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कैंसर के विरुद्ध आईआईटी मद्रास ने विकसित किया एक नया एल्गोरिदम

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गुरुवार, 15 जुलाई 2021 (12:55 IST)
नई दिल्ली,  भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के शोधार्थियों के एक अध्ययन से कैंसर उपचार की दिशा में बड़ी सफलता मिलने की उम्मीद बंधी है। संस्थान के शोधार्थियों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित एक एल्गोरिदम विकसित किया है, जो कोशिकाओं में कैंसर का कारण बनने वाले परिवर्तनों को चिन्हित करती है। इस एल्गोरिदम में डीएनए कंपोजीशन की अपेक्षाकृत कम उपयोग वाली तकनीक का उपयोग किया गया है।

कैंसर का मुख्य कारण उन अनियंत्रित कोशिकाओं के विकास को माना जाता है जो प्रमुख रूप से जेनेटिक अल्ट्रेशन यानी आनुवंशिक प्रत्यावर्तन से संचालित होती हैं। बीते कुछ वर्षों के दौरान डीएनए सीक्वेंसिंग के मोर्चे पर मिली बड़ी सफलता ने इन परिवर्तनों की पड़ताल कर कैंसर शोध के क्षेत्र में क्रांतिकारी पहल की है। हालांकि इन सीक्वेंसिंग डाटाबेस की जटिलता और आकार के कारण कैंसर मरीज में जीनों में वास्तविक परिवर्तन की थाह लेना अत्यंत मुश्किल है।

यह शोध आईआईटी मद्रास में माइंडट्री फैकल्टी फेलो और रॉबटर्ट बॉश सेंटर फॉर डेटा साइंस एंड एआइ (आरबीसीडीएसएआई) के प्रमुख बी. रवींद्रन, आईआईटी मद्रास में आरबीसीडीएसएआई के संकाय सदस्य और आईआईटी मद्रासमें सेंटर फॉर इंटीग्रेटिव बायोलॉजी एंड सिस्टम मेडिसिन (आईबीएसई) में समन्वयक डॉ. कार्तिक रमण के निर्देशन में हुआ।

आईआईटी मद्रास में परास्नातक छात्र शायंतन बनर्जी ने प्रयोगों को संपादित करने के साथ ही शोध से संबंधित डेटा का विश्लेषण किया। इस शोध के परिणाम प्रतिष्ठित ‘इंटरनेशन जर्नल ऑफ कैंसर’ में प्रकाशित हुए हैं।

इस अध्ययन को लेकर तार्किकता के बारे में प्रो. बी, रवींद्रन कहते हैं, 'कैंसर शोधकर्ताओं के समक्ष एक प्रमुख चुनौती अपेक्षाकृत कम संख्या में चालक उत्परिवर्तन के बीच अंतर को स्पष्ट करने की आती है। यही कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने में सक्षम बनाता है जबकि पैसेंजर उत्परिवर्तन का रोग की प्रगति पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता।’ शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि उनके गणितीय प्रारूप से जिस चालक उत्परिवर्तन का पता चलेगा, उससे आखिरकार सही दवा खोजने की राह खुलेगी। इससे सही व्यक्ति को सही समय पर सही दवा देने की अवधारणा साकार हो सकेगी।

इस तकनीक की आवश्यकता पर शोध के नेतृत्वकर्ता डॉ. कार्तिक रमण कहते हैं, 'अतीत में हुए अध्ययनों से निकली तकनीकों में शोधकर्ता अमूमन कैंसर मरीजों के एक बड़े समूह से मिले डीएनए सीक्वेंस का विश्लेषण करते थे। साथ ही कैंसर और सामान्य कोशिकाओं की सीक्वेंस की तुलना और किसी उत्परिवर्तन के अक्सर घटित होने का पता लगाते थे। हालांकि इस 'बारंबार' वाली अवधारणा से प्रायः अपेक्षाकृत दुर्लभ चालक उत्परिवर्तन की पता नहीं लग पाता था।' नया शोध इस मामले में कुछ ठोस परिणाम देता है। (इंडिया साइंस वायर)

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