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घरेलू महिलाओं को लेकर भारतीय पुरुषों को सुप्रीम कोर्ट ने क्या दी नसीहत

Supreme court

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

नई दिल्ली , बुधवार, 10 जुलाई 2024 (16:53 IST)
Supreme Courts Big Alimony Order For Muslim Women :  सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को भारतीय समाज में घरेलू महिलाओं की स्थिति को लेकर अहम टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि अब समय आ गया है, जब भारतीय मर्दों को होममेकर्स की भूमिका को समझना चाहिए। अदालत ने कहा कि एक गृहिणी अपने परिवार के लिए बहुत त्याग करती है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस अगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने मुस्लिम महिला की ओर से गुजारे भत्ते की मांग पर यह बात कही। 
क्या था पूरा मामला : मोहम्मद अब्दुल समद नाम के व्यक्ति ने अदालत का रुख किया था। उसने फैमिली कोर्ट के उस फैसले को चैलेंज किया था, जिसमें प्रति माह 20 हजार रुपए का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया था। अब्दुल समद ने इस फैसले को पहले तेलंगाना हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे उसने घटाकर 10 हजार रुपये कर दिया गया था। इसके बाद समद ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उसके वकील ने अदालत में कहा कि मुस्लिम महिला अधिकार संरक्षण एवं तलाक कानून, 1986 के तहत कोई भी तलाकशुदा मुस्लिम महिला गुजारे की मांग कर सकती है। इसके लिए सेक्शन 125 की जरूरत नहीं है। इस पर अदालत ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं भी सेक्शन 125 के तहत ही गुजारे की हकदार हैं। 
 
क्या कहा अदालत ने : अदालत ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि सीआरपीसी के सेक्शन 125 के तहत कोई भी मुस्लिम महिला पति से अलग होते हुए एलमिनी यानी गुजारे की मांग कर सकती है। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में धर्म मायने नहीं रखता। कोई भी विवाहित महिला अलगाव की स्थिति में पति से गुजारा भत्ता मांगने की हकदार है। परिवार में गृहिणियों की अहम भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कोर्ट ने कहा कि यह जरूरी है कि पति अपनी पत्तियों को आर्थिक सहयोग दें। अदालत ने इसका तरीका भी बताते हुए कहा कि आपको जॉइंट अकाउंट्स खुलवाने चाहिए। इसके अलावा पत्नी को एटीएम कार्ड देकर उसे अकाउंट का एक्सेस देना चाहिए।
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इससे उसके जीवन में एक आर्थिक स्थिरता होगी और वह घर में सम्मानित महसूस करेगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि एक मुस्लिम महिला भी अपने पति से तलाक के बाद गुजारे की हकदार है। कोर्ट ने कहा कि गुजारा देना कोई चैरिटी नहीं है बल्कि महिला का अधिकार है। महिलाओं का यह अधिकार धार्मिक सीमाओं से परे है। लैंगिक समानता और विवाहित महिलाओं के अधिकारों के लिए यह आवश्यक है। बेंच ने कहा कि सेक्शन 125 कहता है कि पर्याप्त संसाधन रखने वाला कोई व्यक्ति अपनी पत्नी, बच्चों और पैरेंट्स के लिए गुजारा दे। इनपुट एजेंसियां

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