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नरेन्द्र मोदी बनाम संयुक्त विपक्ष, हकीकत या फसाना

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शनिवार, 26 मई 2018 (12:15 IST)
कर्नाटक के मुख्‍यमंत्री पद पर एचडी कुमारस्वामी की ताजपोशी के दौरान मौजूद विपक्षी दलों के नेताओं ने जिस तरह से एकजुटता प्रदर्शित की, उससे यह तो साफ हो गया है कि अब विपक्ष खासकर कांग्रेस को लगने लगा है कि वह अकेले दम केन्द्र में सत्तारूढ़ नरेन्द्र मोदी और एनडीए की सरकार से मुकाबला नहीं कर सकती।
 
इस जलसे में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, सोनिया गांधी के अलावा तृणमूल की मुखिया ममता बनर्जी, राकांपा नेता शरद पवार, तेलुगूदेशम पार्टी के नेता चन्द्रबाबू नायडू, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, यूपी की पूर्व मुख्‍यमंत्री मायावती, राजद के तेजस्वी यादव, शरद यादव, झामुमो के हेमंत सोरेन, केरल के मुख्‍यमंत्री पी. विजयन,‍ दिल्ली के मुख्‍यमंत्री अरविन्द केजरीवाल समेत कई नेता मौजूद थे। इन सभी ने हाथों में हाथ डालकर विपक्ष की एकता का संदेश देने की भी कोशिश की।
 
लेकिन, इस गठजोड़ में सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि कुछ नेता तो मजबूरी में साथ दिखाई दे रहे हैं, जबकि कुछ महत्वाकांक्षाओं के चलते। शरद यादव, मायावती, चौधरी अजितसिंह, बाबूलाल मरांडी जैसे कई नेता हैं, जिनका लोकसभा में प्रतिनिधित्व ही नहीं है या फिर एक या दो सीटें हैं। दूसरी ओर राहुल गांधी और ममता बनर्जी जैसे नेता भी हैं, जिनकी नजर प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर है।
 
राहुल गांधी तो सार्वजनिक रूप से घोषणा भी कर चुके हैं कि 2019 में वे प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हैं। हालांकि अखिलेश यादव ने यह कहकर उनकी बात का खंडन कर दिया था कि प्रधानमंत्री पद का फैसला तो लोकसभा चुनाव के बाद ही होगा। दरअसल, यह तथाकथित एकता 'मजबूर और महत्वाकांक्षी नेताओं' का गठजोड़ है, जो या तो परवान ही नहीं चढ़ेगा या फिर महत्वाकांक्षाओं के टकराव के चलते चुनाव के बाद तितर-बितर हो जाएगा।
 
कल तक मोदी के साथ गलबहियां करने वाले चंद्रबाबू नायडू का इस गठबंधन से जुड़ना जरूर चौंकाने वाला है। जानकार तो यह भी मानते हैं कि नायडू ने मोदी से अलग होने का फैसला राजनीतिक मजबूरी के चलते लिया है ताकि विधानसभा चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस, कांग्रेस या अन्य विरोधी दल राज्य में बढ़त नहीं बना सकें। 
 
दूसरी बात यह है कि मोदी द्वारा आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा न दिए जाने से नाराज नायडू के अहम को ठेस लगी है। कहा तो यह भी जा रहा है कि चंद्रबाबू आंध्रप्रदेश चुनाव के बाद एक बार फिर राजग का दामन थाम सकते हैं। यह कहना कि यह गठजोड़ एक बना रहेगा, यह कहना अभी जल्दबादी होगी। क्योंकि पिछला इतिहास देखें तो तीसरा मोर्चा न जाने कितनी बार बना है और कितनी बार बिगड़ा है, यह किसी से भी छुपा नहीं है। 
 
हालांकि विपक्ष को गोरखपुर और फूलपुर के चुनाव परिणाम से यह बात तो समझ में आ ही गई होगी कि भाजपा और नरेन्द्र मोदी का मुकाबला एकजुट होकर ही किया जा सकता है। यूपी के कैराना में भी यदि गोरखपुर और फूलपुर की पुनरावृत्ति होती है तो विपक्ष को एकजुट करने की संभावनाएं और मजबूत हो जाएंगी। 

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