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शीर्ष न्यायालय ने कहा, राष्ट्रगान के वक्त सिनेमाघर में खड़ा होना जरूरी नहीं

शीर्ष न्यायालय ने कहा, राष्ट्रगान के वक्त सिनेमाघर में खड़ा होना जरूरी नहीं
, मंगलवार, 24 अक्टूबर 2017 (06:40 IST)
नई दिल्ली। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि देशभक्ति साबित करने के लिए सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के समय खड़ा होना जरूरी नहीं हैं। न्यायालय ने इसके साथ ही केंद्र सरकार से कहा कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने को नियंत्रित करने के लिए नियमों में संशोधन पर विचार किया जाए।
 
शीर्ष अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि अगर कोई व्यक्ति राष्ट्रगान के लिए खड़ा नहीं होता है तो ऐसा नहीं माना जा सकता कि वह ‘कम देशभक्त’ है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनंजय वाइ चंद्रचूड़ के तीन सदस्यीय खंडपीठ ने समाज को ‘नैतिक पहरेदारी’ की आवश्यकता नहीं है, जैसी टिप्पणी करते हुए कहा कि अगली बार सरकार चाहेगी कि लोग सिनेमाघरों में टी शर्ट्स और शार्ट्स में नहीं जाएं क्योंकि इससे राष्ट्रगान का अपमान होगा।
 
पीठ ने कहा कि वह सरकार को ‘अपने कंधे पर रखकर बंदूक चलाने की अनुमति’ नहीं देगी। पीठ ने इसके साथ ही सरकार से कहा कि वह राष्ट्रगान को नियंत्रित करने के मुद्दे पर विचार करे। न्यायालय ने संकेत दिया कि सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाने को अनिवार्य करने संबंधी अपने एक दिसंबर, 2016 के आदेश में सुधार कर सकती है और वह इसमें अंग्रेजी के ‘मे’ शब्द को ‘शैल’ में तब्दील कर सकती है।
 
पीठ ने कहा, लोग सिनेमाघरों में मनोरंजन के लिए जाते हैं। समाज को मनोरंजन की आवश्यकता है। हम आपको हमारे कंधे पर रखकर बंदूक चलाने की अनुमति नहीं दे सकते। लोगों को अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के समय खड़ें होने की आवश्यकता नहीं है।
 
पीठ ने कहा, अपेक्षा करना एक बात है लेकिन इसे अनिवार्य बनाना एकदम अलग बात है। नागरिकों को अपनी आस्तीनों पर देशभक्ति लेकर चलने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता और अदालतें अपने आदेश के माध्यम से जनता में देशभक्ति नहीं भर सकती हैं।
 
उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत ने सभी सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाने के लिए पिछले साल श्याम नारायण चोकसी द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान ये सख्त टिप्पणियां कीं। इन टिप्पणियों के विपरीत, न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाले पीठ ने ही पिछले साल एक दिसंबर को सभी सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले ‘अनिवार्य रूप से’ राष्ट्रगान बजाने और दर्शकों को सम्मान में खड़े होने का आदेश दिया था।
 
इस मामले में सोमवार को सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि भारत विविधताओं वाला देश है और एकरूपता लाने के लिए देश के सभी सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने की आवश्यकता है।
 
उन्होंने कहा कि यह सरकार के विवेक पर छोड़ देना चाहिए कि क्या सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाया जाना चाहिए और क्या लोगों को इसके लिए खड़ा होना चाहिए। इस पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, आपको ध्वज संहिता में संशोधन करने से कौन रोक रहा है? आप इसमें संशोधन कर सकते हैं और प्रावधान कर सकते हैं कि राष्ट्रगान कहां बजाया जाएगा और कहां नहीं बजाया जा सकता।
 
आजकल तो यह मैचों, टूर्नामेंट और यहां तक कि ओलंपिक में भी बजाया जाता है जहां आधे दर्शक तो इसका मतलब भी नहीं समझते हैं। इसके बाद न्यायालय ने केंद्र से कहा कि वह देश भर के सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने के लिए राष्ट्रीय ध्वज संहिता में संशोधन के बारे में नौ जनवरी तक उसके पहले के आदेश से प्रभावित हुए बगैर ही विचार करे। इस मामले में अब नौ जनवरी को आगे विचार किया जाएगा। (भाषा)

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