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कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन में प्रियंका गांधी ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका

कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन में प्रियंका गांधी ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
, सोमवार, 23 जनवरी 2017 (09:22 IST)
15 साल से सत्ता से बाहर रही भाजपा की वापसी को रोकने के लिए समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने रविवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले गठबंधन का औपचारिक ऐलान कर दिया। दोनों पार्टियों के प्रदेश प्रमुखों ने संवाददाता सम्मेलन में घोषणा की कि राज्य की 403 विधानसभा सीटों में से सपा 298 तथा कांग्रेस शेष 105 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। एक समय ऐसा भी आया था जब यह गठबंधन लटकता दिख रहा था, लेकिन ऐसी स्थिति में कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने मामले में हस्तक्षेप किया और बातचीत को आगे बढ़ाया।
माना जा रहा था कि गठबंधन नहीं होने की एक बड़ी वजह यह थी कि बातचीत के लिए कांग्रेस का कोई बड़ा नेता नहीं पहुंच रहा था। न तो राहुल गांधी आगे आए और न ही प्रियंका गांधी। उनकी तरफ से यूपी में पार्टी के इलेक्शन कैम्पेनर प्रशांत किशोर और आईएस ऑफिसर रहे धीरज श्रीवास्तव को अखिलेश के पास भेजा गया था। हालांकि, अहमद पटेल ने इस बात से इनकार किया है। उनका कहना है कि इसके लिए गुलाम नबी आजाद और प्रियंका गांधी की अखिलेश यादव से बातचीत हो रही थी।
 
इंडियन एक्सप्रेस की खबर की मानें तो अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव के पास शुक्रवार या शनिवार की रात को एक बजे के करीब प्रियंका गांधी का फोन आया। उन्होंने कहा कि अखिलेश ने फोन बंद किया हुआ है, लेकिन अखिलेश ने पहले ही कांग्रेस से कह रखा था कि गठबंधन की बात वे लोग डिंपल से कर सकते हैं। बताया जा रहा है कि प्रियंका और डिंपल के नजदीकियां बढ़ी हैं, जिसकी वजह से यह गठबंधन मुमकिन हो पाया। सूत्रों के अनुसार इसके बाद रविवार सुबह अखिलेश यादव ने प्रियंका को फोन किया और इसके बाद गठबंधन का रास्ता साफ हो गया। 
 
कयास लगाए जा रहे हैं कि राहुल गांधी और अखिलेश यादव के एक साथ चुनाव प्रचार करेंगे तो दूसरी ओर प्रियंका गांधी और डिप्पल यादव प्रचार की कमान संभालेंगे। इस गठबंधन के लिए प्रियंका गांधी जिस तरह से सक्रिय दिखीं उससे अटकलें लगाई जा रही है कि अब वे लोकसभा चुनाव में सक्रिय रूप से राजनीति में उतरेंगी।
 
विशेषज्ञों का मानना है कि यह गठबंधन दोनों दलों के लिए फायदे का सौदा हो सकता है। 2012 में दोनों दलों के वोट शेयर (40 फीसदी) के एक साथ आने से जीत की संभावना बढ़ सकती है। दोनों दलों को एक दूसरे के वोट बैंक और कार्यकर्ताओं का सहयोग मिलेगा। ऐसे में भाजपा और बसपा के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती है।

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