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Neta ji Subhash Chandra Bose: एक मौत, कितनी थ्‍योरीज! 18 अगस्त 1945 से 2022 तक नेताजी की ‘मौत की रहस्‍यमयी दास्‍तां’

नवीन रांगियाल
एक नाम सुभाष चंद्र बोस। भारत की आजादी में जिसकी सबसे अहम भूमिका। उनकी मौत और सैकड़ों थ्‍योरीज। यानि‍ एक मौत और कितने ही रहस्‍य।

कभी विमान हादसा बताया गया। कभी याददाश्‍त खो चुके गुमनाम शख्‍स और कभी गुमनामी बाबा। 1945 से लेकर आज तक सुभाष चंद्र की मौत के रहस्‍य का सिलसिला लगातार जारी है। एक शख्‍स और मौत के यह रहस्‍य, थ्‍योरीज खत्‍म नहीं हो रहे हैं।

सबसे दुखद पहलू यह है कि देश शायद ही कभी सुभाष चंद्र बोस की मौत के रहस्‍य से पर्दाफाश कर पाएगा।

आइए जानते हैं भारत के वीर सपूत सुभाष चंद्र बोस की रहस्‍यमयी मौत की गुत्थी, अब तक की सबसे रहस्‍यमय कहानी। भारत से लेकर जापान तक और विमान हादसे से लेकर फैजाबाद तक बोस की मौत के रहस्‍य की कसक और टीस से भरा कभी न खत्‍म होने वाली एक दास्‍तां। बोस की मौत की एक रहस्‍यमयी यात्रा।

पहली थ्‍योरी से रहस्‍य की शुरुआत
तमाम फि‍ल्‍में, कई डॉक्‍युमेंटरीज, किताबें और सैकड़ों सरकारी फाइल्‍स। सबकुछ हैं, अगर कुछ नहीं है तो वो है सुभाष चंद्र बोस की मौत का सच। मौत की रहस्‍यमयी इस यात्रा की शुरुआत 18 अगस्‍त 1945 से हुई।

सबसे पहले कहा गया कि 18 अगस्त 1945 जापान के एक विमान हादसे का शि‍कार हो गया। कहा गया कि इसमें सुभाष चंद्र बोस सवार थे और यह विमान ओवरलोड भी था। यह दुर्घटना जापान अधिकृत फोर्मोसा (वर्तमान में ताइवान) में हुई थी।

हादसे के बाद ऐसा कोई तथ्‍य सबूत या प्रमाण सामने नहीं आया, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि उस हादसे में नेताजी बच गए थे या उनकी मौत हो गई। बस, यहीं से नेताजी सुभाष चंद्र बोस की रहस्‍यमयी मौत की खबर ऐसी पसरी कि इतने सालों में इस खबर के कई वर्जन सामने आ चुके हैं, लेकिन सच आज भी नदारद है।

हालांकि 18 अगस्त 1945 का यही वो दिन था जब से नेताजी को दुनिया ने दोबारा नहीं देखा। न वे जिंदा ही कहीं देखे गए और न ही उनका पार्थि‍व शव ही कहीं से मिला।

जापान की पुष्‍ट‍ि से हिंदूस्‍तान में सन्‍नाटा
रिपोर्ट के मुताबिक 18 अगस्त, 1945 को बोस हवाई जहाज से मंचुरिया जा रहे थे। इसी हवाई सफर के बाद दुनिया के लिए वे लापता हो गए। जापान की एक संस्था ने इसी साल 23 अगस्त को ये खबर जारी की थी कि नेताजी का विमान ताइवान में दुर्घटनाग्रस्त हो गया है, जिसमें उनकी मौत हो गई।

लेकिन कुछ ही दिनों बाद जापान की एक घोषणा के बाद पूरे हिंदुस्‍तान में सन्‍नाटा पसर जाता है। जब जापान सरकार की तरफ से यह कहा जाता है कि 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में कोई विमान हादसा हुआ ही नहीं था।

... तो फिर सुभाष चंद्र बोस कहां गए, जिंदा थे या नहीं। किसी को कुछ नहीं पता !

