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अरुण जेटली 2014 में और 2018 के

अरुण जेटली 2014 में और 2018 के
, शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018 (16:45 IST)
नई दिल्ली। गुरुवार को बजट के बहाने बहुत सारे तथ्य उजागर हुए हैं। पहला तो यही कि नेताओं की कथनी और करनी में कितना बड़ा अंतर होता है। इस दिन इनकम टैक्स की मार खाए लोगों ने एक पुरानी रिपोर्ट को सार्वजनिक तौर पर साझा किया। 
 
हिन्दू के बिजनेस लाइन में 20 अप्रैल 2014 का समाचार छपा था। तब विपक्ष के नेता के तौर पर अरुण जेटली ने मांग की थी कि आयकर सीमा दो लाख से बढ़ाकर पांच लाख कर देनी चाहिए। यानी जिसकी कमाई सालाना पांच लाख हो उसी से टैक्स लेने की शुरुआत हो। 
 
मोदी सरकार के पांचवे बजट के साथ यह स्टोरी समाप्त हो गई। इन पांच सालों में तो अरुण जेटली ऐसा नहीं कर पाए। अब कभी कर पाएंगे या नहीं, कहा नहीं जा सकता है।
 
अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री के कहा कि 2014-15 में 6.47 करोड़ करदाता थे। 2016-17 में 8.27 करोड़ करदाता हो गए। नौकरीपेशा वालों को भले ही टैक्स छूट में कोई लाभ नहीं मिला है लेकिन इस बजट में एक दिलचस्प आकंड़ा मिला जिससे पता चलता है कि नौकरीपेशा वाले बिजनेसमैन से ज्यादा टैक्स देते हैं।
 
2016-17 में 1.89 करोड़ वेतनभोगी व्यक्तियों ने एक लाख 44 हजार करोड़ टैक्स जमा किया है। औसतन एक आदमी ने 76,306 रुपए टैक्स जमा किया जबकि 1.88 करोड़ बिजनेसमैन और व्यक्तिगत बिजनेसमैन ने 48,000 करोड़ का कर भुगतान किया। इस तबके का औसत बनता है 25,753 रुपए जो नौकरीपेशा करदाताओं से काफी कम है।
 
जीएसटी के बारे में वित्त मंत्री ने कहा कि इसको सरल बनाने वे करदाता भी इससे जुड़े जिनकी जरूरत नहीं थी। मगर दर्शाया गया टर्नओवर उत्साहवर्धक नहीं हैं। वित्त मंत्री के ही ये शब्द हैं कि 2017-18 के अनुसार व्यक्तिगत कर दाताओं और 17.99 लाख रुपए के कम औसत टर्न ओवर वाले हिन्दू अविभाजित परिवार और फर्मों से 44.72 लाख विवरणियां, यानी रिटर्न प्राप्त हुई है जिनका औ्सत कर भुगतान मात्र 7000 रुपए है।
 
संख्या के हिसाब से 44 लाख रिटर्न सुनने में बड़ा लग सकता है मगर इसका प्रति व्यक्ति रिटर्न मात्र 7000 ही है। वित्त मंत्री ने कहा है कि व्यवसायियों द्वारा बेहतर कर अनुपालन आचरण प्रदर्शित नहीं किया जा रहा है, यानी वे कर चोरी कर रहे हैं। जेटली ने शिष्ट शब्दों में कहा है कि बेहतर अनुपालन नहीं किया जा रहा है। 
 
क्या जीएसटी के आने के बाद भी व्यापारियों की टैक्स चोरी या हेरफेर संभव है? एनजीओ और ट्रस्ट के लिए सरकार ने एक उपाय यह किया है कि वे मात्र 10000 ही नकद खर्च कर पाएंगे। उससे ज्यादा नगद खर्च करने की अनुमति नहीं होगी। ये वह जानकारियां हैं जो कर लाभ या अन्य सूचनाओं के बीच दब जाती हैं।

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