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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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अब दिल्ली से लड़ी जाएगी लद्दाख की लड़ाई, लद्दाखियों की हुंकार 'दिल्ली चलो'

Ladakh
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सुरेश एस डुग्गर

जम्मू। 30 सालों के आंदोलन के बाद लद्दाखियों ने जो केन्द्र शासिक प्रदेश (यूटी) का दर्जा पाया था, वह उन्हें रास नहीं आया तो अब फिर से राज्य का दर्जा पाने और विशेषाधिकार पाने की खातिर लद्दाखियों ने अब दिल्ली से अपनी लड़ाई लड़ने की ठानी है। लद्दाखियों ने अब ‘दिल्ली चलो’ की हुंकार भरते हुए केंद्र सरकार के समक्ष अपनी एकता और ताकत का प्रदर्शन करने की ठानी है।
 
हालांकि केंद्रीय गृह मंत्रालय लद्दाख में संघर्षरत समूहों के साथ बातचीत फिर से शुरू करने के लिए सभी विकल्पों की खोज कर रहा है, दो फ्रंटलाइन संगठनों- कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (केडीए) और लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) के नेताओं ने ‘दिल्ली चलो’ का आह्वान किया है और फैसला किया है कि 15 फरवरी को दिल्ली के जंतर-मंतर पर जोरदार विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।
 
केडीए और एलएबी लद्दाख के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा, लद्दाख के आदिवासी लोगों के हितों की रक्षा के लिए छठी अनुसूची के कार्यान्वयन, कारगिल और लेह के लिए अलग लोकसभा सीटों की स्थापना सहित अपनी 4 प्रमुख मांगों के समर्थन में आंदोलन चला रहे हैं। यही नहीं वे चाहते हैं कि लद्दाख में सभी राजपत्रित पदों के लिए अनिवार्य आवश्यकता के रूप में लद्दाख निवासी प्रमाण पत्र की उनकी मांग को पूरा किया जाए तथा लद्दाख का अपना लोक सेवा आयोग भी होना चाहिए।
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15 फरवरी को दिल्ली में प्रदर्शन : पूर्व मंत्री और केडीए के वरिष्ठ नेता कमर अली अखून कहते थे कि हमने उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) के एकतरफा गठन पर अपनी असहमति व्यक्त करते हुए केंद्र को लिखा है, लेकिन हमें कोई जवाब नहीं मिला है। हमने दिल्ली के जंतर-मंतर पर अपने विरोध प्रदर्शन को आगे बढ़ाने का फैसला किया है। यह निर्णय लिया गया है कि केडीए और एलएबी के प्रतिनिधि, छात्र, सामाजिक और राजनीतिक समूहों द्वारा समर्थित लोग 15 फरवरी की दोपहर को दिल्ली में एक मजबूत विरोध प्रदर्शन करेंगे। अखून ने कहा कि लद्दाखी लोगों की मांग जायज है और केंद्र को जल्द से जल्द उन पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
 
याद रहे कि 15 जनवरी को केडीए और एलएबी के प्रमुख नेताओं ने अपनी 4 मांगों को लेकर दबाव बनाने के अभियान के तहत यहां जम्मू में जोरदार विरोध प्रदर्शन किया था। उन्होंने गृह मंत्रालय द्वारा गठित एचपीसी से दूर रहने का फैसला किया क्योंकि सरकार ने उनके 4 सूत्री एजेंडे को नजरअंदाज किया और पैनल की संरचना के बारे में उनके सुझाव पर भी ध्यान नहीं दिया।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala
 

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