Sanitary Pad: महिलाओं के 'उन दिनों' की राहत बन रही पर्यावरण की आफत, सैनिटरी पैड डीकंपोज होने में लगते हैं 800 साल
इंदौर में हर दिन 7 टन सैनिटरी पैड वेस्ट का कलेक्शन, देश का एकमात्र शहर जहां इस स्तर पर हो रहा है काम
Sanitary Pad Waste Management
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भारत में हर साल 1 लाख टन से भी ज्यादा पैड का इस्तेमाल होता है।
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एक सैनिटरी पैड को डीकंपोज होने में 500 से 800 साल लगते हैं।
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इंदौर में हर दिन 6-7 टन सैनिटरी पैड को डीकंपोज किया जाता है।
Sanitary Pad Waste Management : मासिक धर्म महिलाओं के वो चार दिन, खून की बूंदों का किस्सा नहीं बल्कि दर्दनाक मंज़र है। इन चार दिनों में महिलाओं को शर्म का नकाब पहनाया जाता है। यह समाज का बनाया हुआ रिवाज है क्योंकि आज भी बाजारों में सैनिटरी पैड को काली पन्नी या अखबार में छुपाकर दिया जाता है। सामाजिक दबाव के कारण कई महिलाएं दुकानों से सैनिटरी पैड लेने में इतनी शर्मिंदा हो जाती हैं कि उन्हें कपड़े का इस्तेमाल करना पड़ता है।
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मेंस्ट्रुअल हेल्थ एलायंस इंडिया के अनुसार भारत में करीब 36% महिलाओं की आबादी सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती है। हैरानी की बात है कि हर महीने 1 बिलियन से भी ज्यादा पैड इस्तेमाल किए जाते हैं। यानी हर साल 1 लाख टन से भी ज्यादा पैड का इस्तेमाल होता है।
घर के बाहर या गलियों में खून से सने ये पैड यू हीं बिखरे पड़े होते हैं। भारत के कई इलाकों में अब भी इनको ठीक तरह से डिस्पोज नहीं किया जा रहा है। सैनिटरी वेस्ट के लिए देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर से सीखना चाहिए जो हर दिन 6-7 टन सैनिटरी पैड को डिस्पोस करता है।
एक पैड को डिस्पोस होने में लगते हैं 800 साल:
टॉक्सिक लिंक इन इंडिया की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार एक एवरेज सैनिटरी पैड में 4 प्लास्टिक बैग जितना प्लास्टिक होता है। एक सैनिटरी पैड को डीकंपोज होने में 500 से 800 साल लगते हैं। इसके बाद भी भारत में सैनिटरी पैड का ठीक ढंग से वेस्ट डिस्पोजल मैनेजमेंट नहीं है। ग्रामीण एरिया या छोटे शहरों में महिलाएं पैड को खुले में या तालाब और नदी में डालती हैं।
इंदौर में सैनिटरी वेस्ट के लिए जबरदस्त प्रबंध:
भारत में सिर्फ इंदौर में ही सैनिटरी पैड और डायपर का इतने बड़े पैमाने पर सही तरीके से डीकंपोज़ किया जाता है। इंदौर नगर निगम ने सभी तरह के वेस्ट मैनेजमेंट की जिम्मेदारी Eco Pro Environmetal Service नामक प्राइवेट कंपनी को दी है। यह कंपनी इंदौर के लिए पिछले 5 सालों से काम कर रही है। इस कंपनी द्वारा ही इंदौर के गीले, सूखे और सैनिटरी कचरे को अलग अलग तरीकों से रीसायकल और डीकंपोज किया जाता है।
वेबदुनिया ने Eco Pro के डायरेक्टर असद वारसी से बात की और जाना कि कैसे इंदौर में सैनिटरी वेस्ट का डिस्पोजल मैनेजमेंट किया जाता है।
सैनिटरी वेस्ट के लिए Incinerator Machine का इस्तेमाल:
डायरेक्टर असद वारसी ने हमें बताया कि सैनिटरी वेस्ट का कोई प्रोडक्ट नहीं बनाया जा सकता है। कुछ नियम के अनुसार सैनिटरी पैड और डायपर को incinerator machine के अंदर डीकंपोज किया जाता है। इन्हें डीकंपोज करने के बाद सिर्फ राख बचती है। इस रख को hazardous waste management कंपनी को दे दिया जाता है। ऐसा करने से इससे होने वाले बैक्टीरिया और बीमारियों का खतरा कम हो जाता है।
हर दिन 6-7 टन सैनिटरी वेस्ट किया जाता है कलेक्ट:
इंदौर में हर दिन 6-7 टन सैनिटरी वेस्ट कलेक्ट किया जाता है। भारत में सिर्फ इंदौर में ही सैनिटरी वेस्ट को अलग से कलेक्ट किया जाता है। सबसे पहले डोर टू डोर नगर निगम की गाड़ियों से इसे कलेक्ट किया जाता है। नगर निगम की कचरा गाड़ियों में डायपर और सैनिटरी पैड के लिए अलग बॉक्स है। इसके बाद यह कचरा ट्रांसफर स्टेशन पर जाता है। फिर इसे सांवेर के बायो मेडिकल फैसिलिटी पर पहुंचाया जाता है। इसके बाद वेस्ट को incinerator machine में जलाया दिया जाता है। हर दिन 6-7 टन सैनिटरी वेस्ट जलाया जाता है जिसमें से सिर्फ 30-40 किलो राख बचती है।
2020 से इस मॉडल पर इंदौर कर रहा है काम:
इंदौर में incinerator machine साल 2000 से इंस्टॉल की गई थी। यह मशीन अस्पताल के वेस्ट को डीकंपोज करने के लिए लगाई गई थी। स्वच्छ भारत मिशन के बाद 2019-2020 से कचरे को 3 हिस्सों में बांटा गया जिसमें से गीला कचरा, सूखा कचरा और सैनिटरी वेस्ट को अलग किया गया। 2020 से सैनिटरी वेस्ट को भी incinerator machine में जलाकर डीकंपोज किया जाने लगा।
कैसे बनाया जाता है सैनिटरी पैड?
