों को मूल्य समर्थन  दिलाने की योजना के तहत भारतीय कपास आयोग (सीसीआई) के नुकसान की भरपायी के लिए 17,408 करोड़ रुपये की मदद के प्रस्ताव को बुधवार को मंजूरी दी।

सीसीआई को यह राशि कपास सत्र 2014-15 से 2020-21 के दौरान न्यूतम घोषित मूल्य पर खरीद में नुकसान की भरपायी के लिए दी जा रही है। अनुराग ठाकुर ने कहा कि सीसीईए ने कपास आयोग को  मूल्य समर्थन की प्रतिबद्धता के लिए 17408 करोड़ रुपए की सहायता मंजूर की है।

कपास विपण सत्र अक्टूबर से शुरू हो कर सितंबर तक चलता है।  सरकार कपास की कीमतों में गिरावट से किसानों को बचाने के लिए सीसीआई के माध्यम से मूल्य समर्थन योजना लागू करती है। सरकार के अनुसार कपास वर्ष 2020-21 में कपास की खेती का रकबा 1.33 हेक्टेयर था और कुल 3.60 करोड़ गांठ कपास की पैदावार हुई थी।

विश्व के कपास उत्पादन में भारत का योगदान करीब एक चौथाई है। सरकार कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिश पर कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है। ठाकुर ने बताया कि पिछले दो कपास सत्रों 2019-21 के दौरान सीसीआई ने करीब दो करोड़ गांठ कपास की खरीद करायी थी जो इस दौरान कपास के कुल उत्पादन के एक तिहाई के बराबर है।

उन्होंने कहा कि इससे 11 राज्यों के कपास की खेती करने वाले 58 लाख किसानों और इस काम में लगे चार करोड़ श्रमिकों को उनकी आजीविका में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि सरकारी एजेंसियों ने कोविड के दौरान भी कपास की खरीद जारी रख कर किसानों की मदद की।

कपड़ा मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि इस निर्णय से किसानों के हित की रक्षा होगी। गोयल ने ट्वीट पर कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में कैबिनेट द्वारा कपास की खरीद में एमएसपी कार्यक्रम लागू करने हेतु 17,408 करोड़ के समर्थन मूल्य को स्वीकृति दी गई। इससे कपास की खेती में देश आत्मनिर्भर होगा तथा लगभग 58 लाख किसानों के हितों की रक्षा होगी।

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