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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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क्‍या है देश का नया Surrogacy Act, कैसे इंदौर, नागपुर से लेकर अहमदाबाद तक Surrogacy बनी धंधा, नए कानून से कैसे लगेगी लगाम?

क्‍या है देश का नया Surrogacy Act, कैसे इंदौर, नागपुर से लेकर अहमदाबाद तक Surrogacy बनी धंधा, नए कानून से कैसे लगेगी लगाम?
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नवीन रांगियाल

  • भारत में हर साल 2 हजार बच्‍चे सेरोगेसी से पैदा होते हैं
  • 10 से 15 लाख रुपए तक तय होता है सेरोगेसी का पैकेज
  • कॉर्पोरेट कंपनी की तर्ज पर काम करता है सेरोगेसी का पूरा नेटवर्क
  • एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सेरोगेसी का 15 हजार करोड़ तक का सालाना व्‍यापार होता है
  • ब्रिटेन का मीडिया भारत में सेरोगेसी को ‘बेबी फॉर्म’ और बेबी फैक्‍ट्री कहकर पुकारती है  
इंदौर हो, नागपुर हो, या अहमदाबाद। जहां भी देश में मेडि‍कल हब हैं, या जो शहर स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के लिए बेहतर माने जाते हैं, वहां सेरोगेसी यानी किराए पर कोख देना एक धंधा हो चुका है। जिन दंपत्‍ति‍यों के किसी वजह से बच्‍चे नहीं हैं, वे सेरोगेसी की मदद लेते हैं, लेकिन उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर कुछ महिलाएं अपनी कोख को किराए पर उपलब्‍ध कराने के लिए लाखों रुपए की डि‍मांड कर डालती हैं।

कमाल की बात तो यह है कि इसके लिए किसी कॉर्पोरेट कंपनी की तरह बकायदा प्रेग्‍नेंसी पैकेज तय होते हैं, एक महिला अपनी कोख किराए पर देने के लिए 10 से 15 लाख रुपए तक लेती हैं। इस पैकेज में सरोगेट मदर की फीस, फूड, रहने की व्यवस्था और हॉस्पिटल का खर्च भी शामिल होता है। इसके लिए कई एजेंट और बड़ा नेटवर्क काम करता है। सेरोगेट मदर्स की सुविधा उपलब्‍ध कराने के लिए एजेंसियां काम कर रही हैं, जहां कई महिलाओं ने अपनी कोख किराए पर देने के लिए खुद को रजिस्‍टर्ड करवा रखा है।

रिपोर्ट तो कहती है कि भारत में सेरोगेसी का 15 हजार करोड़ से ज्‍यादा का सालाना व्‍यापार है और यह बढ़ता ही जा रहा है।

भारत को कहा था बेबी फॉर्म
आलम यह है कि दुनिया की नजर में भारत एक बेबी फॉर्म और बेबी फैक्ट्री है। दरअसल, कुछ समय पहले ब्रिटेन की एक मशहूर न्‍यूज वेबसाइट ‘द डेली मेल’ ने अपनी ‘सरोगेसी’ की रिपोर्ट में भारत के लिए ‘बेबी फॉर्म’ और ‘बेबी फैक्ट्री’ जैसे शब्‍दों का इस्‍तेमाल किया था।

इंदौर के आईवीएफ सेंटर के कुछ डॉक्‍टरों ने वेबदुनिया को अपनी दबी जुबान में बताया कि यह एक बड़ा धंधा बन चुका है, कई महिलाएं सेरोगेसी के काम में उतर आईं हैं और इसके लिए वे मोटी रकम की मांग करती हैं। ऐसे में रईस लोग तो धन खर्च कर देते हैं, लेकिन जरुरतमंद और गरीब दंपत्‍त‍ि इसका फायदा नहीं उठा पाते हैं या फि‍र मजबूरी का शि‍कार हो जाते हैं।

2 हजार बच्‍चे पैदा होते हर साल
एक डॉक्‍टर ने अपना नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर हमें बताया कि इंदौर में ही सेरोगेसी का करोड़ों रूपए का सालाना धंधा है। उन्‍होंने बताया कि भारत में कम से कम हर साल 2 हजार बच्‍चे सेरोगेसी से ही पैदा होते हैं, साल दर साल यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है।