सैनिटरी पैड में 90 प्रतिशत तक प्लास्टिक होता है। सैनिटरी पैड में सबसे ज़रूरी इसकी अब्सोर्बेंड लेयर है। यह लेयर ब्लड को अब्सॉर्ब करती है। अब्सॉर्ब करने के लिए हाइड्रोफिलिक सेल्यूलोसिक स्टेपल फाइबर का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें लकड़ी की लुगदी (wood pulp), कॉटन लिंटर, विस्कोस का इस्तेमाल किया जाता है। एक सैनिटरी पैड में पांच लेयर होती हैं। ब्लड को अब्सॉर्ब करने के लिए superabsorbent polymers (SAPs) का इस्तेमाल किया जाता है। SAPs या तो सेल्युलोसिक फाइबर मैट्रिक्स के अंदर कणिकाओं के रूप में होते हैं या एक मिक्स कपड़े की परत में हो सकते हैं। साथ ही इसमें डाइऑक्सिन, स्पनलेस फैब्रिक और पॉलिथीन का भी इस्तेमाल किया जाता है।
क्यों खतरनाक है पर्यावरण के लिए सैनिटरी पैड?
सैनिटरी पैड की पूरी लाइफ साइकिल, पर्यावरण के लिए हनिकारक है। इसके बनने से लेकर डीकंपोज होने तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन शामिल है। सैनिटरी पैड पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी हानिकारक गैस छोड़ता है। हवा में ज़हर घोलता सैनिटरी पैड, इस कारण से जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण बढ़ता है।
जलीय पर्यावरण के लिए खतरा बन रहा:
ग्रामीण एरिया में कई महिलाएं तालाब और नदी में सैनिटरी पैड फेक देती हैं। सैनिटरी पैड और डायपर में डाइऑक्सिन, फ़ेथलेट्स और फॉर्मेल्डिहाइड जैसे केमिकल होते हैं। यह केमिकल ब्लीचिंग, सुगंध और अवशोषण के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। ये केमिकल मिट्टी में घुल जाते हैं फिर भूजल या आसपास की नदियों और झीलों तक पहुंच जाते हैं। यह प्रदूषण मछली और अन्य जलीय जीवों के लिए खतरा पैदा करता है।
इको फ्रेंडली पैड का करें इस्तेमाल:
भारत में कई ऐसी कंपनियां हैं को इको फ्रेंडली पैड का प्रोडक्शन कर रही हैं। इन पैड की लेयर को पूरी तरह से कॉटन से बनाया जाता है। साथ ही ये पैड लगभग 200 दिन में डीकंपोज हो जाते हैं। इन पैड में री-साइकिल मटेरियल का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही यह त्वचा और सेहत के लिए सुरक्षित होते हैं। इसलिए आप अपनी साधारण पैड की जगह इको फ्रेंडली पैड का इस्तेमाल कर सकते हैं।
सैनिटरी पैड इस्तेमाल करने के बाद आपकी ज़िम्मेदारी खत्म नहीं होती है। पैड को इस्तेमाल करने के बाद उसे पेपर या अखबार में अच्छे से पैक करें। इसके बाद इसे घर या संस्था के सूखे कचरे या सॉलिड वेस्ट वाले डस्टबिन में ही डालें। घर के आस-पास या खुले मैदान में इसे न फेकें क्योंकि इससे आपकी और पर्यावरण की सेहत को काफी नुकसान होता है। जागरूक बनें और सही ढंग से सैनिटरी पैड या डायपर को डिस्पोज करें।