Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

आम बजट : निर्मला सीतारमण के सामने हैं कमजोर मानसून व अन्य कई बड़ी चुनौतियां

आम बजट : निर्मला सीतारमण के सामने हैं कमजोर मानसून व अन्य कई बड़ी चुनौतियां
, रविवार, 30 जून 2019 (12:51 IST)
नई दिल्ली। पहली बार देश का आम बजट पेश करने की तैयारी कर रहीं वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण पर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने, सरकारी निवेश में बढ़ोतरी करने के साथ ही निजी निवेश आकर्षित करने के उपाय करने, उपभोग बढ़ाने की नीति अपनाने और वेतनभोगियों को आयकर तथा विभिन्न मदों में छूट के जरिए खुश करने की बड़ी जिम्मेदारी है।
 
सीतारमण 5 जुलाई को चालू वित्त वर्ष का आम बजट पेश करेंगी। वे पहली बार बजट पेश करेंगी। वित्तमंत्री का कामकाज संभालने के बाद से ही वे बजट की तैयारियों में लग गईं और हर क्षेत्र के प्रतिनिधियों के साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर महत्वपूर्ण देशों के राजनयिकों तथा प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से भी मुलाकात कर चुकी हैं।
 
विश्लेषकों का कहना है कि आर्थिक गतिविधियों में आ रही सुस्ती को थामते हुए ऐसी नीतियां बनाने की जरूरत है जिससे रोजगार के अधिक अवसर सृजित हों। नोटबंदी और वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) को लागू किए जाने के बाद से अर्थव्यवस्था पर काफी दबाव है और उम्मीद के अनुरूप रोजगार के अवसर भी सृजित नहीं हो रहे हैं। निजी निवेश में तेजी नहीं आ रही है और जब तक निजी निवेश में तेजी नहीं आएगी, तब तक रोजगार के अधिक अवसर सृजित नहीं हो सकते हैं।
 
उन्होंने कहा कि इसके अतिरिक्त वित्तमंत्री पर राजस्व घाटा और चालू खाता घाटा को भी लक्षित दायरे में रखने का दबाव है, क्योंकि पहले 2 महीने में राजस्व घाटा 3.66 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया है। अप्रैल और मई महीने में ही देश का राजस्व घाटा पूरे वित्त वर्ष के लिए निर्धारित बजट अनुमान के 52 प्रतिशत पर पहुंच चुका है। सरकार को अनुमान के अनुरूप 2 महीने में राजस्व नहीं मिला है।
 
चालू वित्त वर्ष में सरकार ने राजस्व घाटे का लक्ष्य 3.4 प्रतिशत रखा, जो पिछले वित्त वर्ष के समान है। इसके साथ ही चालू खाता घाटे को भी लक्षित दायरे में रखना भी चुनौतीपूर्ण होगा।
 
विश्लेषकों ने कहा कि चालू मानसून सीजन में अब तक बहुत कम बारिश हुई है जिसका ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बहुत विपरीत असर पड़ सकता है और ग्रामीण क्षेत्रों में मांग बढ़नी मुश्किल हो सकती है। इसके मद्देनजर सरकार पर दूसरे माध्यम से मांग बढ़ाने के उपाय करने का दबाव होगा। इसके लिए भी बजट में प्रावधान करने की आवश्यकता होगी।
 
यदि अनुमान के अनुरूप बारिश नहीं होगी तो अनाजों की पैदावार प्रभावित होगी जिससे महंगाई बढ़ेगी। महंगाई में तेजी आने पर ग्रामीण के साथ ही शहरी क्षेत्रों में भी लोगों की थाली की लागत को नियंत्रित करना बहुत बड़ी चुनौती बन जाएगी।
 
उन्होंने कहा कि वर्ष 2018-19 की अंतिम तिमाही में आर्थिक विकास दर 5 वर्ष के निचले स्तर पर पहुंच गई जिसमें तेजी लाना वित्तमंत्री के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण और गंभीर मुद्दा है, क्योंकि जब तक आर्थिक गतिविधियों में तेजी नहीं आएगी तब तक रोजगार के अवसर सृजित नहीं होंगे। आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने के लिए उपभोग में जबरदस्त तेजी आनी चाहिए ताकि हर क्षेत्र में मांग आए और निजी निवेश बढ़ने के साथ रोजगार के अवसर बढ़ें।
 
विश्लेषकों के अनुसार आम चुनाव के मद्देनजर पेश किए गए अंतरिम बजट में 5 लाख रुपए तक की आय को करमुक्त करने की घोषणा कर इस आय वर्ग के लोगों को खुश करने की कोशिश की गई थी, लेकिन अब सरकार पर हर वेतनभोगी को किसी न किसी तरह से कुछ राहत पहुंचाने का दबाव है।
 
इसके लिए वर्तमान छूट को जारी रखते हुए व्यक्तिगत आयकर की छूट की सीमा को बढ़ाकर कर 5 लाख रुपए करने, निवेश पर दी जाने वाली छूट की सीमा को बढ़ाकर 2 लाख रुपए करने और चिकित्सा बीमा की राशि को बढ़ाने का सरकार पर दबाव होगा ताकि लोगों में अधिक बचत करने की भावना जागृत हो और सरकार को इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ ही सामाजिक एवं लोक कल्याण कार्यक्रमों के लिए अधिक धनराशि मिल सके।
 
उन्होंने कहा कि उद्योग संगठनों ने भी न्यूनतम वैकल्पिक कर में कमी करने की मांग की है। उद्योग को प्रोत्साहित करने की जरूरत है ताकि वे अधिक निवेश करने के लिए प्रेरित हो सकें। इससे न सिर्फ रोजगार के अवसर बढ़ेंगे बल्कि औद्योगिक गतिविधियों से जुड़े सभी क्षेत्रों में तेजी आएगी जिसका लाभ अंतत: अर्थव्यवस्था को होगा। (वार्ता)

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

वर्ल्ड कप में अपराजित विराट की सेना को भगवा रंग में देखने के लिए फैंस बेकरार, इंग्लैंड के लिए 'करो या मरो' का मुकाबला