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विश्वगुरु भारत गढ़ने के लिए हम सभी को एकसाथ मिलकर चलना होगा : मोहन भागवत

विश्वगुरु भारत गढ़ने के लिए हम सभी को एकसाथ मिलकर चलना होगा : मोहन भागवत
, शनिवार, 20 नवंबर 2021 (00:31 IST)
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि विश्वगुरु भारत के निर्माण के लिए हम सभी को मिलकर साथ चलना होगा।

भागवत ने शुक्रवार को मुंगेली जिले के मदकू द्वीप में घोष शिविर के समापन समारोह में कहा, हम सभी को अपने पूर्वजों के उपदेशों को स्मरण करना है। हमारे पूर्वजों के पुण्य का स्मरण करा देने वाले इस क्षेत्र में संकल्प लेना है कि संपूर्ण विश्व को शांति-सुख प्रदान करा देने वाला विश्वगुरु भारत गढ़ने के लिए हम सुर में सुर मिलाकर एक ताल में कदम से कदम मिलाकर सौहार्द और समन्वय के साथ आगे बढ़ेंगे।

मुंगेली जिले से होकर बहने वाली शिवनाथ नदी में स्थित मदकू द्वीप में 16 नवंबर से 19 नवंबर तक घोष शिविर का आयोजन किया गया था। शुक्रवार को इसके समापन के अवसर पर घोष प्रदर्शन का आयोजन किया गया, जिसमें आरएसएस प्रमुख ने हिस्सा लिया था।

उन्होंने इस अवसर पर कहा, सत्यमेव जयते नानृतम्। सत्य की ही जीत होती है, असत्य की नहीं। झूठ कितनी भी कोशिश कर लेकिन झूठ कभी विजयी नहीं होता है। भागवत ने कहा, यहां विविधता में एकता है और एकता में विविधता है। भारत ने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा।

उन्होंने कहा, पूर्व में हमारे पूर्वज यहां से पूरी दुनिया में गए और उन्होंने वहां के देशों को अपना धर्म (सत्य) दिया। लेकिन हमने कभी किसी को बदला नहीं, जो जिसके पास था उसे उसके पास ही रहने दिया। हमने उन्हें ज्ञान दिया, विज्ञान दिया, गणित और आयुर्वेद दिया तथा उन्हें सभ्यता सिखाई।

इसलिए हमारे साथ लड़ने वाले चीन के लोग भी यह कहते हुए नहीं सकुचाते कि भारत ने 2000 वर्ष पूर्व ही चीन पर अपनी संस्कृति का प्रभाव जमाया था, क्योंकि उस प्रभाव की याद ही सुखद है दुखद नहीं है। उन्होंने कहा कि दुनिया उसी को पीटती है जो दुर्बल है।

स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि दुर्बलता ही पाप है। बलशाली का मतलब है संगठित होना। अकेला व्यक्ति बलशाली नहीं हो सकता है। कलयुग में संगठन ही शक्ति मानी जाती है। हम सभी को साथ लेकर चलेंगे, हमें किसी को बदलने की आवश्यकता नहीं है।

उन्होंने घोष प्रदर्शन को लेकर कहा, आपने अभी देखा होगा कि इस शिविर में सभी अलग-अलग वाद्य यंत्र बजा रहे थे। वाद्य यंत्र बजाने वाले लोग भी अलग थे। लेकिन सभी का सुर मिल रहा था। इस सुर ने हमें बांधकर रखा है।

इसी तरह हम अलग-अलग भाषा, अलग-अलग प्रांत से हैं, लेकिन हमारा मूल एक ही है। यह हमारे देश का सुर है और यह हमारी ताकत भी है। और यदि कोई उस सुर को बिगाड़ने का प्रयास करे तो देश का एक ताल है, वह ताल उसको ठीक कर देता है।(भाषा)

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