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'गांव की ओर' कार्यक्रम : पंच-सरपंच सुरक्षा को लेकर चिंतित

सुरेश एस डुग्गर
गुरुवार, 28 नवंबर 2019 (17:02 IST)
जम्मू। सरकारी तौर पर आयोजित 'गांव की ओर' प्रोग्राम में शामिल हो रहे पंचों-सरपंचों की सुरक्षा पुख्ता बनाने की खातिर प्रशासन ने अतिरिक्त सुरक्षाकर्मियों की तैनाती तो की है लेकिन इसमें शामिल होने वले पंचों-सरपंचों का सवाल था कि बाद में उन्हें कौन सुरक्षा मुहैया करवाएगा। यह सवाल इसलिए यक्षप्रश्न बन गया है क्योंकि पिछले 8 साल से पंच-सरपंच आतंकियों के निशाने पर हैं और 2 दिन पहले ही वे एक पंचायत घर पर हमला कर एक सरपंच की हत्या कर चुके हैं।

जानकारी के लिए अनंतनाग के हाकूरा इलाके में हुए गत मंगलवार ग्रेनेड हमले में एक सरपंच और एक सरकारी कर्मी समेत 2 लोग मारे गए थे। सूत्रों ने बताया कि कश्मीर में आतंकी संगठन जम्मू कश्मीर पुलिस के अधिकारियों व जवानों के अलावा पंचायत प्रतिनिधियों को निशाना बनाएंगे, इस साजिश के बारे में एक अलर्ट करीब सात दिन पहले ही खुफिया तंत्र ने जारी कर दिया था। अनंतनाग में गत रोज हुए ग्रेनेड हमले से जुड़े सूत्रों के अनुसार, 3 संदिग्ध तत्वों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया है। उनसे जो सुराग मिले हैं, उसके मुताबिक यह वारदात तथाकथित तौर पर हिज्ब व लश्कर के 3 आतंकियों ने मिलकर अंजाम दी है।

इस हमले के बाद राज्य सरकार के 30 नवंबर तक चलने वाले 'गांव की ओर' प्रोग्राम में शिरकत करने वाले पंच-सरपंच चिंतित हैं। उनकी चिंता आतंकी धमकियां और चेतावनियां हैं। हालांकि प्रशासन उन्हें इस प्रोग्राम के दौरान उचित सुरक्षा मुहैया करवा रहा है लेकिन बाद में क्या होगा कोई नहीं जानता क्योंकि पुलिस अधिकारी कहते हैं कि प्रत्येक पंच-सरपंच को व्यक्तिगत सुरक्षा मुहैया नहीं करवाई जा सकती है।

दरअसल राज्य में ग्रामीण लोकतंत्र को फलता-फूलता देखकर हताश हो रहे आतंकी अब तक 19 पंचों-सरपंचों की हत्या कर चुके हैं। दक्षिण कश्मीर में सबसे अधिक हत्याएं हुई हैं। दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग के हाकूरा में सरपंच सईद रफीक की हत्या से पहले भी इस प्रकार के कई मामले हो चुके हैं। आतंकी कश्मीर में पंचायत चुनाव लड़ने वाले लोगों को मैदान से पीछे हटने के लिए धमकाते आए हैं। ग्रामीणों ने जब विकास व शांति के लिए धमकियों को दरकिनार कर चुनाव लड़ा तो आतंकी उनकी जान के दुश्मन बन गए।

वर्ष 2011 में पंचायत चुनाव में 43 हजार ग्रामीण प्रतिनिधियों के चुने जाने के बाद आतंकियों ने पंचों-सरपंचों की हत्याएं शुरू कर दी थी। एक साल के अंदर 7 पंचों-सरपंचों की हत्या कर दी गई थी। इनमें से 5  दक्षिण कश्मीर में हुई। उसके बाद से ग्रामीण प्रतिनिधियों की हत्याओं का सिलसिला जारी है। ऐसे हालात में पंचों-सरपंचों की सुरक्षा का मुद्दा 8 वर्षों से उठता आया है। पंचायत प्रतिनिधियों ने यह मुद्दा केंद्र में मोदी सरकार से लेकर जम्मू-कश्मीर में राज्य सरकारों व राज्यपाल प्रशासन से भी उठाया है। इस दिशा में कोई उचित कार्रवाई न होने से आतंकवादग्रस्त इलाकों में पंच-सरपंच खुलकर लोगों के बीच नहीं जा सकते हैं।

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