नई दिल्ली, भारत पिछले कुछ समय से विभिन्न किस्म की मौसमी प्रतिकूलताओं से जूझता आया है। उनमें गर्म हवाएं यानी हीटवेव्स को भी एक खतरनाक मौसमी परिघटना माना जाता है।
यूं तो दुनिया के तमाम हिस्सों में इसके अलग-अलग नाम हैं। जैसे अमेरिका में चिनूक, भूमध्यसागरीय देशों में मैस्ट्रो और इराक तथा फारस की खाड़ी में शामल इत्यादि। भारत में गर्म हवाओं को लू के नाम से जाना जाता है, जो गर्मियों के मौसम में मुख्य रूप से उत्तर भारतीय इलाकों को अपनी चपेट में लेती है। हालांकि देश के तमाम अन्य हिस्से भी गर्म हवाओं की तपिश से परेशान रहते हैं। गर्म लू के थपेड़ों की चपेट में आकर हर साल सैकड़ों लोगों को जान गंवानी पड़ती है। देश के शीर्ष मौसम वैज्ञानिकों के हालिया शोध से इसकी पुष्टि हुई है कि इन गर्म हवाओं ने पिछले पचास वर्षों के दौरान देश में करीब 17,000 लोगों की जान ली है।
शोध पत्र का दावा है कि वर्ष 1971 से 2019 के बीच देश में गर्म हवाओं के 706 मामले दर्ज किए गए। इस शोध पत्र को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में सचिव एम, राजीवन के साथ वैज्ञानिक कमलजीत रे, एसएस रे, आरके गिरि और एपी डिमरी ने लिखा है। इसका प्रकाशन इसी साल के आरंभ में हुआ है।
गर्म हवाओं को विषम मौसमी परिघटना मानते हुए उन्होंने कहा है कि शोध की समीक्षाधीन अवधि के दौरान करीब 1,41,308 लोगों की मौत विभिन्न विषम मौसमी परिघटनाओं के कारण हुई, जिसमें से 17,362 लोग गर्म हवाओं की चपेट में आकर मौत के शिकार बने। अध्ययन के अनुसार, इस प्रकार प्रतिकूल मौसमी परिघटनाओं के कारण हुई मौतों में से करीब 12 प्रतिशत से अधिक गर्म हवाओं के कारण हुईं।
आम-धारणा के उलट इस शोध से यह भी पता चलता है कि भले ही लू जैसी हवाओं का प्रकोप उत्तर भारतीय इलाकों में अधिक होता है, लेकिन गर्म हवाओं के कारण सबसे अधिक मौते देश के तटीय इलाकों में होती हैं। इस अध्ययन के अनुसार गर्म हवाओं से सबसे ज्यादा मौतें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा राज्यों में हुईं।
अध्ययन के अनुसार कोर हीटवेव जोन (सीएचजेड) ही गर्म हवाओं के लिहाज से सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्र होते हैं, जबकि अध्ययन में सीएचजेड वाली श्रेणी में पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को शामिल किया गया है। इन क्षेत्रों में गर्म हवाओं के सबसे ज्यादा मामले मई के महीने में देखने को मिलते हैं।
यह अध्ययन इस दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है कि कुछ अरसे से उत्तरी गोलार्ध के विभिन्न इलाकों में गर्म हवाओं के मामलों में भयंकर बढ़ोतरी देखी जा रही है। इसके कारण उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप में स्थित संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में कई लोगों के मरने की खबरें सामने आई हैं। हैरानी की बात है कि कनाडा के वैंकूवर में इस दौरान अधिकतम 49 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया है।
इस अध्ययन में गर्म हवाओं के कारण मृत्यु दर में बढ़ोतरी के साथ-साथ संवेदनशील राज्यों में वज्रपात की घटनाओं की भी थाह ली गई है। इसमें कहा गया है कि मैदानी इलाकों में 40 डिग्री सेल्सियस और पर्वतीय इलाकों में 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान पर ही गर्म हवाओं के लिए परिवेश निर्मित होता है। हालांकि तटीय इलाकों में 40 डिग्री तापमान और अन्य केंद्रों पर 45 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान की स्थिति में गर्म हवाओं की स्थिति घोषित की जाती है। इस प्रकार देखा जाए तो जब वास्तविक तापमान सामान्य अधिकतम तापमान से अधिक, जो अमूमन 40 डिग्री सेल्सियस से ही अधिक होता है, तभी गर्म हवाओं यानी हीटवेव्स की स्थिति घोषित की जाती है।
हीटवेव्स पर जनवरी 2020 के दौरान संसद में एक प्रश्न को लेकर अपने लिखित जवाब में केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा था कि हालिया अध्ययनों में यह सामने आया है कि देश में तापमान बढ़ोतरी के साथ-साथ हीटवेव्स के वाकये भी बढ़े हैं। उन्होंने इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग यानी वैश्विक तापवृद्धि को जिम्मेदार बताया था।
गर्म हवाओं के साथ स्वास्थ्य संबंधी कई जोखिम जुड़े हुए हैं। इसी कारण यह मामला इतना गंभीर बन गया है। गर्म हवाओं की चपेट में आकर पानी की कमी समेत कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो सकती हैं और उनके चरम पर पहुंचने पर पीड़ित व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। (इंडिया साइंस वायर)