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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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उन बेटियों के ‘सम्‍मान का विसर्जन’ जिन्‍होंने विदेशी धरा पर जन गण मन की धुन को सुनने का मौका दिया

उन बेटियों के ‘सम्‍मान का विसर्जन’ जिन्‍होंने विदेशी धरा पर जन गण मन की धुन को सुनने का मौका दिया
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नवीन रांगियाल

राजेंद्र नाथ ‘रहबर’ का एक शेर है... तेरे खत आज मैं गंगा में बहा आया हूं, आग बहते हुए पानी में लगा आया हूं।गंगा में प्रेमिका के खतों का यह विसर्जन मुहब्‍बत में मिली नाकामी और उसकी याद का विसर्जन था। लेकिन मैदान में अपना खून-पसीना बहाकर देश के लिए कमाया गया सम्‍मान अगर कोई स्‍पोर्टमेन गंगा में बहाने पहुंच जाए, तो इसे क्‍या कहेंगे? यह तो देश के लिए कमाए गए ‘सम्‍मान का विसर्जन’ है।

खिलाड़ियों के खून-पसीने का विसर्जन। उनके आंसूओं का विसर्जन। उस सारी न्‍याय व्‍यवस्‍था का विसर्जन है, जिसमें देश के लिए सोना-चांदी और तांबे के मेडल कमाने वाले, और विदेशी धरती पर अपने पूरे तन को तिरंगे से लपेटकर मैदान में खुशी से रोते हुए दौड़ लगाने वाले खिलाड़ियों की आत्‍मा का विसर्जन है।

इस देश में विसर्जन का बहुत महत्‍व है। भगवान श्रीगणेश का विसर्जन हो या नवरात्र में मां जगदम्‍बा की प्रतिमा का विसर्जन। यह विसर्जन आस्‍था का भाव लेकर आता है। हिन्‍दू संस्‍कृति में विसर्जन का एक पक्ष यह भी है कि जब किसी की मृत्‍यु हो जाती है तो अपने उस प्रिय की राख को भारी मन से हरिद्वार में गंगा में बहाई जाती है। इसलिए कि उस आत्‍मा को हमेशा के लिए मुक्‍ति मिल सके। लेकिन जिस अथाह परिश्रम के बाद कमाए गए सम्‍मान और मेडल को खिलाड़ी अगर व्‍यवस्‍था से नाराज होकर गंगा में बहाते हैं तो क्‍या यह देश को शर्मसार करने वाली बात नहीं है? उसी सम्‍मान को जिसके मिलने पर हमारा सिर गौरान्‍वित होकर ऊपर उठ गया था। उस सम्‍मान के विसर्जन से क्‍या हमारा सिर शर्म से झुक नहीं जाना चाहिए।

क्‍या यह इस देश की न्‍याय व्‍यवस्‍था का विसर्जन नहीं है, जिसमें सुनवाई की भी कोई गुंजाइश नहीं बची?

देश की राजधानी दिल्‍ली के जंतर-मंतर पर कई दिनों से जांच और कार्रवाई की मांग कर रहे चोटी के खिलाड़ियों की सुनवाई नहीं हो रही है तो अंदाजा लगाइए कि उस आम आदमी का क्‍या होता होगा जिसे ठीक से अपनी आवाज उठाना भी नहीं आता।

सवाल यह है कि जिस देश में बेटी बचाने का सबसे ज्‍यादा ढिंढोरा पीटा जाता है, उसी देश की साक्षी मलिक, विनेश फोगाट जैसी तमाम बेटियों को न्‍याय के लिए सड़कों पर पुलिस की बर्बरता का शिकार होना पड़ रहा है, वो भी उन बेटियों को जिन्‍होंने सिर्फ इसलिए अपना खून बहाया और हड्डियां गला दी कि वो देश के लिए एक सोने का टुकड़ा लाकर दे सके।

सवाल यह है जिस शख्स पर देश की बेटियां यौन शौषण का आरोप लगा रही हैं उसमें ऐसे कौन से सुरखाब के पर लगे हैं कि उस पर कार्रवाई तो दूर जांच तक नहीं की जा रही है। और अब आलम यह हो गया कि खिलाड़ियों को अपना वो सबसे प्रिय मेडल गंगा में बहाने को मजबूर होना पड़ रहा है।

क्‍या यह उन बेटियों के सम्‍मान का विसर्जन नहीं है जो जिन्‍होंने विदेशी धरा पर बजती हुई जन गण मन की धुन को सुनने का मौका दिया?

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