नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने उसके द्वारा 2015 में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कानून की धारा 66ए निरस्त करने के बावजूद लोगों के खिलाफ इस प्रावधान के तहत मामले दर्ज किए जाने पर सोमवार को आश्चर्य व्यक्त किया और इसे चौकाने वाला बताया। न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने गैरसरकारी संगठन (एनजीओ) पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की ओर से दायर आवेदन पर केंद्र को नोटिस जारी किया।
पीठ ने पीयूसीएल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारीख से कहा कि क्या आपको नहीं लगता कि यह आश्चर्यजनक और चौंकाने वाला है? श्रेया सिंघल फैसला 2015 का है। यह वाकई चौंकाने वाला है। जो हो रहा है, वह भयानक है। पारीख ने कहा कि 2019 में अदालत के स्पष्ट निर्देश दिए कि सभी राज्य सरकारें 24 मार्च 2015 के फैसले के बारे में पुलिसकर्मियों को संवेदनशील बनाएं, बावजूद इसके इस धारा के तहत हजारों मामले दर्ज कर लिए गए। पीठ ने कहा कि हां हमने वे आंकड़े देखें हैं। चिंता न करें, हम कुछ करेंगे। पारीख ने कहा कि मामले से निपटने के लिए किसी तरह का तरीका होना चाहिए, क्योंकि लोगों को परेशानी हो रही है।
न्यायमूर्ति नरीमन ने पारीख से कहा कि उन्हें सबरीमला फैसले में उनके असहमति वाले निर्णय को पढ़ना चाहिए और यह वाकई चौंकाने वाला है। केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि आईटी अधिनियम का अवलोकन करने पर देखा जा सकता है कि धारा 66ए उसका हिस्सा है और नीचे टिप्पणी है, जहां लिखा है कि 'इस प्रावधान को रद्द कर दिया गया है।'
वेणुगोपाल ने कहा कि जब पुलिस अधिकारी को मामला दर्ज करना होता है तो वह धारा देखता है और नीचे लिखी टिप्पणी को देखे बिना मामला दर्ज कर लेता। अब हम यह कर सकते हैं कि धारा 66ए के साथ ब्रैकेट लगाकर उसमें लिख दिया जाए कि इस धारा को निरस्त कर दिया गया है। हम नीचे टिप्पणी में फैसले का पूरा उद्धरण लिख सकते हैं। न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि आप कृपया 2 हफ्तों में जवाबी हलफनामा दायर करें। हमने नोटिस जारी किया है। मामले को 2 हफ्ते के बाद सूचीबद्ध कर दिया है।(भाषा)