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तनिष्‍क से लेकर फैब इंडि‍या और अब सब्‍यसाची... आखि‍र क्‍यों होते हैं ‘विज्ञापनों पर विवाद’?

तनिष्‍क से लेकर फैब इंडि‍या और अब सब्‍यसाची... आखि‍र क्‍यों होते हैं ‘विज्ञापनों पर विवाद’?
, गुरुवार, 28 अक्टूबर 2021 (16:56 IST)
पिछले साल टाटा ग्रुप के ज्वेलरी ब्रांड तनिष्क को दिवाली विज्ञापन की वजह से विवादों का सामना करना पड़ था। ट्रोलर्स तनिष्क का बायकॉट करने की मांग कर रहे थे। तनिष्क पर हिंदू विरोधी प्रोपेगेंडा फैलाने के आरोप लगे थे, हालांकि, विवाद बढ़ने के बाद तनिष्क ने इस विज्ञापन को वापस ले लिया था।

इसके बाद हाल ही में फैब इंडि‍या को लेकर विवाद हुआ। फैब इंडिया ने दीवाली के उत्‍सव को ‘जश्‍न ए रिवाज’ कह कर अपने कपडों को प्रचारिज किया था। लोगों का कहना था कि हिंदुओं के दीवाली पर्व को उर्दू नाम जश्‍न ए रिवाज देने का क्‍या मतलब है। इस विवाद के बाद फैब इंडि‍या को भी सोशल मीडिया से अपना विज्ञापन हटाना पड़ा।

अब एक बार फि‍र से एक विज्ञापन को लेकर हंगामा हुआ है। अब फैशन और जूलरी डिजाइनर सब्यसाची मुखर्जी का नया ऐड कैंपेन सोशल मीडि‍या में ट्रेंड कर रहा है।

उनके सोशल मीडिया हैंडल पर मंगलसूत्र के ऐड से जुड़ी कुछ मॉडल्स की तस्वीरें हैं। इन फोटोज को कई लोग अश्लील और न्यूडिटी बताकर हटाने की मांग कर रहे हैं। ट्विटर पर लोग इस ऐड के विरोध में लिख रहे हैं।
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क्‍या है ऐड में?
सब्यासाची के जूलरी कलेक्शन वाले ऐड पर लोग नाराजगी जता रहे हैं। उनके ऑफिशल सोशल मीडिया हैंडल्स पर कुछ तस्वीरें हैं जिनका विरोध किया जा रहा है। फोटो में मंगलसूत्र का ऐड कर रही महिला सिर्फ ब्रा पहने है। उसके साथ में मेल मॉडल भी है। हालांकि इस कैंपेन में साड़ी पहने मॉडल्स भी हैं। दो मेल और दो फीमेल मॉडल्स वाली तस्वीरें भी दिखाई दे रही हैं।

हिंदू-मुसलिम का एंगल ढूंढने लगे
सब्यसाची ने रॉयल बंगाल मंगलसूत्र और बंगाल टाइगर आइकन नेकलेस कलेक्शन की तस्वीरें शेयर की हैं। इनके साथ इयररिंग्स और रिंग्स भी हैं। डायमंड, गोल्ड और सेमी प्रेशियस स्टोन्स की यह जूलरी काफी महंगी है।
ऐसे में सवाल है कि आखि‍र क्‍यों आए दिन विज्ञापनों को लेकर विवाद हो रहे हैं। क्‍या लोग चीजों को लेकर बहुत ज्‍यादा संवेदनशील हो गए हैं। या सिर्फ सोशल मीडि‍या का इस्‍तेमाल करने वाले यूजर्स को यह विज्ञापन अच्‍छे नहीं लगते हैं। दूसरी तरफ यह भी सवाल है कि आखि‍र एड कंपनियां क्‍यों ऐसे कंटेंट के साथ विज्ञापन बन रहे हैं, जि‍स विवाद होना तय है। क्‍या यह विज्ञापन कंपनियों की मार्केटिंग स्‍ट्रैटेजी है। या उपभोक्‍ता हर विज्ञापन में अश्‍लीलता और हिंदू-मुसलिम का एंगल ढूंढने लगे हैं।
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दरअसल, पहले भी टेलीविजन इंडस्‍ट्रीज में विज्ञापन बनते रहे हैं, इसके अलावा कई कंपनियां विज्ञापन बनाती रही हैं। ऐसे में सवाल यह पैदा होता है कि अब आखि‍र ऐसा क्‍या हुआ कि लोगों को ऐसे विज्ञापन रास नहीं आ रहे हैं। कहना मुश्‍किल है कि आखिर ऐसा क्‍यों हो रहा है, लेकिन यह बात दोनों तरफ से ध्‍यान रखी जाना चाहिए कि विज्ञापन कंपनियां भी लोगों की आस्‍था का ख्‍याल रखे और आम लोग या नेटिजन्‍स भी हर बात पर हर सब्‍जेक्‍ट को लेकर अति संवेदनशील होना बंद कर दें।

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