मुखर्जी आयोग को क्‍या कहा ताइवान ने?
दरअसल, जापान में जिस विमान दुर्घटना में उनकी मौत की वजह बताया जाता है, उसका आज तक कोई साक्ष्य नहीं मिला है। भारत सरकार ने सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु के बारे में पता लगाने के लिए 1999 में मनोज कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में आयोग बनाया था। इस आयोग को ताइवान सरकार ने बताया था कि 1945 में ताइवान की भूमि पर कोई हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुआ ही नहीं था।

क्‍या ‘सरकार’ की फाइल में दफ्न है ‘मौत का रहस्‍य’?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 जनवरी, 2015 को नई दिल्ली स्थित नेशनल आर्काइव्स में नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी 100 फाइलें सार्वजिनक की थी। प्रधानमंत्री ने इन फाइलों का डिजिटल वर्जन जारी किया था। इससे पहले नवंबर 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस का रहस्यमय तरीके से लापता होना और इससे संबंधित मामलों में करीब 39 गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था।

सवाल उठता है कि क्‍या सरकार को पता है नेताजी की मौत का रहस्‍य। अगर नहीं तो फि‍र 39 गोपनीय फाइल्‍स को सार्वजनिक करने से सरकार इनकार क्‍यों कर रही है।

क्‍या कहती है तीनों आयोग की रिपोर्ट?
ज्यादातर लोग नेता जी मौत को लेकर विमान दुर्घटना वाली थ्योरी को तथ्यहीन मानकर स्वीकार नहीं करते हैं। हादसे के बाद से ही सुभाष चंद्र बोस के निधन को लेकर तरह-तरह की थ्योरी सामने आईं और लंबे समय तक जारी रहीं। आजादी के बाद भारत सरकार नेताजी की मृत्यु की जांच के लिए तीन बार आयोग का गठन कर चुकी है। जिनमें से दो ने आयोग तो पुष्टि कर चुकी है कि नेताजी की मौत विमान हादसे में हुई थी, जबकि जापान सरकार ने दावा किया था कि उस दिन फोर्मोसा में कोई विमान हादसा ही नहीं हुआ था।

क्‍या गुमनामी बाबा ही थे बोस?
एक दूसरी थ्‍योरी यह है कि नेताजी को कई लोग गुमनामी बाबा मानते हैं। मानना है कि‍ नेताजी, गुमनामी बाबा बनकर फैजाबाद में लंबे समय तक रहे। 1985 में जब गुमनामी बाबा का निधन हुआ तो उनके सामान को देखकर सब दंग रह गए। गुमनामी बाबा फर्राटेदार अंग्रेजी, बांग्ला और जर्मन बोलते थे। उनके पास महंगी सिगरेट, शराब, अखबार, पत्रिकाएं आदि थीं। उनके सामान से नेताजी की निजी तस्वीरें भी मिलीं, जिससे कयास लगाए गए कि वही नेताजी थी। रॉलेक्स की घड़ी, आजाद हिंद फौज की यूनीफॉर्म, 1974 में आनंद बाजार पत्रिका में छपी 24 किस्तों वाली 'विमान दुर्घटना की कहानी', शाहनवाज और खोसला आयोग की रिपोर्ट, आदि मिले। यह भी कहा जाता है कि गुमनामी बाबा का अंतिम संस्कार उसी जगह किया गया जहां भगवान श्रीराम ने जल समाधि ली थी।

'बोस' का निजी जीवन
नेताजी का जन्म 23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ था। उस समय कटक बंगाल प्रेसिडेंसी का हिस्सा हुआ करता था। उनकी पत्नी और एक बेटी थी। दरअसल साल 1934 में सुभाष चंद्र बोस अपने इलाज के लिए ऑस्ट्रिया गए हुए थे। वहां उनकी मुलाकात एक ऑस्ट्रियन महिला एमिली शेंकल से हुई। दोनों के बीच प्यार हो गया। 1942 में सुभाष चंद्र बोस और एमिली शेंकल ने हिन्दू रीति-रिवाज से शादी कर ली। उसी साल एमिली शेंकल ने एक बेटी को जन्म दिया। जिसका नाम अनिता बोस रखा गया।

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