आमतौर पर माना जाता है कि जेलों में कैदी सिर्फ अपना समय और सजा काटते हैं, लेकिन महाराष्ट्र की कई जेलों में इन दिनों जो नवाचार देखने में आ रहा है, वो देश की दूसरी जेलों में बंद कैदियों के लिए मिसाल बनकर सामने आ रहा है।
दरअसल, यहां जेलों बंद कैदी जेल में रहते हुए बीए, एमए और एमबीए जैसी डिग्रियां हासिल कर रहे हैं। महाराष्ट्र की जेलों में बंद ऐसे करीब 145 कैदी हैं, जिन्होंने अलग-अलग डिग्रियां हासिल कीं। जेल प्रशासन ने उनकी इस उपलब्धि के बदले 3 महीने की सजा कम कर दी। यानि उन सब कैदियों को अपनी तय सजा से 3 महीने पहले रिहा कर दिया गया, जिन्होंने जेल में रहते हुए परीक्षाएं पास कीं।
दरअसल, देवानंद और विजय नाम के दो कैदियों को हत्या के मामले में सजा हुई थी। 2020 में उन दोनों ने ही बीए की परीक्षा पास कर ली और इसलिए उनको 90 दिन की छूट दे दी गई है। आलम यह है कि देवानंद और विजय को देखकर कई दूसरे कैदी भी प्रेरणा ले रहे हैं और डिग्रियां हासिल कर रहे हैं ताकि वे जेलों से जल्दी रिहा हो सके।
इस बारे में नागपुर सेंट्रल जेल की डिप्टी सुप्रीडेंट दीपा आगे ने वेबदुनिया को बताया कि हम कैदियों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करते हैं। जेल में बंद कैदी यहीं रहकर पढ़ाई करते हैं। यहां जेल में पढ़ाई के लिए सेंटर बना रखे हैं। उन्होंने बताया कि जेल में ही क्लासेस लगती हैं, जेल में ही पढ़ाई और फिर परीक्षा भी जेल में ही होती है। दीपा आगे ने बताया कि यहां जेल में बंद कैदी इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी और यशवंतराव चव्हाण महाराष्ट्र ओपन यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करते हैं।
नागपुर जेल के सुप्रीडेंट वैभव आगे ने बताया कि दरअसल, कैदियों की पढ़ाई का यह सिलसिला पिछले 10 साल से चल रहा है।एक दशक से भी लंबे वक्त से बंद कैदी अब जेल में पोस्ट ग्रैजुएशन तक करने लगे हैं। इन दोनों कैदियों ने इस साल एमए की भी परीक्षा पास कर ली और ऐसे में उन्हें सजा में छूट मिल रही है।
145 कैदियों ने हासिल की डिग्रियां : महाराष्ट्र की जेलों में ऐसे 145 कैदी हैं, जिन्होंने बीते तीन साल में हाईस्कूल, इंटरमीडिएट, ग्रैजुएशन और पोस्टग्रैजुएशन की परीक्षाएं पास की हैं। महाराष्ट्र की 10 जेलों में कैदियों के लिए एजुकेशन सेंटर चलाए जा रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि कैद के दौरान पढ़ाई से कैदियों को एक उद्देश्य मिल जाता है। उन्होंने कहा, कई लोगों को कम ही उम्र में जेल हो जाती है। ऐसे में उनकी पढ़ाई भी छूट जाती है। जेल में भी अगर वे चाहें तो पढ़ाई जारी रख सकते हैं। वहीं पढ़ाई करने के बाद रिहाई पर उन्हें नौकरी भी मिल सकती है।
जेल के बाद जॉब की उम्मीद : दरअसल, जेल में रहकर पढ़ाई करने का फायदा यह है कि रिहाई के बाद भी रोजी-रोटी, नौकरी और कमाई के दूसरे साधन मिलने के विकल्प खुल जाते हैं। एडिशनल डीजीपी अमिताभ गुप्ता के मुताबिक जेल से छूटने के बाद समाज में घुलने-मिलने और अपने परिवार का पालन करने में पढ़ाई की बड़ी भूमिका रहती है। वहीं एजुकेशन से वे अपराध से दूर होते हैं।
क्या है नियम : महाराष्ट्र की 60 जेलों में महाराष्ट्र प्रिजन रूल्स 1962 के मुताबिक सजा में छूट मिल सकती है। 2019 में एक सर्कुलर जारी करके कहा गया था कि 10वीं, 12वीं, ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रैजुएशन, पीएचडी, एमफिल करने वालों को 90 दिनों की विशेष छूट मिलेगी। इसके अलावा इस सर्कुलर में यह भी कहा गया था कि अगर जेलर चाहें तो 60 दिनों की अतिरिक्त छूट भी दे सकते हैं।
नागपुर का केस : मीडिया के आंकड़ों के मुताबिक 3 सालों में नागपुर सेंट्रल जेल के 61 कैदियों को यह सुविधा मिली है। एक महिला ने भी नागपुर जेल में पोस्टग्रैजुएशन किया। वे पति-पत्नी हत्या के मामले में जेल में बंद थे। जेल में इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी और यशवंतराव चव्हाण महाराष्ट्र ओपन यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करवाई जाती है। इसके लिए शिक्षक की भी नियुक्ति की गई है।
कैदी पढ़ाते हैं कैदियों को : जेल प्रशासन के मुताबिक सबसे अच्छी बात यह है कि अगर कोई कैदी अच्छा पढ़ा- लिखा है तो वो जेल के दूसरे कैदियो को पढ़ा सकता है। 8 साल में कम से कम 2200 कैदियों ने परीक्षाएं पास की हैं। ज्यादातर कैदी बीए, एमए, समाजशास्त्र, राजनीति शास्त्र, हिंदी, मराठी में करते हैं। इसके अलावा कैदी 6 महीने के कोर्स भी करते हैं। कई कैदियों ने तो जेल में एमबीए तक किया है। नागपुर समेत महाराष्ट्र की जेलों में हो रहे इस नवाचार के लिए जेल प्रशासन की चारों तरफ जमकर तारीफ हो रही हैं। दरअसल, इसकी वजह से जेलों में बंद दूसरे कैदियों में भी उम्मीद जाग रही है और वे पढ़ाई के लिए आगे आ रहे हैं।
Edited By Navin Rangiyal