जबकि नागपुर के बडे फर्टीलिटी सेंटर के एक डॉक्‍टर ने इसी बात को यह कहकर पुष्‍ट किया कि यह एक पूरा संगठित व्‍यापार है। जिसमे,  डॉक्‍टर की फीस, एग डोनर का खर्च, दवाईयों का खर्च और सेरोगेट बनने वाली महिला की फीस के रूप में कमाई होती है। हालांकि वो कहती हैं कि स्‍वभाविक है कि इससे निसंतान दंपत्‍तियों को फायदा होता है।
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दरअसल, सेरोगेसी तब काम आती है जब निसंतान दंपत्‍त‍ियों को किसी कारण से संतान नहीं हो रही हो, लेकिन देश में यह एक धंधा बन चुकी है, इसके लिए महिलाएं अपनी कोख किराये पर देने के लिए दंपत्‍त‍ियों से लाखों रुपए की मांग करती हैं, ऐसे में इसका अब तक कमर्शियलाइजेशन हो रहा था, लेकिन अब नए एक्‍ट में ऐसा नहीं हो सकेगा।

ऐसे मिली कानून को मंजूरी
दरअसल किराए की कोख से जुड़ा सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021 पास हो चुका है। राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस कानून को मंजूरी दे दी है।

अब गजट में प्रकाशित कर यह कानून पूरे देश में लागू हो जाएगा। इस कानून के जरिए सरोगेसी को वैधानिक मान्यता देने और इसके कमर्शियलाइजेशन पर रोक लगाने का प्रावधान किया गया है।

इस नए कानून से सरोगेसी को ‘धंधा’ बनाए जाने पर रोक लगेगी। इस कानून के जरिये केवल मातृत्व सुख प्राप्त करने के लिए ही सरोगेसी की अनुमति दी जाएगी।

सरोगेसी (विनियमन) बिल 2019 को 17 दिसंबर को राज्यसभा से पारित करा लिया गया था। उस समय विपक्ष के हंगामे के बीच इसे सदन में ध्‍वनिमत से मंजूरी दे दी गई थी। लोकसभा में यह बिल पहले ही पारित हो गया था।

क्‍या है सेरोगेसी और क्‍या बदल जाएगा महिलाओं के लिए।

क्‍या होती है Surrogacy
सरोगेसी का मतलब है, दूसरे के बच्चे को अपनी कोख में पालना। जब किसी महिला को कोई परेशानी होती है तो वह दूसरी महिला की कोख में अपना बच्‍चा विकसित करवाती है।

दंपती की ओर से सरोगेट मदर की प्रेग्नेंसी के दौरान स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखना और सारे खर्च की जिम्मेदारी लेना दंपती के हिस्से होता है। जाहिर है कि किसी महिला की कोख किराये पर ली जाती है।

ऐसे होती है Surrogacy
बच्चा पैदा होने के लिए पति और पत्नी या कहिए कि महिला और पुरुष के बीच सेक्शुअल रिलेशन होना जरूरी होता है। लेकिन इसमें ऐसा जरूरी नहीं है। किराए की कोख के लिए दूसरी महिला को तैयार करने के बाद डॉक्‍टर आईवीएफ तकनीक के जरिए पुरुष के स्पर्म में से शुक्राणु लेकर उसे महिला की कोख में प्रतिरोपित करते हैं।

दो तरह की होती है Surrogacy
परंपरागत Surrogacy: पारंपरिक सरोगेसी में किराये पर ली गई कोख में पिता का स्पर्म महिला के एग्स से मैच कराया जाता है। इस सरोगेसी में बच्चे का जेनिटक संबंध केवल पिता से होता है।

जेस्टेशनल Surrogacy: इस विधि में पिता का स्पर्म और मां के एग्स को मि‍लाकर टेस्ट ट्यूब के जरिए सेरोगेट मदर के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है। इससे जो बच्चा पैदा होता है, उसका जे​नेटिक संबंध दोनों से होता है।

