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21000 फुट पर लड़ी गई थी जंग, पाक में भी हुए थे बाना की बहादुरी के चर्चे

21000 फुट पर लड़ी गई थी जंग, पाक में भी हुए थे बाना की बहादुरी के चर्चे

सुरेश एस डुग्गर

, मंगलवार, 19 नवंबर 2019 (16:09 IST)
जम्मू। दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धस्थल सियाचिन हिमखंड पर 35 सालों के कब्जे के दौरान 21 हजार फुट की ऊंचाई पर आज तक सिर्फ एक ही लड़ाई हुई है। यह लड़ाई दुनिया की अभी तक की पहली और आखिरी लड़ाई थी जिसमें एक बंकर में बनी पोस्ट पर कब्जा जमाने के लिए जम्मू के ऑनरेरी कैप्टन बाना सिंह को परमवीर चक्र दिया गया था और उस पोस्ट का नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा गया है।
 
कैप्टन बाना सिंह को परमवीर चक्र मिला था और आज वे जम्मू के सीमावर्ती गांव रणवीर सिंह पुरा में रहते हैं। वे अपने मिशन को बयां करते हुए बताते थे कि यह बात सियाचिन हिमखंड पर भरतीय फौज के कब्जे के तीन साल बाद की है, जब 1987 में पाकिस्तानी सेना ने 21 हजार फुट की ऊंचाई पर कब्जा कर एक बंकर रूपी पोस्ट का निर्माण कर लिया था। मुहम्मद अली जिन्ना के नाम पर बनाई गई यह पोस्ट भारतीय सेना के लिए समस्या पैदा रही थी और खतरा बन गई थी क्योंकि पाक सैनिक वहां से गोलियां बरसा कर नुकसान पहुंचाने लगे थे।
 
दुनिया की सबसे ऊंचाई पर बनाई गई इस एकमात्र सैनिक पोस्ट पर कब्जे का अभियान शुरू हुआ तो 1987 के मई महीने में चुनी गई 60 सैनिकों की टीम का बाना सिंह भी हिस्सा बने थे। बाना सिंह को जब परमवीर चक्र मिला था तो पाकिस्तान डिफेंस रिव्यू में भी उनकी बहादुरी के चर्चे हुए थे जिसमें लिखा गया था कि ‘वह बहादुरी जिसकी कोई मिसाल नहीं है’।
 
पाक में भी हुए बाना की बहादुरी के चर्चे : 26 जून 1987 को अंततः 21000 फुट की ऊंचाई पर बनाई गई पाकिस्तानी पोस्ट पर कब्जा कर बहादुरी की गाथा लिखने पर कैप्टन बाना सिंह को बतौर इनाम परमवीर चक्र तो मिला ही था साथ ही इस पोस्ट का नाम उनके नाम पर भी रख दिया गया। विश्व के इतिहास में यह पहला और आखिरी मौका था कि इतनी ऊंचाई पर कोई युद्ध लड़ा गया था।
 
पर इस जीत के लिए भारतीय सेना को बहुत कीमत चुकानी पड़ी थी। 22 जून को शुरू हुए ऑपरेशन में उसके कई अफसर और जवान  वीरगति को प्राप्त हुए थे। कारण स्पष्ट था। गोलाबारी के साथ-साथ मौसम की परिस्थिति उनके कदम रोक रही थी। कई बार इस  ऑपरेशन को बंद करने की बात भी हुई और इरादा भी जगा था, लेकिन कमान हेडक्वार्टर से एक ही संदेश था- ‘या तो जीत हासिल करना या जिंदा वापस नहीं लौटना।’ और वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों ने इस संदेश का मान रखा था।
 
भूखे रहकर लड़ी जवानों ने जंग : इस ऑपरेशन में चीता हेलीकॉप्टरों ने अहम भूमिका निभाई थी। करीब 400 बार उन्होंने उड़ानें भरकर और दुश्मन के तोपखाने से अपने आप को बचाते हुए जवानों और अफसरों को बंकर के करीब पहुंचाया था।

इस लड़ाई का एक कड़वा और दिल दहला देने वाला सच यह था कि 21000 फुट की ऊंचाई पर शून्य से 60 डिग्री नीचे के तापमान में भारतीय जवानों ने तीन दिन भूखे पेट रहकर इस फतह को हासिल किया था और पाकिस्तानी बंकर में मोर्चा संभालने वाले 6 पाकिस्तानियों को मारने के बाद बचे हुए भारतीय जवानों ने पाकिस्तानी स्टोव को जलाकर पाकिस्तानी चावल पकाकर पेट की भूख शांत की थी।
 
ऑपरेशन मेघदूत : आज यानी 19 नवंबर के दिन ही 1984 में कश्मीर में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने के लिए सशस्त्र बलों ने अभियान छेड़ा था। इसे ऑपरेशन मेघदूत का नाम दिया गया। यह सैन्य अभियान अनोखा था क्योंकि दुनिया की सबसे बड़ी युद्धक्षेत्र में पहली बार हमला शुरू किया गया था। सेना की कार्रवाई के परिणामस्वरूप भारतीय सैनिक पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण हासिल कर रहे थे।

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