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रूसी तेल पर अमेरिकी प्रतिबंध : भारत के लिए तेल का आयात फिर हुआ महंगा

राम यादव
Oil import again becomes expensive for India : भारत में डीज़ल-पेट्रोल का भाव इन्हीं दिनों कुछ घटा था, लेकिन चार दिनों की इस चांदनी के बाद भारत सरकार को उनका भाव जल्द ही फिर से बढ़ाना पड़ेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका ने यूक्रेन के विरुद्ध चल रहे रूसी युद्ध की दूसरी वर्षगांठ के साथ ही रूसी कच्चे तेल पर और अधिक कठोर नए प्रतिबंध थोप दिए हैं। 
    
इन प्रतिबंधों का लक्ष्य रूस के प्रमुख तेल-टैंकर ग्रुप 'सोवकोमफ्लोत' और कच्चे तेल के परिवहन के उससे जुड़े 14 तेल टैंकर हैं। इससे भारतीय तेलशोधक रिफ़ाइनरियों के लिए ऐसे तेलवाही टैंकर पाने की चुनौती बढ़ गई है, जो उनके लिए भारत को अब तक मिल रहा सस्ता रूसी कच्चा तेल ला सकें। चिंता यह भी है कि ये टैंकर अपने किरायों में अब तक जो रियायतें दे रहे थे, उन्हें घटा देंगे या किराया एकमुश्त बढ़ा देंगे। 
 
तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक भारत : भारत विदेशी कच्चे तेल का दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा आयातक है। 2022 से पहले भारतीय रिफ़ाइनरियां रूसी कच्चा तेल शायद ही या बहुत कम आयात किया करती थीं, क्योंकि रूसी तेल का परिवहन-ख़र्च काफ़ी महंगा पड़ता था। उस समय मुख्यतः दुबई और सऊदी अरब जैसे पश्चिमी एशिया के देशों और अमेरिका से तेल आता था।
 
लेकिन दो वर्ष पूर्व रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद अमेरिका और यूरोपीय संघ ने रूसी तेल के बहिष्कार की जो नीति अपनाई, उसके कारण रूस को अपना तेल सस्ता करना पड़ा। 2023 में वह भारत के लिए तेल का सबसे सस्ता निर्यातक बन गया। 2022 में रूस से भारत प्रतिदिन औसतन 6,52,000 बैरल तेल मंगा रहा था, जबकि 2023 में यह मात्रा बढ़कर 16,60,000 बैरल प्रतिदिन हो गई।
 
रूस से दूरी, अमेरिका से निकटता : भारत इस बीच तेल की क़ीमत में रियायत पाने की तलाश में धीरे-धीरे रूस से दूर जा रहा है और अमेरिकी कच्चे तेल का आयात एक बार फिर बढ़ा रहा है। रूस पर लगाए जा रहे अमेरिकी और य़ूरोपीय प्रतिबंधों के लगातार बढ़ते हुए दबावों के कारण तेल की आपूर्ति के दूसरे स्रोत खोजने के लिए भारत इस समय विवश है।
 
अमेरिकी समाचार पोर्टल ब्लूमबर्ग ने अज्ञात व्यापारियों का हवाला देते हुए ख़बर दी है कि सरकारी स्वामित्व वाली भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन और निजी रिफाइनरी ऑपरेटर रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने अप्रैल महीने के लिए मार्च में ही 70,00,000 बैरल अमेरिकी कच्चे तेल की खरीद की है। पिछले साल मई के बाद का इसे सबसे बड़ा ऑर्डर बताया जा रहा है।
 
भुगतान में देरी, मुद्रा पर विवाद : भुगतान में देरी और भुगतान की मुद्रा पर विवाद ने हाल के महीनों में रूसी तेल आपूर्तिकर्ताओं और भारतीय खरीदारों के बीच संबंधों पर अतिरिक्त बोझ डाला है। कड़े अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण रूसी तेल का भारत पहुंचाना और भी मुश्किल हो रहा है। इस कारण भी भारत, सऊदी अरब सहित अन्य देशों से पिछले समयों की अपेक्षा पहले ही अधिक तेल खरीद चुका है।
 
ब्लूमबर्ग के अनुसार, पिछले फ़रवरी महीने में भारत में रूसी कच्चे तेल का आयात लगभग 4 करोड़ बैरल के बराबर था, जो देश की कुल ख़रीद का लगभग 30 प्रतिशत है। 2023 के दौरान भारतीय बाज़ार में रूसी तेल की हिस्सेदारी 39 प्रतिशत थी। दूसरी ओर अमेरिकी कच्चे तेल का आयात 2021 में भारत के कुल आयात का 10 प्रतिशत था। पिछले दो वर्षों में गिरकर वह मात्र 4 प्रतिशत ही रह गया, क्योंकि रूसी हिस्सेदारी बहुत बढ़ गई थी।
 
परिवहन लागत : व्यापारियों का कहना है कि भारतीय रिफाइनरियों ने मार्च 2024 में अमेरिका से ज्यादातर वेस्ट टेक्सास  इंटरमीडिएट मिडलैंड (डब्ल्यूटीआई मिडलैंड) का कच्चा तेल खरीदा है। उसकी डिलीवरी लागत मध्य पूर्व के देशें से आने वाले तेल की डिलीवरी लागत की तुलना में अधिक थी। वहीं सोकोल ब्रांड का रूसी कच्चा तेल अब कम आयात किया जा रहा है।

रूस के पश्चिमी बंदरगाहों से यूराल सहित अन्य रूसी कच्चे तेल की डिलीवरी भी य़ूरोप-अमेरिका के सख़्त प्रतिबंधों से प्रभावित हुई है। इस किस्म का परिवहन करने वाले दो टैंकर हफ्तों से भारतीय तट पर निठल्ले खड़े बताए जा रहे हैं।
 
रूस भी नए ग्राहकों की तलाश में : रूस भी अब अपने तेल के लिए नए ग्राहकों की तलाश कर रहा है। इन्हीं दिनों पता चला है कि रूस ने लैटिन अमेरिकी देश वेनेजुएला को तेल भेजना शुरू कर दिया है। फरवरी में रूस ने वेनेज़ुएला को 2,60,000 बैरल डीजल ईंधन की और उसके बाद 18,00,000 बैरल यूराल ब्रैंड कहलाने वाले कच्चे तेल की आपूर्ति की। भारत में जो लोग पेट्रोल-डीज़ल के बार-बार महंगा होने का रोना रोते हैं, वे यह जानने-समझने का कष्ट नहीं करते कि भारत को किन-किन स्रोतों से और कैसी-कैसी शर्तों पर कच्चा तेल ख़रीदना पड़ता है।
 
तेल की महंगाई से केवल भारत ही नहीं, वे सभी देश हमेशा परेशान रहते हैं, जो स्वयं तेल उत्पादक देश नहीं होने के कारण तेल-समृद्ध देशों की मनमर्ज़ी और अमेरिका जैसे देशों के मनमाने प्रतिबंधों के आगे विवश हैं। यह भी नहीं भूल जाना चाहिए कि ईंधन के रूप में तेल पर्यावरण प्रदूषण, तापमानवर्धन और कई प्रकार की बीमारियों के बढ़ने का भी एक बहुत बड़ा कारण है। तेल का उपयोग निरंतर घटना चाहिए, न कि बढ़ना।
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

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