क्‍या है नए एक्‍ट में?
नए एक्ट के मुताबिक, सरोगेसी की अनुमति तभी दी जाएगी जब संतान के लिए इच्‍छुक जोड़ा मेडिकल कारणों से बांझपन से प्रभावित हो। यानी सामान्य तौर पर दंप​ती संतान सुख के काबिल न हों।

इस कानून के जरिए बच्चे पैदा करके उसे बेचने, वेश्यावृत्ति में धकेलने या फिर अन्य किसी तरह के शोषण पर रोक लगाई जा सकेगी।

सरोगेट मां को गर्भावस्था के दौरान मेडिकल खर्च और बीमा कवरेज के अलावा और कोई वित्तीय मुआवजा नहीं दिया जाएगा।

सरोगेट मदर बनने वाली महिला और दंपत्ति के बीच एक खास एंग्रीमेंट किया जाता है। सरोगेट मदर को प्रेग्नेंसी के दौरान अपना ध्यान रखने और मेडिकल जरूरतों के लिए तो पैसे दिए जाते ही हैं, सरोगेसी के लिए वह अलग से एक अमाउंट चार्ज करती है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।

पहले सरोगेसी के लिए लोग ज्यादा से ज्यादा पैसे खर्च करने को तैयार रहते थे और ऐसे में इसका कमर्शियलाइजेशन होता चला गया। लेकिन सरकार का उद्देश्य है कि जरूरतमंद दंपतियों को संतान सुख मिल सके। इसके जरिये महिलाओं के शोषण पर रोक लगे।
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कब होती है Surrogacy
– जब तमाम प्रयासों और इलाज के बावजूद महिला गर्भधारण नहीं कर पा रही हों, तो सरोगेसी एक अच्छा विकल्प साबित होता है।
– जब तमाम तरह के इलाज के बावजूद भी महिला का गर्भपात हो रहा हो तब सरोगेसी की मदद ली जा सकती है।
– गर्भाशय या श्रोणि विकार होने पर सेरोगेसी को ऑप्शन के तौर पर देखा जा सकता है।
– भ्रूण आरोपण उपचार के फेल्योर के बाद सरोगेसी के जरिए बच्चा हासिल किया जा सकता है।
– हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट प्रॉब्लम या अन्य गंभीर तरह की जेनेटिक स्वास्थ्य समस्याओं में भी कई बार डॉक्टर सरोगेसी का सहारा लेने की सलाह देते हैं।

क्‍या कहते हैं डॉक्‍टर्स
कई गायनोकॉलि‍जिस्‍ट डॉक्‍टर भी मानते हैं कि सेरोगेसी अब तक धंधा बन चुकी थी। इंदौर के एक डॉक्‍टर ने नाम नहीं प्रकाशि‍त नहीं करने की शर्त पर बताया कि अब तक इसका बेजा फायदा उठाया जा रहा था। हालांकि अब नए एक्‍ट में इस पर लगाम लगेगी और जरूरतमंदों की उम्‍मीदें पूरी होंगी।

एक अन्‍य डॉक्‍टर (नाम नहीं प्रकाशि‍त करने पर) ने कहा कि इसके लिए कई तरह के लोग सक्रि‍य हैं, ऐसे गि‍रोह को भीचिन्‍हि‍त कर के उन पर शि‍कंजा कसना होगा, नहीं तो प्रतिबंध लगाना आसान नहीं होगा। इस पूरी प्रक्र‍िया को पारदर्शी रखना होगा।

इन शहरों और राज्‍यों में पसरा
बता दें कि देश में जहां भी मेडि‍कल हब है या जहां गायनोकॉलोजिस्‍ट एक्‍पर्टाइज है, वहां जमकर इसका कर्मशि‍यलाइजेशन हो रहा है और पसर रहा है। इसके लिए बकायदा गिरोह काम कर रहे हैं। इनमें मप्र के इंदौर, महाराष्‍ट्र के नागपुर, गुजरात के अहमदाबाद और वडोदरा, चैन्‍नई समेत कई शहरों और राज्‍यों में इसका व्‍यापक पैमाने पर गलत इस्‍तेमाल किया जा रहा है।

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