श्रीनगर। बाप रे! अगर कोई आतंकवाद के दौरान बरामद किए जाने वाले हथियारों और गोला-बारूद के आधिकारिक आंकड़ों के प्रति सुने तो यह शब्द अवश्य उसके मुहं से निकलेंगे। हथियार भी कितने कि सेना की एक कोर तैयार करने के उपरांत भी हथियार बच जाएं और अगर टनों के हिसाब से जाएं तो आतंकवादी अभी तक 2000 टन के करीब गोला-बारूद कश्मीर में इस्तेमाल कर चुके हैं और इतना ही अभी उनके भंडारों में है।
बरामद होने वाले हथियारों की संख्या बीस या सौ के हिसाब से नहीं है। लाखों के हिसाब से है। तभी तो बरामद होने वाले सामान में जहां एके क्रम की राइफलों के 25 लाख राउंड हैं तो पिस्तौलों के राउंडों की संख्या 15 लाख है जबकि यूनिवर्सल मशीनगनों की गोलियों की संख्या 18 लाख है।
हालांकि बरामद बंदूकों की संख्या हजारों में अवश्य है। बकौल सरकारी रिकॉर्ड के 45 हजार एके क्रम की राइफलें आतंकवादियों से इन 29 सालों में बरामद हुई हैं 18561 मैगजीनों के साथ। इसी अवधि में 17000 पिस्तौलें, 4985 यूनिवर्सल मशीन गनें, 1075 एलएमजी और 1923 स्निपर राइफलें बरामद की गई हैं हजारों मैगजीनों के साथ।
यह तो सिर्फ बंदूकों का हिसाब था। बरामद गोला-बारूद, रॉकेटों आदि के आंकड़ें भी कम चौंकाने वाले नहीं हैं। अब तो स्थिति यह है कि इनकी गिनती संख्या में नहीं बल्कि टनों के हिसाब से की जाने लगी है। इसी पर बस नहीं है। अब तो सेना के लिए परेशानी यह हो गई है कि वह इन हथियारों को कहां पर रखे क्योंकि अधिकतर बम, रॉकेट तथा हथगोले जीवित अवस्था में हैं जो किसी भी समय जानलेवा साबित हो सकते हैं। वैसे ये सब अप्रत्यक्ष युद्ध को जीतने की इच्छा से पाकिस्तान द्वारा इस ओर धकेला गया था।
और सबसे रोचक बात इस अप्रत्यक्ष युद्ध की यह है कि 1989 से आरंभ हुए इस अप्रत्यक्ष युद्ध को मनोवैज्ञानिक रूप से भी जीतने का प्रयास भी किया गया और उस मकसद के लिए कई टन छपी हुई सामग्री भी इस ओर धकेली गई जिन्हें सुरक्षाबल बरामद करने में सफल हुए हैं।
ऐसा भी नहीं है कि अब हथियार तथा गोला-बारूद लाने के प्रयास रुक गए हों बल्कि आतंकवादियों को जो हथियारों आदि की भारी कमी आ रही है उससे निपटने के लिए पाकिस्तान द्वारा तस्करी के अपने प्रयास और तेज किए गए हैं। वैसे आतंकवादियों के पास 2000 टन के करीब हथियार तथा गोला-बारूद अभी भी सुरक्षित भंडारों में है, परंतु अधिक सतर्कता तथा चौकसी के कारण वे उन्हें वहां से निकाल पाने को अपने आप को अक्षम पा रहे हैं।
अगर आधिकारिक आंकड़ों को देखें तो आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए आतंकवादियों तथा परिस्थितियों से जूझ रहे सुरक्षाबल मानते हैं कि आतंकवादी इन 29 सालों के दौरान करीब 3000 टन गोला-बारुद तथ अस्त्र-शस्त्रों को इस लड़ाई में खपा चुके हैं जो भारत पाक के बीच होने वाली 1965 तथा 1971 की लड़ाई में इस्तेमाल किए जाने वाले आंकड़े से दोगुना है।
इन्हीं सुरक्षाबलों का अनुमान है कि आतंकवादी अभी भी 2000 टन के करीब हथियार व गोला-बारुद अपने पास रखे हुए हैं जिनका प्रयोग आए दिन उनके द्वारा किया जाता रहा है। ऐसा भी नहीं है कि वे इन सभी का इस्तेमाल कर रहे हों बल्कि 80 प्रतिशत को सुरक्षित भंडारों में शरणदाताओं के पास रखा गया है जिसके प्रति आज भी सुरक्षाबल जानकारी प्राप्त करने में नाकाम रहे हैं।
असल में आतंकवादियों ने इन हजारों टनों सामग्री को एक ही रात में सीमा पार से इस ओर नहीं लाया और न ही पुरूलिया की ही तरह किसी विमान ने उन्हें भारतीय कश्मीर में गिराया बल्कि अधिकारी मानते हैं कि इन हजारों टन हथियारों को इस ओर लाने के लिए पाकिस्तान 1975 के बाद से ही प्रयास कर रहा था जो आज भी जारी हैं।