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राफेल विमान सौदे और सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनाएगा फैसला, जानिए 7 खास बातें

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गुरुवार, 14 नवंबर 2019 (07:48 IST)
नई दिल्ली। राफेल लड़ाकू विमान सौदे को बरकरार रखने और सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश के फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट आज गुरुवार को फैसला सुनाएगा। जानिए दोनों मामलों से जुड़ीं 7 खास बातें-
 
1. सुप्रीम कोर्ट ने राफेल लड़ाकू विमान सौदे को बरकरार रखने के 14 दिसंबर 2018 को फैसला सुनाया था। इसके बाद इसके खिलाफ रिव्यू पिटिशन दाखिल की गई थी।
 
2. सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश को अनुमति देने वाले अपने आदेश पर पुनर्विचार करने की मांग कर रहीं याचिकाओं पर भी आज ही फैसला सुनाया जाएगा।
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3. सुप्रीम कोर्ट राफेल मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी तथा कार्यकर्ता-वकील प्रशांत भूषण समेत कुछ अन्य की याचिकाओं पर फैसला सुनाएगी जिनमें पिछले साल के 14 दिसंबर के उस फैसले पर पुनर्विचार की मांग की गई है। इसमें फ्रांस की कंपनी 'दसॉल्ट' से 36 लड़ाकू विमान खरीदने के केंद्र के राफेल सौदे को क्लीन चिट दी गई थी।
 
4. सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसफ की पीठ राजनीतिक रूप से संवेदनशील राफेल मामले पर फैसला सुनाएगी। 14 दिसंबर 2018 को सबसे बड़ी अदालत ने 58,000 करोड़ के इस समझौते में कथित अनियमितताओं के खिलाफ जांच का मांग कर रहीं याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
 
5. सबरीमाला मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट 56 पुनर्विचार याचिकाओं, 4 ताजा रिट याचिकाओं और मामला स्थानांतरित करने संबंधी 5 याचिकाओं समेत 65 याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएगा। ये सभी याचिकाएं उसके फैसले के बाद दायर की गई थीं।
 
6. सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केरल में हिंसक प्रदर्शन हुए थे। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने 28 सितंबर 2018 के उसके फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने के बाद 6 फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
 
7. पीठ में न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा शामिल हैं। कोर्ट ने 4:1 के बहुमत से 28 सितंबर 2018 को दिए फैसले में 10 से 50 वर्ष की आयु वाली महिलाओं और लड़कियों के प्रवेश पर रखी रोक को यह कहकर हटा दिया था कि हिन्दू धर्म की सदियों पुरानी यह परंपरा गैरकानूनी और असंवैधानिक है। 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने खुली अदालत में याचिकाओं पर सुनवाई की थी। इस मामले में कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

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